Last Updated on May 28, 2025 by Yogi Deep
मुंशी घाट वाराणसी के प्रसिद्ध घाटों में से एक है, जो गंगा नदी के तट पर स्थित है। UNESCO की रिपोर्ट में वाराणसी को “भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का उच्चतम प्रतीक” बताया गया है एवं गंगा के किनारे बसे इन घाटों को पुरातन परंपराओं के प्रतिरूप कहा गया है। मुंशी घाट का नाम नागपुर (महाराष्ट्र) के राजा के मंत्री श्रीधर नारायण मुंशी के नाम पर पड़ा है। यह घाट मुंशी जी द्वारा सन 1812 ई० में बनवाया गया था।1 घाट की ऊँची सीढ़ियाँ एवं दोनों ओर बने प्राचीन मंदिर और यहाँ का शांत वातावरण इसे धार्मिक महत्त्व प्रदान करता है।
घाट का नाम | मुंशी घाट |
क्षेत्र | वाराणसी |
निर्माण | 11812 ई० |
निर्माता | श्रीधर नारायण मुंशी (नागपुर, महाराष्ट्र) |
विशेषता | घाट स्थित महल |
दर्शनीय स्थल | गणेश जी एवं शिव जी के मंदिर |
इतिहास
मुंशी घाट का निर्माण नागपुर के भोंसले साम्राज्य के मंत्री श्रीधर नारायण मुंशी ने सन 1812 के आसपास कराया। 1920 ई० के पूर्व तक इस घाट का दक्षिण में विस्तार राणामहल घाट तक तथा उत्तर मे अहिल्याबाई घाट तक था।
बाद में यह घाट दरभंगा (बिहार) राजघराने के महाराजा कमेश्वर सिंह गौतम बहादुर के अधिग्रहण में चला गया और 1920 ई० में घाट का बड़ा हिस्सा दरभंगा घाट के नाम से विकसित हुआ।
मुंशी घाट गंगा पर नाव-व्यापार और तीर्थयात्रियों के आवागमन में सहायक रहा है। नदी किनारे यहां तालाबंदी (लकड़ी की नावों के गोदी) थी और नाविकों का बसेरा था। ब्रिटिशकाल में भी यह घाट यात्रियों और व्यापारियों के लिए महत्वपूर्ण था। पुराणों के अनुसार यह इलाका पौराणिक कथा-कहानियों में भी उल्लेखित है और सदियों से यहां पूजा-अर्चना होती रही है।2

श्रीधर नारायण मुंशी जी
श्रीधर नारायण मुंशी मराठा साम्राज्य के नागपुर भोंसले दरबार में मंत्री थे। उन्होंने वाराणसी में गंगा तट पर इस भव्य घाट के निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाई थी। श्रोतों के अनुसार मुंशी जी मराठा कुल के प्रतिष्ठित परिवार से थे, लेकिन इनकी निजी जीवन से जुड़ी जानकारी सीमित है। वे 1812 में अपने पद को छोड़ कर बनारस में रहने लगे थे, जहाँ 1824 में उनकी मृत्यु हुई।3 उन्हीं के नाम पर घाट का नामकरण हुआ और मृत्यु के पश्चात घाट को उनकी याद में समर्पित कर दिया गया। मुंशी जी का यह योगदान आज भी घाट की ऐतिहासिक विरासत में याद किया जाता है।
घाट क्यों प्रसिद्ध है
मुंशी घाट धार्मिक अनुष्ठानों और लोक जीवन का एक जीवंत केन्द्र है। वाराणसी के अधिकांश घाट सदियों पुराने धार्मिक उत्सवों और अनुष्ठानों के स्थल हैं जिन पर श्रद्धालु आज भी प्रतिदिन गंगा स्नान करते हैं, शाम को दीप प्रज्ज्वलित करते हैं।4 इसी परंपरा के तहत मुंशी घाट पर भी सुबह-शाम स्नान-ध्यान इत्यादि कार्य होता है और शाम को यहां गंगा आरती का आयोजन होता है। यहीं घाट पर ही घाट महल तथा देवताओं के मंदिर स्थित हैं।
अनेक परिवार यहां पितृ-श्राद्ध (पिंडदान, तर्पण) और अन्य धार्मिक कर्मों के लिए आते हैं। विशेष त्योहारों (दशहरा, दिवाली, देव दीपावली इत्यादि) पर घाट सज जाता है और श्रद्धालुओं की भारी भीड़ दिखाई देती है। इन धार्मिक गतिविधियों के साथ घाट का शांत वातावरण और गंगा का पवित्र जल इसे श्रद्धालुओं और आगंतुकों के लिए लोकप्रिय बनाता है।
