Last Updated on March 10, 2025 by Yogi Deep
वाराणसी के प्रसिद्ध घाटों में से एक नारद घाट अपने इतिहास, स्थापत्य और धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है। गंगा नदी के तट पर स्थित यह घाट पुरातन काल से ही तीर्थयात्रियों और इतिहासप्रेमियों के आकर्षण का केंद्र रहा है। आइए, इसके रोचक इतिहास और विशेषताओं को समझते हैं।
घाट का नाम | नारद घाट |
क्षेत्र | वाराणसी |
निर्माण | 19वीं सदी |
निर्माता | स्वामी दत्तात्रेय द्वारा निर्मित मंदिर |
विशेषता | नारदेश्वर शिव मंदिर एवं दत्तात्रेयेश्वर मंदिर |
दर्शनीय स्थल | घाट स्थित मंदिर एवं मठ |
नारद घाट का इतिहास
नारद घाट का प्राचीन नाम कुवाई घाट था जिसका उल्लेख इंग्लैंड के प्रसिद्ध विद्वान जेम्स प्रिन्सेप ने किया था। नादरदघाट का प्रथम उल्लेख ग्रीब्ज (1909 ई०) ने किया है। 19वीं सदी के मध्य में यहाँ नारदेश्वर शिव मंदिर का निर्माण हुआ और तब से ही इस घाट का नाम परिवर्तित हो कर नारद घाट पड़ा। मान्यता है कि इस शिवलिंग की स्थापना स्वयं देवर्षि नारद ने की थी। हालाँकि, कुछ लोग इस घाट को दत्तात्रेय घाट भी कहते हैं, क्योंकि 19वीं सदी के अंत में दक्षिण भारतीय संत स्वामी सतीवेदानंद दत्तात्रेय ने इसके पक्के निर्माण को संभव बनाया।

स्थापत्य और धार्मिक संरचनाएँ
स्वामी दत्तात्रेय ने न केवल घाट को पुनर्जीवित किया। घाट के ऊपरी भाग में दत्तात्रेयेश्वर (शिव) मंदिर, दत्तात्रेय मठ और कई अन्य भवनों का भी निर्माण स्वामी दत्तात्रेय द्वारा करवाया गया। घाट की सीढ़ियाँ चुनार के बलुआ पत्थर से बनी हैं, जो अपनी मजबूती और सुंदरता के लिए विख्यात हैं। यहाँ एक विशाल पीपल का वृक्ष भी है जिसके नीचे कुछ समय पहले तक 12वीं-13वीं सदी की प्राचीन विष्णु मूर्तियों के अवशेष देखे जा सकते थे। ये अवशेष इस स्थान के ऐतिहासिक महत्व को और बढ़ाते हैं।
वर्तमान में नारद घाट
20वीं सदी के मध्य तक घाट का बड़ा हिस्सा क्षतिग्रस्त हो चुका था। 1965 में उत्तर प्रदेश सरकार ने इसके जीर्णोद्धार की जिम्मेदारी ली और इसे पुनर्निर्मित किया। हालाँकि पहले यहाँ सफाई व्यवस्था की कमी के कारण स्नान करने वाले लोगों की संख्या कम हुआ करती थी। परन्तु वर्तमान प्रशाशन के देख रेख में यहाँ सफाई की व्यवस्था पहले के अपेक्षा बहुत सही हो चुकी है। यहाँ दत्तात्रेयेश्वर मठ द्वारा प्रतिदिन गरीबों को भोजन वितरित किया जाता है, जो इस स्थान की सेवाभावना को दर्शाता है।
घाट का महत्व
नारद घाट की यात्रा केवल धार्मिक नहीं, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक अनुभव भी प्रदान करती है। यहाँ का शांत वातावरण और प्राचीन अवशेष इसे अन्य घाटों से अलग बनाते हैं। यदि सफाई और रखरखाव पर ध्यान दिया जाए, तो यह स्थान पर्यटन की दृष्टि से बहुत सुन्दर है।
नारद घाट वाराणसी की धरोहर का एक अहम हिस्सा है, जो इतिहास, आस्था और समाजसेवा का अनूठा संगम प्रस्तुत करता है। यहाँ आकर आप न केवल पवित्र माँ गंगा के दर्शन करेंगे बल्कि भारत की सनातन संस्कृति की झलक भी महसूस कर सकते हैं।