पाण्डेय घाट/ बबुआ पाण्डेय घाट, वाराणसी

लेख - Yogi Deep

Last Updated on May 16, 2025 by Yogi Deep

वाराणसी, जिसे काशी या बनारस के नाम से भी जाना जाता है, न केवल आध्यात्मिक नगरी है, बल्कि इसकी गंगा तट पर बसे घाट भी इसकी प्राचीनता और संस्कृति के जीते-जागते प्रमाण हैं। इन्हीं घाटों में से एक है पाण्डेय घाट अथवा बबुआ पाण्डेय घाट, जो इतिहास, परंपरा और आधुनिकता का एक सुंदर संगम प्रस्तुत करता है।

यह घाट वाराणसी के दक्षिणी भाग में स्थित है और इसका इतिहास 19वीं शताब्दी ईस्वी के प्रारंभ से जुड़ा है, जब छपरा (बिहार) निवासी बबुआ पाण्डेय ने इस घाट का निर्माण कराया। उन्हीं के नाम पर इस घाट का नाम ‘पाण्डेय घाट’ पड़ा।

घाट का नामपाण्डेय घाट/ बबुआ पाण्डेय घाट
घाट का प्राचीन नामसर्वेश्वर घाट
क्षेत्रवाराणसी
निर्माण1800
निर्माताबबुआ पाण्डेय द्वारा निर्मित
विशेषताघाट के दक्षिण में स्थित धोबी घाट
दर्शनीय स्थलसर्वेश्वर शिव मंदिर तथा सोमेश्वर शिव मंदिर

पाण्डेय घाट का इतिहास

पाण्डेय घाट की नींव बबुआ पाण्डेय ने रखी थी, जो बिहार के छपरा से आए एक व्यक्ति थे। 1800 के दशक की शुरुआत में उन्होंने इसे बनवाया, और इसी वजह से इसका नाम उनके नाम पर पड़ा। पहले यहाँ सर्वेश्वर शिव मन्दिर होने के कारण इसे सर्वेश्वर घाट कहते थे —यह नाम आपको गीर्वाणपद मंजरी जैसे प्राचीन ग्रंथों में मिलेगा। घाट के ऊपरी हिस्से में बने सर्वेश्वर शिव मंदिर से इसकी पुरानी पहचान आज भी जीवित है। अंग्रेज़ इतिहासकार जेम्स प्रिन्सेप ने इसे “पानड़ीघाट” लिखा था, जो शायद पाण्डेय का ही बिगड़ा हुआ रूप है। यह छोटी-छोटी बातें इस घाट की कहानी को और रोचक बनाती हैं।

पाण्डेय घाट, वाराणसी
पाण्डेय घाट, वाराणसी

धोबियों का अपना घाट

पाण्डेय घाट का दक्षिणी हिस्सा हमेशा से धोबियों का गढ़ रहा है। यहाँ कपड़े धोने की परंपरा इतनी पुरानी है कि इतिहासकार मोतीचंद्र ने भी इसका ज़िक्र किया। पहले इसे धोबीघाट कहते थे, जो अब पाण्डेय घाट का ही हिस्सा बन चुका है। यहाँ आज भी सुबह से शाम तक धोबियों की गहमागहमी देखी जा सकती है—पत्थरों पर कपड़े पीटने की आवाज़ और गंगा के किनारे फैली रंग-बिरंगी साड़ियाँ इस जगह को जीवंत बनाती हैं। यह परंपरा न सिर्फ़ घाट की ख़ासियत है, बल्कि वाराणसी की ज़िंदगी का एक अभिन्न अंग भी।

वर्तमान में पाण्डेय घाट

1965 में उत्तर प्रदेश सरकार ने इस घाट का पुनर्निर्माण करवाया, जिसके बाद से यह पक्का और साफ-सुथरा है। बबुआ पाण्डेय ने यहाँ कई भवन बनवाए थे (जिनके नंबर हैं डी. 24/17, 18, 19 और डी. 25/24), और इनमें से एक में आज यात्री विश्रामगृह है। थके हुए यात्रियों के लिए यहाँ रुकना सुकूनदायक हो सकता है। इसके पास ही एक व्यायामशाला भी है, जो पाण्डेय की दूरदर्शिता को दिखाती है। घाट पर दो शिव मंदिर सर्वेश्वर शिव मंदिर तथा सोमेश्वर शिव मंदिर स्थित हैं, जहाँ लोग आस्था के साथ दर्शन करने आते हैं।

हालांकि पाण्डेय घाट का कोई बड़ा धार्मिक या सांस्कृतिक महत्व नहीं माना जाता, लेकिन इसके उत्तरी हिस्से में स्नान करने वालों की भीड़ लगी रहती है। गंगा में डुबकी लगाना यहाँ की रोज़ की बात है, और यहाँ का शांत माहौल इसे अद्वितीय बनाता है।

क्यों जाएँ पाण्डेय घाट?

पाण्डेय घाट, वाराणसी की उन विरासतों में से एक है, जो भले ही अधिक प्रसिद्ध न हो, लेकिन अपने भीतर इतिहास, परंपरा और जीवन का गहरा संदेश समेटे हुए है। यह घाट केवल एक स्थान नहीं, बल्कि एक कथा है — एक धार्मिक व्यक्ति के योगदान की, एक नगर की संस्कृति की, और गंगा की अनंत धारा में बहती सभ्यता की।

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