काशी की मसान की होली: इतिहास, आध्यात्मिक महत्व एवं अनोखी परंपरा

लेख - Yogi Deep

Last Updated on March 6, 2025 by Yogi Deep

होली का नाम सुनते ही मन में रंगों, गुलाल और मस्ती की तस्वीर उभरती है, लेकिन काशी अर्थात वाराणसी में इस त्योहार को मानाने का एक अलग ही स्वरुप है। यहाँ की मसान की होली न रंगों से खेली जाती है, न गुलाल से, बल्कि यह खेली जाती है चिता की भस्म से। यह परंपरा सुनने में जितनी अनोखी है, उतनी ही गहरी आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक धरोहर को यह अपने भीतर समेटे हुए है। यह होली मणिकर्णिका घाट एवं हरिश्चंद्र घाट पर मनाई जाती है, जहाँ प्रतिदिन सैकड़ों आत्माएँ मोक्ष की प्राप्ति करती हैं।

इस लेख में हम मसान की होली का इतिहास, इसका आध्यात्मिक महत्व एवं यहाँ होने वाली अद्वितीय संस्कारों को हम विस्तार से जानेंगे। साथ ही, यहाँ आने वाले पर्यटकों एवं सांस्कृतिक लोगों के लिए भी विशेष जानकारी होगी, ताकि वे इस अनुभव को अपने जीवन का हिस्सा बना सकें।

मसान की होली का इतिहास: शिव की नगरी से जुड़ी कहानी

काशी को भगवान शिव की नगरी कहा जाता है और यहाँ की प्रत्येक परंपरा में उनकी झलक दिखती है। अतः यहाँ होने वाले मसान की होली का इतिहास भी एक पौराणिक कथा से प्रारंभ होता है। लोककथाओं के अनुसार, जब भगवान शिव माता पार्वती का गौना कराकर काशी लौटे, तो उन्होंने काशी वासियों के साथ रंगभरी एकादशी के दिन रंगों से होली खेली थी। परन्तु उनके प्रिय गण – भूत, प्रेत पिशाच एवं श्मशान की शक्तियाँ – इस रंगोत्सव से वंचित रह गए। तब अगले दिन शिव ने मणिकर्णिका घाट पर चिता की भस्म से अपने प्रिय गणों के साथ होली खेली। माना जाता है की मसान में होली खेलने की यह परंपरा तभी से निरंतर चली आ रही है।

मणिकर्णिका घाट पर मसान की होली में भस्म लगाते साधु
मणिकर्णिका घाट पर मसान की होली में भस्म लगाते साधु

यह होली अघोरियों द्वारा खेली जाती थी। केवल काशी में ही अघोरियों/ औघड़ों द्वारा यह होली खेली जाती है। इसके साथ ही किन्नर समुदाय भी मसान की होली खेलते हैं। अघोरियों एवं किन्नरों के अतिरिक्त समाज के किसी भी वर्ग एवं पारिवारिक जीवन जीने वाले व्यक्तियों के लिए यह होली वर्जित है। 

इतिहासकार मानते हैं कि यह परंपरा कम से कम 300 वर्षों प्राचीन है। 16वीं शताब्दी में आमेर (जयपुर) के राजा मान सिंह ने मणिकर्णिका घाट पर बाबा मसान नाथ मंदिर बनवाया, जिसके पश्चात यह परंपरा और भी विस्तृत हो गयी। अघोरियों द्वारा खेली जाने वाली यह होली बताती है कि किस प्रकार मृत्यु भी एक उत्सव है, जो आया है उसे जाना है। इस जीवन एवं मृत्यु के चक्र को हमेशा उत्सव की तरह देखना चाहिए। 

मसान की होली का आध्यात्मिक महत्व: जीवन और मृत्यु का मिलन

मसान की होली केवल एक उत्सव नहीं, अपितु यह एक आध्यात्मिक संदेश है। काशी को मोक्ष की नगरी कहा जाता है एवं मणिकर्णिका घाट वह स्थान है जहाँ दाह संस्कार के बाद मृत्यु को अंतिम विदाई दी जाती है। यहाँ चिता की राख से होली खेलना अर्थात मृत्यु को एक उत्सव की तरह स्वीकार करने का प्रतीक है। यह परंपरा हमें जीवन की नश्वरता और आत्मा की शाश्वतता का बोध कराती है।

