Last Updated on December 30, 2024 by Yogi Deep
प्रभु घाट, वाराणसी के अन्य प्रमुख घाटों के बीच इस घाट की अपनी एक अनोखी पहचान है। यह घाट वाराणसी के प्राचीन घाटों में से एक है, जिसका पक्का निर्माण 20वीं शताबदी के पूर्वार्द्ध में बंगाल के निर्मल कुमार द्वारा कराया गया था। प्रभु घाट का विशिष्ट भवन भी इन्हीं के द्वारा बनवाया गया है, जो इस घाट को एक अद्वितीय पहचान प्रदान करता है।
घाट का नाम | प्रभु घाट |
क्षेत्र | वाराणसी |
निर्माण | 20वीं सदी |
निर्माता | निर्मल कुमार (बंगाल) |
विशेषता | विशाल भवन |
प्रभु घाट घाट का इतिहास
प्रभु घाट की स्थापना का कार्य 20वीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों में बंगाल के प्रतिष्ठित नागरिक निर्मल कुमार द्वारा कराया गया। यह घाट वाराणसी के अन्य प्रमुख घाटों से अलग है, क्योंकि यहां पर धार्मिक गतिविधियों के बजाय सांस्कृतिक और सामाजिक गतिविधियां अधिक होती हैं। निषादराज घाट की तरह यहाँ भी मल्लाह जाति के लोग प्रमुख रूप से रहते हैं। इसके अतिरिक्त यहां प्राचीन समय से ही धोबी लोग कपड़े साफ करने का कार्य करते चले आ रहे हैं, जो इस घाट के दैनिक जीवन का अहम हिस्सा है।
निर्मल कुमार द्वारा यहां एक विशाल भवन भी बनवाया, जो आज भी घाट का एक प्रमुख आकर्षण है। घाट का नाम और इसका ऐतिहासिक महत्व उस काल के समाज और स्थापत्य कला के उत्कृष्ट उदाहरण को दर्शाता है।

वर्तमान स्थिति
प्रभु घाट की संरचना और निर्माण कार्यों में समय-समय पर बदलाव हुए हैं। 1989 में उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग द्वारा घाट की मरम्मत का कार्य किया गया था, जिससे इस ऐतिहासिक घाट की स्थिति बेहतर हुई। यह मरम्मत कार्य इस घाट को बनाए रखने और उसके ऐतिहासिक महत्व को संरक्षित करने के लिए महत्वपूर्ण था।
हालांकि घाट का प्रमुख उपयोग आज भी सामाजिक और व्यावसायिक कार्यों के लिए होता है। इस घाट पर किसी भी प्रकार का स्नान इत्यादि करने का विधान नहीं है। धार्मिक दृष्टिकोण से यह घाट भले ही अत्यधिक प्रसिद्ध न हो, लेकिन यह बनारस की समृद्ध संस्कृति और यहां के स्थानीय समुदाय की जीवनशैली को दर्शाता है।
प्रभु घाट का महत्व
- सामाजिक सहयोग का प्रतीक:
यह घाट स्थानीय समुदायों, विशेषकर मल्लाह और धोबी जाति के लोगों के सामाजिक जीवन का केंद्र है। - इतिहास का हिस्सा:
निर्मल कुमार द्वारा निर्मित भवन और घाट बनारस के ऐतिहासिक परिदृश्य में एक अनमोल योगदान हैं।
Google Geo Location
प्रभु घाट अपने विशिष्ट सामाजिक और ऐतिहासिक योगदान के लिए जाना जाता है। भले ही यह धार्मिक गतिविधियों के लिए प्रसिद्ध नहीं है, लेकिन बनारस की संस्कृति और सामाजिक ताने-बाने को समझने के लिए इसका विशेष महत्व है।