Last Updated on May 20, 2025 by Yogi Deep
वाराणसी, जिसे काशी या बनारस के नाम से भी जाना जाता है, अपने पवित्र घाटों के लिए विश्व प्रसिद्ध है। इन्हीं में एक है चौसट्टी घाट जो न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक आस्थाओं का भी प्रमुख केंद्र है। इस लेख में हम चौसट्ठी घाट के इतिहास, धार्मिक महत्त्व, स्थापत्य और वर्तमान स्थिति की विस्तारपूर्वक जानेंगे।
घाट का नाम | चौसट्टी घाट |
क्षेत्र | वाराणसी |
निर्माण | 16वीं सदी |
निर्माता | राजा प्रतापादित्य |
विशेषता | प्रतापादित्य स्मारक |
दर्शनीय स्थल | चौसट्टी देवी मंदिर, चौसठ योगिनी मंदिर एवं काली मन्दिर |

चौसट्टी घाट
चौसट्टी घाट का नाम यहाँ स्थित ‘चौसठ योगिनी मंदिर’ से जुड़ा है। ‘चौसठ योगिनियाँ’ हिन्दू देवी परंपरा में शक्तियों के रूप में जानी जाती हैं, और तांत्रिक परंपरा में इनका विशेष स्थान है।
18वीं शताब्दी तक यह मंदिर वर्तमान राणामहल में स्थित था, परंतु अब इस महल में मंदिर का कोई अवशेष नहीं बचा है। वर्तमान में चौसट्टी देवी मंदिर (स्थापित 1807 ई.) डी.22/17 एक निजी भवन में स्थित है। इसके अतिरिक्त घाट पर काली मंदिर, शिव, गणेश, तथा कार्तिकेय की मूर्तियों वाली कई देवकुलिकाएँ भी हैं, जो इसे धार्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण बनाती हैं।1
चौसट्टी घाट का इतिहास
चौसट्टी घाट का निर्माण 18वीं शताब्दी ई. के अंत में पूर्वी बंगाल के राजा दिग्पतिया द्वारा कराया गया था। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इस घाट का मूल निर्माण 16वीं शताब्दी ई. के अंत में बंगाल के राजा प्रतापादित्य ने करवाया था। समय के साथ यह घाट भंग हो गया था, जिसे राजा दिग्पतिया ने पुनः बनवाया।
18वीं शताब्दी तक इस घाट का विस्तार दक्षिण में वर्तमान दिग्पतिया घाट तक था। इस घाट का सबसे प्राचीन उल्लेख ‘गीर्वाणपद मंजरी’ में मिलता है, जहाँ इसे “चतुषष्टि योगिनी घट्ट” के रूप में वर्णित किया गया है।
प्रतापादित्य स्मारक
चौसट्ठी घाट के ऊपरी भाग में एक पीपल वृक्ष के समीप ही एक देवकुलिका है जिसे राजा प्रतापादित्य का स्मारक माना जाता है। यह स्मारक बंगाली समुदाय के लिए अत्यंत पूजनीय है। विशेष रूप से बंगाली महिलाएँ प्रथम पुत्र के जन्म के उपरांत मुण्डन संस्कार इसी स्मारक के समीप कराती हैं। घाट के समीपवर्ती क्षेत्र में बंगाली समुदाय के लोगों की बाहुल्यता है जिस कारण यह परंपरा आज भी जीवित है।
घाट पर स्नान आदि परंपरा
चौसट्ठी घाट पर दैनिक स्नान की परंपरा है और पर्व विशेष के अवसर पर यहाँ विशेष भीड़ देखने को मिलती है। फाल्गुन मास की शुक्ल एकादशी, जिसे रंगभरी एकादशी भी कहा जाता है, इस घाट पर सबसे महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। इस दिन वाराणसी और आसपास के क्षेत्रों से हजारों श्रद्धालु यहाँ स्नान एवं चौसट्टी देवी के दर्शन-पूजन के लिए पहुँचते हैं।
घाट का आधुनिक स्वरूप
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 1965 में घाट का पुनर्निर्माण कराया गया। घाट पर गंगा तट से लेकर गलियों तक पक्की और सुदृढ़ सीढ़ियाँ हैं, जो तीर्थयात्रियों और स्थानीय निवासियों के लिए सुगम मार्ग प्रदान करती हैं।
इस घाट की ये निम्न विशेषताएं हैं
- चौसट्टी देवी मंदिर
- चौसठ योगिनी मंदिर
- प्रतापादित्य स्मारक
- रंगभरी एकादशी
चौसट्ठी घाट, वाराणसी का एक प्राचीन, पवित्र और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध स्थल है। यह घाट न केवल गंगा स्नान की परंपरा से जुड़ा हुआ है, बल्कि तांत्रिक, शैव और शक्ति परंपरा के संगम का जीवंत प्रतीक भी है। बंगाली समुदाय की आस्था, ऐतिहासिक स्थापत्य, और चौसठ योगिनी देवी उपासना इस घाट को वाराणसी के प्रमुख घाटों में एक विशिष्ट स्थान प्रदान करते हैं।
यदि आप वाराणसी की आध्यात्मिकता को गहराई से समझना चाहते हैं, तो चौसट्ठी घाट की यात्रा अवश्य करें।
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सन्दर्भ
- History of Varanasi 1206 to 1761 Sachindra Pandey ↩︎