अघोर सम्प्रदाय के साधु इस होली में खास भूमिका निभाते हैं। अघोरियों के लिए श्मशान और भस्म उनकी साधना का ही एक हिस्सा हैं। अघोरी साधु कहते हैं की, “भस्म में शक्ति है। यह हमें दुनिया के मिथ्या बंधनों से मुक्त करती है।” नागा मानते हैं कि इस होली में सम्मिलित होने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और मोक्ष का आशीर्वाद देते हैं।

मसान की होली मानाने की अनोखी परंपरा: एक अलग अनुभव

मसान की होली मानाने की यह अनोखी परंपरा आपको अचंभित कर सकती है, परन्तु इनमें एक गहरी भावना छिपी है। यहां होली मनाने के लिए कोई पारंपरिक रंग और गुलाल का प्रयोग नहीं होता है। इन सब के अतिरिक्त यहाँ भक्त और साधु मसान नाथ मंदिर में भगवान शिव की पूजा करते हैं। फिर चिता की ठंडी राख को एक-दूसरे पर लगाते हैं।

  • पारंपरिक शुरुआत: साधु डमरू बजाते हुए “हर-हर महादेव” का जयघोष करते हैं।
  • भस्म से होली: लोग चिता की राख को हाथों में लेकर एक-दूसरे को लगाते हैं और नृत्य करते हैं।
  • भक्ति का माहौल: कुछ भक्त भजन गाते हैं, तो कुछ शांत बैठकर इस क्षण को जीते हैं।

एक जर्मन पर्यटक, मारिया, जो 2023 में यहाँ आई थीं, बताती हैं, “मैंने सोचा था कि यह डरावना होगा, लेकिन यहाँ का परिवेश इतना पवित्र था कि मेरे रोंगटे खड़े हो गए। यह मृत्यु और जीवन का एक अद्भुत संगम है।”

पर्यटकों के लिए, मसान की होली का अनुभव कैसे लें

यदि आप काशी की मसान की होली को नजदीक से देखना चाहते हैं, तो यहाँ आपके लिए कुछ विशेष जानकारियां हैं:

  • यह कब होती है: रंगभरी एकादशी के अगले दिन। 2025 में यह 11 मार्च को होगी।
  • कहाँ: मणिकर्णिका घाट एवं हरिश्चंद्रघाट, वाराणसी।
  • कैसे पहुँचें: वाराणसी रेलवे स्टेशन से ऑटो या नाव लेकर घाट तक जाएँ।
  • सुझाव: सादे कपड़े पहनें, फोटोग्राफी से पहले अनुमति लें, एवं स्थानीय लोगों के भावनाओं का सम्मान करें।
  • सावधानी: वैसे तो पारिवारिक जीवन जीने वालों के लिए यह होली खेलने वर्जित है, फिर भी यदि आप जाते हैं तो भीड़ और संकरी गलियों में सतर्क रहें। 

काशी में यह अनुभव आपके लिए जीवन पर्यंत यादगार बन सकता है। बस यहां आपको खुले हृदय एवं श्रद्धा के साथ रहना होगा। यहां इस क्षण को जीना होगा।

मसान की होली के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

मसान की होली क्या है?

यह वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर चिता की भस्म से खेली जाने वाली होली है, जो जीवन और मृत्यु के एकीकरण का प्रतीक है।

मसान की होली कब मनाई जाती है?

रंगभरी एकादशी के अगले दिन। 2025 में यह 11 मार्च को होगी।

इसका आध्यात्मिक महत्व क्या है?

यह मृत्यु को स्वीकार करने, भय से मुक्ति पाने और शिव की भक्ति का प्रतीक है।

क्या पर्यटक इसमें शामिल हो सकते हैं?

हाँ, लेकिन स्थानीय परंपराओं का सम्मान जरूरी है।

काशी की मसान की होली सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि जीवन का एक दर्शन है। यह हमें सिखाती है कि मृत्यु हमारा अंत नहीं, बल्कि यह एक नई शुरुआत है। वाराणसी में खेले जाने वाली यह होली हर उस व्यक्ति के लिए है जो आध्यात्मिकता एवं संस्कृति का जिज्ञासु है। यदि आप काशी आ रहे हैं तो काशी में इस होली का अनुभव अवश्य करें।

अधिक जानकारी के लिए:

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