Last Updated on February 16, 2025 by Yogi Deep
काशी की गंगा तट पर स्थित विजयानगरम् घाट को विजयनगरम अथवा विजयनगर घाट के नाम से भी जाना जाता है। यह काशी के प्रसिद्ध घाटों में से एक है। इस घाट का निर्माण महाराज कुमार विजयनगरम् द्वारा 19वीं शती ई. के उत्तरार्द्ध में करवाया गया था। अतः इस घाट को विजयनगरम् घाट के नाम से जाना जाता है। आइये इस घाट के बारे में विस्तार से जानते हैं।
घाट का नाम | विजयनगरम् घाट |
क्षेत्र | वाराणसी |
निर्माण | 19वीं सदी |
निर्माता | महाराजा विजयानगरम् द्वारा |
विशेषता | दक्षिण भारतीय स्थापत्य शैली में निर्मित भवन |
दर्शनीय स्थल | स्वामी करपात्री आश्रम |
विजयनगरम् घाट का इतिहस
विजयनगरम् घाट का निर्माण 19वीं सती ई० के उत्तरार्ध में महाराजा विजयनगरम् नें करवाया था। 14वीं- 15वीं शती ई० से पहले यह एक कच्चा घाट हुआ करता था एवं यह हरिश्चंद्र घाट का ही एक भाग हुआ करता था। महाराजा विजयनगर नें यहाँ घाट पर एक विशाल भवन का भी निर्माण करवाया। इस घाट का पहला उल्लेख ग्रीब्ज (1909 ई.) ने ईजानगर घाट के नाम किया। बनारस के लोग महाराज विजयनगरम् को ‘राजा इजानगर’ के नाम से संबोधित किया करते थे।

घाट पर स्थित महल को महाराजा नें संत स्वामी करपात्रीजी महाराज को दान कर दिया था। घाट पर स्थित भवन दक्षिण भारतीय शैली में बने हुए हैं। अतः दक्षिण भारतीय स्थापत्य शैली में निर्मित भवनों के कारण घाट की शोभा और भी बढ़ जाती है।
महाराजा विजयनगरम्
महाराज विजयनगरम् का पूरा नाम विजय आनंद गजपति राजू था। इन्हें विजयनगरम के महाराज कुमार या विज्जी के नाम से भी जाना जाता था। वे वर्तमान आंध्र प्रदेश के विजयनगरम के शासक पुसापति विजय राम गजपति राजू के दूसरे बेटे थे। सन् 1992 ई० में पिता के मृत्यु के पश्चात उनके बड़े भाई नें राजगद्दी संभाली एवं विज्जी बनारस में आ कर बस गए। वे भारत के प्रसिद्ध बल्लेबाज व टेनिस के अच्छे खिलाडी थे। इनकी मृत्यु वाराणसी में 2 दिसम्बर 1965 को 59 वर्ष की आयु में हुई।1
काशी में महाराज विजयानगरम् को ‘राजा इजानगर’ के नाम से संबोधित किया जाता था। ऐसा माना जाता है कि बनारस में लक्सा क्षेत्र में होने वाली रामलीला का प्रारंभ स्वयं इन्होंने ही करवाया था। उन दिनों की बात है जब रामलीला के लिए प्रत्येक वर्ष राम, लक्ष्मण, भरत तथा शत्रुघ्न एवं उनकी पत्नियों के पात्रों के लिए चार बालक एवं बालिकाओं का चयन किया जाता था।
रामलीला में विवाह के मंचन के समय बाकायदा इन पत्रों का विवाह इत्यादि करवाया जाता था एवं संपूर्ण रामलीला समाप्त हो जाने के पश्चात इन्हें विदा कर दिया जाता था। अतः इस प्रकार प्रतिवर्ष चार ब्राह्मण कुमारो का विवाह ब्राह्मण कुमारियों के साथ पूर्ण होता था एवं उनके माता-पिता के ऊपर विवाह इत्यादि का खर्च नहीं पड़ता था।
स्वामी करपात्रीजी महाराज का निवास स्थल
20वीं शती के उत्तरार्ध में महाराज नें यहाँ स्थित महल को काशी के संत श्री स्वामी करपात्रीजी को दान में दे दिया था। जिसके पश्चात स्वामी करपात्रीजी महाराज यहीं निवास करने लगे। आज भी इस भवन को स्वामी करपात्री आश्रम के नाम से जाना जाता है। करपात्रीजी ने वाराणसी में ‘धर्मसंघ’ की स्थापना की। वे अद्वैत दर्शन के अनुयायी एवं शिक्षक थे। उनका अधिकांश जीवन वाराणसी में ही बीता।
यहीं से उन्होंने गोरक्षा आंदोलन की शुरुआत भी की, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनसे वादा किया था कि चुनाव जीतने के बाद अंग्रेजों के समय से चले आ रहे सारे गौ कत्लखानों को बंद कर दिया जाएगा। परंतु चुनाव जीतने के बाद इंदिरा गांधी कम्युनिस्ट एवं मुसलमानों के दबाव में आकर अपने वादे से मुकर गई थी। तब स्वामी जी ने समस्त संत समाज को इकट्ठा करके एक विशाल आंदोलन किया। जहां उन्होंने 7 नवंबर 1966 को संसद भवन के सामने धरना प्रदर्शन शुरू किया। परंतु आवेश में आकर इंदिरा गांधी ने उन निहत्थे संतों पर गोलियां चलवा दी जिसमें कई साधु मारे गए।2
वर्तमान में घाट
वर्तमान में यह घाट लाली घाट एवं केदार घाट के मध्य में स्थित है। गंगातट से करपात्री आश्रम में प्रवेश के लिए पत्थर की सीढ़ियाँ है। घाट स्थित भवन दक्षिण भारतीय स्थापत्य शैली का सुन्दर उदाहरण है। यद्यपि धार्मिक दृष्टि से घाट का विशेष महत्व नहीं है किन्तु घाट पक्का एवं स्वच्छ होने के कारण यहाँ लोग स्नान करते हैं।