Last Updated on April 29, 2025 by Yogi Deep
वाराणसी, जिसे काशी या बनारस के नाम से भी जाना जाता है, गंगा नदी के किनारे बसा एक प्राचीन शहर है। यहाँ के घाट इसकी पहचान हैं, जो धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण हैं। इन्हीं घाटों में से एक है राजा घाट, जो अपने अनूठे इतिहास और शांत वातावरण के लिए जाना जाता है। आइए, इस घाट के बारे में विस्तार से जानते हैं।
घाट का नाम | राजा घाट |
क्षेत्र | वाराणसी |
निर्माण | 1807 |
निर्माता | पेशवा अमृतराव द्वारा निर्मित |
विशेषता | घाट के उत्तर में स्थित महल |
दर्शनीय स्थल | माँ अन्नपूर्णा मंदिर एवं मठ |
राजा घाट का इतिहास
राजा घाट का निर्माण 1807 ईस्वी में पुणे के पेशवा अमृतराव द्वारा करवाया गया था। अमृतराव मराठा साम्राज्य के एक प्रमुख नेता थे, और ऐसा माना जाता है कि उनका वाराणसी से गहरा जुड़ाव था। सन 1831 में ब्रिटिश इतिहासकार जेम्स प्रिंसेप और 1909 में ग्रिम्स ने इस घाट का उल्लेख अमृतराव घाट के नाम से किया था। एक समय यह घाट विस्तृत क्षेत्र में फैला हुआ था, जो इसकी भव्यता और उस समय के निर्माण कौशल को दर्शाता है।
घाट की विशेषताएं

राजा घाट की बनावट इसे खास बनाती है। घाट के उत्तरी भाग में एक महल स्थित है, जो संभवतः अमृतराव या किसी शाही परिवार से जुड़ा रहा होगा। यह महल उस समय की स्थापत्य कला का एक नमूना है। वहीं, घाट के दक्षिणी हिस्से में अन्नपूर्णा मठ है, जो देवी अन्नपूर्णा को समर्पित एक धार्मिक स्थल है। यहाँ आने वाले श्रद्धालु माँ अन्नपूर्णा की पूजा करते हैं और आशीर्वाद लेते हैं।
धार्मिक महत्व और अनुष्ठान
यह घाट धार्मिक कार्यों के लिए भी प्रसिद्ध है। यहाँ पिंडदान, तर्पण, नारायण बलि और अस्थि विसर्जन जैसे विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं। पिंडदान पितरों की आत्मा की शांति के लिए होता है, तर्पण में जल और तिल अर्पित किए जाते हैं, नारायण बलि असामयिक मृत्यु वालों के लिए एक विशेष कर्मकांड है, और अस्थि विसर्जन में अस्थियों को गंगा में प्रवाहित किया जाता है। इन अनुष्ठानों के कारण यह घाट खास तौर पर दक्षिण भारतीयों के विशेष आकर्षण का केंद्र रहा है, क्योंकि वहाँ भी ये परंपराएं गहरी जड़ें रखती हैं।
स्थानीय जीवन और शांत वातावरण
पर्यटन की नजर से भले ही राजा घाट बहुत मशहूर न हो, लेकिन स्थानीय लोगों के लिए यह एक खास जगह है। सुबह और शाम के समय यहाँ लोग टहलने आते हैं और घाट के शांत वातावरण का आनंद लेते हैं। घाट का वातावरण इतना शांतिपूर्ण है कि लोग अपने खाली समय में यहाँ बैठकर प्रकृति के साथ समय बिताना पसंद करते हैं। घाट के ऊपरी हिस्सों पर विशाल पीपल के पेड़ हैं, जिनके बारे में स्थानीय लोग मानते हैं कि ये उस समय से यहाँ हैं जब यह घाट कच्चा था और चारों ओर जंगल हुआ करता था। ये पेड़ घाट को एक प्राकृतिक छटा देते हैं।
क्यों महत्वपूर्ण है राजा घाट?
राजा घाट का अपना एक अलग आकर्षण है। यहाँ की शांति, गंगा की लहरों की आवाज़, और पीपल के पेड़ों की छांव इसे एक ऐसा स्थान बनाती है जहाँ आप सुकून पा सकते हैं। दक्षिण भारतीयों के लिए यह धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, तो स्थानीय लोगों के लिए यह रोज़मर्रा की जिंदगी का हिस्सा है। यहाँ का इतिहास और प्रकृति का मेल इसे अनोखा बनाता है।
अगर आप वाराणसी यात्रा पर हैं, तो राजा घाट अवश्य जाएँ। यहाँ का शांत वातावरण और ऐतिहासिक महत्व आपको काशी की झलक देगा। आदि काशी के इस लेख को पढ़ने के लिए धन्यवाद।