Last Updated on February 11, 2025 by Yogi Deep
हरिश्चंद्र घाट, काशी के प्राचीन श्मशान घाटों में से एक है। यह राजा हरिश्चंद्र की अटूट सत्यनिष्ठा एवं त्याग को प्रदर्शित करता है। मान्यता है कि सत्य की रक्षा के लिए राजा हरिश्चंद्र नें यहाँ स्वयं को बेच दिया था। यह घाट मोक्ष प्राप्ति का द्वार माना जाता है, जहाँ अंतिम संस्कार करने से आत्मा को भैरवी यातना से मुक्ति मिलती है। ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व से भरपूर यह घाट काशी के आध्यात्मिक वैभव का प्रतीक है। यह घाट वैसे तो काशी के प्रसिद्ध घाटों में से एक है परंतु इस घाट के इतिहास एवं रहस्यों को बहुत ही कम लोग जानते हैं।
घाट का नाम | हरिश्चंद्र घाट |
क्षेत्र | वाराणसी |
निर्माण | 15-16वीं सदी |
निर्माता | राज्य सरकार द्वारा (1988) |
विशेषता | श्मशान घाट |
दर्शनीय स्थल | काशीकामकोटीश्वर मंदिर |
हरिश्चंद्र घाट: काशी का प्राचीन श्मशान और मोक्ष धाम
हरिश्चंद्र घाट, काशी के दो प्रमुख श्मशान घाटों (हरिश्चंद्र एवं मणिकर्णिका) में से एक है। पारंपरिक मान्यता के अनुसार, अयोध्या के सत्यनिष्ठ राजा हरिश्चंद्र ने सत्य की रक्षा के लिए यहीं स्वयं को बेच दिया था, जिसके कारण इस घाट का नाम “हरिश्चंद्र घाट” पड़ा।

हालांकि, ऐतिहासिक रूप से 20वीं शताब्दी के प्रारंभ से ही इस घाट का उल्लेख “हरिश्चंद्र घाट” नाम से मिलता है। लेकिन आश्चर्य तो इस बात का है की इससे पहले, जेम्स प्रिन्सेप (1831 ई.) और शेरिंग (1868 ई.) ने इसे केवल “श्मशान घाट” ही कहा है। इस घाट पर शवदाह की परंपरा कब से शुरू हुई, इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं है।
काशीखण्ड में मणिकर्णिका क्षेत्र के विस्तार का उल्लेख है, जिसमें इसकी उत्तरी सीमा हरिश्चंद्र मंडप तक बताई गई है। घाट के पास स्थित हरिश्चंद्र मंडप के समीप ही गंगा में हरिश्चंद्र तीर्थ की मान्यता भी है। मोतीचंद्र और कुबेरनाथ सुकुल जैसे विद्वानों के अनुसार, काशी का प्राचीन श्मशान वर्तमान संकठाघाट पर स्थित था, लेकिन वहां अब कोई अवशेष नहीं मिलता।
ब्रह्मवैवर्त पुराण (15वीं शताब्दी ई.) के काशीकेदार महात्म्य में केदारघाट के समीप आदिमणिकर्णिका (प्राचीन मणिकर्णिका) का उल्लेख है, जिसका विस्तार वर्तमान हरिश्चंद्र घाट तक माना गया है। ग्रंथों के अनुसार, यहां प्राण त्यागने से व्यक्ति भैरवी यातना से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर लेता है।
सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र
राजा हरिश्चंद्र अयोध्या के राजा थे, जो सत्य एवं धर्म के प्रति दृढ़ निष्ठा वाले शासक थे। उन्हें भगवान राम का पूर्वज माना जाता है। सत्य एवं अपने वचन का पालन करने हेतु उन्होंने अपना संपूर्ण राजपथ तक का त्याग कर दिया और स्वयं पत्नी और पुत्र के साथ वन चले गए एवं विषम परिस्थितियों में भी धर्म का पालन किया।
