Last Updated on February 24, 2025 by Yogi Deep
केदार घाट काशी के प्रसिद्ध घाटों में से एक है। इस घाट का अपना एक अलग ही ऐतिहासिक एवं पौराणिक महत्व है। घाट पर ही केदारेश्वर महादेव मंदिर स्थित होने के कारण इसका नाम केदार घाट पड़ा। इस घाट पर कुण्ड एवं तीर्थ भी है जहां स्नान करने का विशेष महत्व है। घाट पर मंदिरों के साथ-साथ मठ भी है। इस घाट के ऐतिहासिक एवं पौराणिक महत्व को विस्तार से समझते हैं।
घाट का नाम | केदार घाट |
क्षेत्र | वाराणसी |
निर्माण | 16वीं सदी |
निर्माता | कुमारस्वामी |
विशेषता | गौरीकुण्ड तथा हरंपाप तीर्थ |
दर्शनीय स्थल | केदारेश्वर महादेव मंदिर |
केदार घाट
केदार घाट विजयनगरम् घाट के उत्तर में स्थित है। इस घाट पर केदारेश्वर महादेव मंदिर, कुमारस्वामी मठ, गौरीकुण्ड तथा हरम् पाप तीर्थ भी स्थित है। यह घाट स्नान-दान एवं दर्शनार्थियों के लिए विशेष महत्व रखता है। यहां स्थित कुण्ड एवं तीर्थ में दैनिक स्नानार्थियों के साथ ही पर्व विशेष पर स्नान करने वालों की संख्या अधिक होती है। श्रावण महीने में इस घाट पर स्नान-दान एवं केदारेश्वर महादेव के दर्शन का सर्वाधिक माहात्म्य वर्णित है।
केदार घाट का इतिहास
केदार घाट का निर्माण 16वीं शताब्दी ई० के उत्तरार्ध में कुमारस्वामी ने करवाया था। घाट के अतिरिक्त यहां केदारेश्वर शिव मंदिर एवं कुमारस्वामी मठ का भी स्थित है, इनका निर्माण भी कुमारस्वामी ने ही करवाया था। घाट पर स्थित केदारेश्वर मंदिर मठ के संरक्षण में है। घाट पर केदारेश्वर मंदिर के अतिरिक्त तारकेश्वर एवं भैरव के मंदिर हैं। केदारघाट का उल्लेख गीर्वाण पदमंजरी में भी मिलता है। धार्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से इस घाट का विशेष महत्व है।1
कालांतर में घाट जीर्ण हो गया जिसका पक्का निर्माण 18वीं शताब्दी ईस्वी के मध्य कुमार स्वामी मठ द्वारा करवाया गया। जहां घाट के निर्माण हेतु चुनार के बलुआ पत्थरों का प्रयोग किया गया। घाट का पुनर्निर्माण उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सन 1958 ईस्वी में करवाया गया।
केदारेश्वर महादेव मंदिर

केदारेश्वर शिव/ श्री गौरी केदारेश्वर शिव का उल्लेख काशी के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में हुआ है, जिसका सदर्भ मत्स्य पुराण अग्निपुराण काशीखण्ड एव ब्रम्हवैवर्तपुराण मे मिलता है। केदारेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण भी 16वीं शताब्दी ई० के उत्तरार्ध में कुमारस्वामी ने ही करवाया था। धार्मिक दृष्टिकोण से यह मंदिर अत्यंत महत्वपूर्ण है। ऐसी मान्यता है कि इस घाट पर स्नान-दान के पश्चात केदारेश्वर महादेव के दर्शन करने मात्र से ही भक्तों के संपूर्ण कष्ट समाप्त हो जाते हैं। यहां एक और मान्यता है कि यहां प्राण त्यागने से व्यक्ति को भैरवी यातना से मुक्ति मिल जाती है।
दर्शन एवं स्नान का महत्व
घाट पर दैनिक स्नानार्थियों के साथ ही पर्व-विशेष पर स्नान करने वालों की संख्या अधिक होती है। श्रावण (जुलाई/अगस्त) माह में इस धाट पर स्नान- दान एवं केदारेश्वर के दर्शन का सर्वाधिक माहात्म्य वर्णित है। श्रावण महीने में घाट पर स्नानार्थियों की संख्या सर्वाधिक होती है। काशी की यात्रा पर आने वाले बंगाली एवं दक्षिण भारतीय तीर्थयात्री इस घाट पर स्नान-दान तथा केदारेश्वर के दर्शन को अधिक महत्व देते हैं।
ब्रह्मवैवर्तपुराण में केदारघाट को आदिमणिकर्णिका क्षेत्र के अन्तर्गत स्वीकार किया गया है जहाँ प्राण त्यागने से व्यक्ति को भैरवी यातना से मुक्ति मिल जाती है। गंगातट के समीप घाट की सीढ़ियों पर गौरीकुण्ड है तथा गंगा में हरंपाप तीर्थ स्थित है। ऐसी मान्यता है कि यहाँ स्नान करने से व्यक्ति के समस्त पापों का नाश हो जाता है।
सूर्य-चन्द्र ग्रहण, निर्जला एकादशी, गंगादशहरा, मकर व मेष संक्रांति, डालाछठ पर स्नानार्थियों की अधिक भीड़ होती है। दुर्गापूजा एवं कालीपूजा के पश्चात् प्रतिमाओं का विसर्जन भी इस घाट पर होता था, परंतु गंगा जी में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए वर्तमान में यहाँ मूर्ति विसर्जन प्रतिबंधित है।
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सन्दर्भ
- History of Varanasi 1206 to 1761 by Sachindra Pandey ↩︎