अनूठे तथ्य
- घाट की वास्तुकला मराठा और उत्तरी शैली का मिश्रण है। इतिहासकार सुयश शेरकर के अनुसार मुंशी घाट मराठा वास्तुशिल्प में ‘गोलाकार कलश’ जैसी शैली का उदाहरण है, जहाँ मराठा संवेदनशीलता और उत्तर भारतीय सजावट का अनूठा संगम दिखता है।
- मुंशी घाट के ठीक सटे दरभंगा घाट का राजसी महल चुनार की पत्थर से बना है और इसमें सुंदर पोर्च और यूनानी शैली (ग्रीक) के स्तंभ हैं।5
- घाट के सामने सीढ़ियों पर अंग्रेज़ी में “MUNSHI GHAT” और देवनागरी में “मुंशी घाट” अक्षर खुदे हुए हैं। यह अंग्रेजी-भाषा में नाम अंकन उस युग की छाप दर्शाता है।
- 1994 में दरभंगा महल (ब्रिजरमा पैलेस) को क्लार्क होटल ग्रुप ने खरीदा और इसे एक पाँच सितारा होटल बना दिया। इसके पीछे के हिस्से का एक बड़ा भाग अवैध रूप से तोड़ दिया गया था, जिसे बाद में संरक्षण कार्यकर्ताओं ने गैरकानूनी बताया। यह एक विवादित घटना रही जिससे पुरातात्विक विरासत को क्षति पहुंची।6
विशेषताएँ
मुंशी घाट से सटा दरभंगा घाट इसका प्रमुख आकर्षण है। दरभंगा घाट का महल (जिसे ब्रिजरमा पैलेस भी कहते हैं) मुंशी घाट की ही दीवारों से लगा हुआ है। यह महल चुनार पत्थर की बड़ी कतारों से बना है और इसके गोलाकार बुर्ज और जालीदार झरोखे ब्रिटिश-पूर्व भारत के जमाने की वास्तुकला दिखाते हैं। घाट की दूसरी ओर छोटे-छोटे शिव-मंदिर और गणेश जी के मंदिर हैं, जहां श्रद्धालु दर्शन-अर्चना करते हैं। घाट के नीचे बनी सीढ़ियों के किनारे लकड़ी की नावों का अड्डा है, जहां से दर्शनार्थी गंगा आरती के समय नावों पर बैठकर घाट का आनंद लेते हैं।
वर्तमान स्थिति
वर्तमान में मुंशी घाट पर गंगा-सरंक्षण और पर्यटन दोनों के प्रयास जोर पकड़ रहे हैं। केंद्र सरकार की “नमामि गंगे” योजना के तहत घाटों की सफाई और गंगा जल को प्रदूषण मुक्त करने की पहल हो रही है। वाराणसी विकास प्राधिकरण समय-समय पर घाट के आसपास की साफ-सफाई और पुनर्निर्माण कार्य करवाता है। घाट पर आने-जाने के लिए घाट-पथ बनाए गए हैं और सुरक्षा की दृष्टि से रोशनी एवं सीसीटीवी की व्यवस्था भी है।
पर्यटन के चलते घाट पर दिनोंदिन भीड़ बढ़ी है, जिससे आसपास का जीवन जीवंत बना हुआ है। बावजूद इसके, गंगा में पानी की गुणवत्ता, घाटों पर जाम और गंदगी की समस्या जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। स्थानीय लोग और प्रशासन मिलकर नियमित सफाई अभियान चलाते हैं, लेकिन एक पवित्र नदी की शुद्धता और घाटों की पारंपरिक पवित्रता बनाए रखना अभी भी एक महत्त्वपूर्ण कार्य है।
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सन्दर्भ
Diana L. Eck, Banaras: City of Light; Rana P.B. Singh, Sacred Geography of Goddesses in India; मोती चंद्र, काशी के घाट; वाराणसी विकास प्राधिकरण – वाराणसी विश्व धरोहर सूची प्रस्ताव; उत्तर प्रदेश पर्यटन अभिलेख एवं वाराणसी नगरपालिका अभिलेख।
- काशी का इतिहास – डॉ० मोतीचंद – पेज 392, en.wikipedia.org ↩︎
- whc.unesco.org researchgate.net ↩︎
- १ काशी का इतिहास – डॉ० मोतीचंद – पेज 392 researchgate.net ↩︎
- whc.unesco.org ↩︎
- en.wikipedia.org ↩︎
- Darbhanga Ghat extension ↩︎