राजा हरिश्चंद्र एक सत्यवादी राजा थे, अतः उनकी परीक्षा लेने के लिए एक बार ऋषि विश्वामित्र ने राजा को एक स्वप्न दिखाया। जहां स्वप्न में राजा ने देखा कि उन्होंने अपना संपूर्ण राज्य एक ब्राह्मण को दान दे दिया। उसी दिन प्रातः होने पर ऋषि विश्वामित्र 1100 ब्राह्मण के साथ राजा के महल में भोजन करने के लिए पहुंचे, तब राजा अपना स्वप्न याद आया। सत्य एवं धर्म का पालन करने हेतु उन्होंने अपना संपूर्ण राज्य ऋषि को दान दे दिया एवं स्वयं अपने पत्नी एवं पुत्र सहित वन जाने लगे। लेकिन ऋषि विश्वामित्र राजा की और परीक्षा लेना चाहते थे, अतः उन्होंने दान के साथ दक्षिणा भी मांग ली।
दक्षिणा की शर्त यह थी कि, वह अपने राज्य एवं अपने आसपास के राज्य में कोई भी श्रम इत्यादि नहीं कर सकते थे। जिस पर दक्षिणा चुकाने के लिए राजा हरिश्चंद्र ने अपनी पत्नी एवं पुत्र सहित स्वयं को बेचने का निश्चय किया और काशी चले गए। जहां उन्होंने अपनी पत्नी एवं पुत्र को एक ब्राह्मण को बेच दिया, जबकि स्वयं को एक शमशान के चांडाल को बेचकर ऋषि की दक्षिणा पूर्ण किए। इसके पश्चात राजा हरिश्चंद्र श्मशान में कर वसूली का कार्य करने लगे।
इसी बीच उनके पुत्र रोहित की सर्पदंश से मृत्यु हो गई, इसके पश्चात राजा की पत्नी तारामती अपने पुत्र के अंतिम संस्कार के लिए श्मशान पहुंची। जहां अंतिम संस्कार के लिए राजा ने तारामती से कर मांगा लेकिन तारामती के पास कर चुकाने के लिए कुछ भी नहीं था। जिस पर उन्होंने अपनी साड़ी का आधा भाग फाड़ करके रूप में राजा को दिया।
इस करुण दृश्य को देखकर ऋषि विश्वामित्र सहित अन्य देवता वहां प्रकट हुए एवं राजा हरिश्चंद्र की सत्य के प्रति निष्ठा देखते हुए राजा को उनका राज्य वापस कर दिया एवं उनके मृत पुत्र को भी पुनः जीवित कर दिया। अतः कुछ इस प्रकारराजा हरिश्चंद्र ने अपने धर्म एवं सत्य के प्रति अपने निष्ठा का निर्वाह किया।
हरिश्चंद्र घाट का इतिहास: काशी का प्राचीन श्मशान
प्राचीन साक्ष्यों एवं विद्वानों के उल्लेख्यों के आधार पर यह पता चालता है की प्राचीन काल में काशी क्षेत्र असि से लेकर राज घाट तक सीमित था, एवं उस समय काशी का श्मशान वर्तमान संकठाघाट क्षेत्र में स्थित था। काशीखण्ड के उल्लेखों के अनुसार, यही श्मशान हरिश्चंद्र की परंपरा से संबंधित माना जा सकता है। समय के साथ काशी नगर का विकास एवं विस्तार जब दक्षिण की ओर बढ़ा तब संकठा घाट स्थित श्मशान को वर्तमान हरिश्चंद्र घाट पर स्थापित कर दिया गया।
हरिश्चंद्र घाट पर स्थित 15वीं-16वीं शताब्दी ई० के स्मारक इस बात के प्रमाण हैं की उसी समय से ही हरिश्चंद्र घाट पर शमशान स्थित है। जयपुर के सवाई मानसिंह द्वितीय संग्रहालय में उपलब्ध रेखाचित्र में रामेश्वर (हनुमान घाट) और केदारेश्वर (केदार घाट) के बीच एक श्मशानघाट दिखाया गया है, लेकिन इसमें “हरिश्चंद्र” नाम का कोई उल्लेख नहीं है, जबकि अन्य घाटों के नाम स्पष्ट रूप से दर्ज हैं। हालाँकि यह मानचित्र प्राचीन है परन्तु यह कितना प्राचीन है इसके प्रमाणिक साक्ष्यों का आभाव है।
यदि इन ऐतिहासिक साक्ष्यों को प्रमाण माना जाए तो ऐसा प्रतीत होता है की हरिश्चंद्र घाट का नामकरण अयोध्या के राजा हरिश्चंद्र से प्रत्यक्ष रूप से नहीं जुड़ा था। लेकिन काशी नगर प्राचीनतम् जीवित नगरी कहा जाता है, तो इस नगरी के न जाने कितने ही इतिहास बने व मिटे होंगे अतः किसी भी साक्ष्य को पूर्ण प्रमाण मानना ठीक नहीं होगा। हालांकि मणिकर्णिका घाट की तुलना में हरिश्चंद्र घाट अधिक प्राचीन था।
15वीं-16वीं शताब्दी में इस घाट की धार्मिक मान्यता विशेष रूप से महत्वपूर्ण थी। काशी केदारमाहात्म्य में उल्लेख है कि केदारेश्वर अंतर्गृह यात्रा इसी घाट (पूर्व नाम आदिमणिकर्णिका) पर स्नान के बाद प्रारंभ होती थी। वर्तमान में यह घाट मुख्य रूप से शवदाह के लिए प्रयोग होता है, और अन्य धार्मिक-सांस्कृतिक गतिविधियाँ यहाँ नहीं होतीं।
1988 से पहले तक यह घाट कच्चा था और नगर में भवन निर्माण के लिए बालू के क्रय-विक्रय का प्रमुख केंद्र था। 1988 में घाट के पक्के निर्माण के पश्चात बालू व्यापार को प्रतिबंधित कर दिया गया। इसी वर्ष यहां विद्युत शवदाह गृह की स्थापना भी हुई, जहाँ परम्परागत शवदाह के साथ-साथ विद्युत शवदाह भी होता है। घाट के आस-पास कई शिव मंदिर भी स्थित हैं जिनमें दक्षिण भारतीय स्थापत्य शैली में बना काशीकामकोटीश्वर मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध है।
हरिश्चंद्र घाट की विशेषताएँ
- काशी का प्राचीन श्मशान घाट – हरिश्चंद्र घाट काशी के प्राचीनतम दो प्रमुख श्मशान घाटों (हरिश्चंद्र और मणिकर्णिका) में से एक है।
- राजा हरिश्चंद्र से संबद्धता – परंपरागत मान्यता के अनुसार, सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र ने यहीं पर सत्य और धर्म की परीक्षा के दौरान स्वयं को बेच दिया था, जिससे घाट का नाम हरिश्चंद्र घाट पड़ा।
- ऐतिहासिक संदर्भ – 20वीं शताब्दी के पूर्व इस घाट का उल्लेख केवल ‘श्मशान घाट’ के रूप में मिलता है। 15वीं-16वीं शताब्दी के सती स्मारक इस घाट की प्राचीनता को प्रमाणित करते हैं।
- धार्मिक महत्व – काशीखण्ड और ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, यह घाट मोक्ष प्राप्ति का स्थान माना जाता है, जहाँ प्राण त्यागने से व्यक्ति भैरवी यातना से मुक्त हो जाता है।
- मणिकर्णिका से भी प्राचीन – हरिश्चंद्र घाट, मणिकर्णिका घाट से भी प्राचीन माना जाता है, हालांकि वर्तमान में मणिकर्णिका घाट को महाश्मशान की संज्ञा दी जाती है।
- आधुनिक परिवर्तन – 1988 में इस घाट का पक्का निर्माण किया गया और यहाँ विद्युत शवदाह गृह स्थापित किया गया है जहाँ परंपरागत दाह संस्कार के साथ विद्युत शवदाह भी होता है।
- धार्मिक स्थल – घाट के पास कई प्रमुख शिव मंदिर स्थित हैं, जिनमें 1968 में बना काशीकामकोटीश्वर मंदिर दक्षिणा भारतीय स्थापत्य शैली का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।
- बालू क्रय-विक्रय का प्रमुख केंद्र – 1988 के पूर्व, यह घाट नगर में भवन निर्माण हेतु बालू के क्रय-विक्रय का प्रमुख केंद्र था, जिसे बाद में प्रतिबंधित कर दिया गया।
- शवदाह की परंपरा – इस घाट पर सदियों से शवदाह की परंपरा चली आ रही है, जिससे यह घाट हिंदू धर्म में एक विशेष स्थान रखता है।
- केदारेश्वर यात्रा से जुड़ाव – काशीकेदारमाहात्म्य के अनुसार, केदारेश्वर अंतरगृह यात्रा इस घाट पर स्नान के बाद प्रारंभ होती थी, जिससे इसका धार्मिक महत्व और बढ़ जाता है।