Last Updated on February 28, 2025 by Yogi Deep
वाराणसी के पवित्र घाटों में चौकी घाट एक विशेष स्थान रखता है। केदारघाट के उत्तरी भाग से सटा यह घाट अन्य घाटों की तुलना में अधिक विस्तृत क्षेत्र में फैला हुआ है। यहाँ की संरचना और सांस्कृतिक महत्व इसे पर्यटकों और स्थानीय लोगों के बीच एक अनूठी पहचान देते हैं। आइए, इस घाट के इतिहास, वास्तुकला और सामाजिक जीवन से जुड़े रोचक तथ्यों को जानें।
घाट का नाम | चौकी घाट |
क्षेत्र | वाराणसी |
निर्माण | 19वीं सदी |
निर्माता | कुमारस्वामी मठ |
विशेषता | गली की चौमुहानी |
दर्शनीय स्थल | हनुमान एवं शिव मंदिर |
घाट का इतिहास
चौकी घाट का पक्का निर्माण 19वीं शताब्दी में कुमारस्वामी मठ द्वारा कराया गया था। हालाँकि, समय के साथ इसका दक्षिणी हिस्सा 1988 तक पूरी तरह से खंडित हो गया था। इसके बाद सिंचाई विभाग ने 1988 में दक्षिणी भाग का पुनर्निर्माण और उत्तरी भाग की मरम्मत करवाई, जिससे घाट का ऐतिहासिक महत्व बरकरार रह सका।

घाट पर स्थित प्रसिद्ध स्थल
चौकी घाट की खास बात यह है की इस घाट के ऊपरी भाग में स्थित गली की चौमुहानी (चार मार्गों का संगम) चार विशेष मार्गों को जोड़ते हैं: जिनमें पहला मार्ग केदारेश्वर, दूसरा मानसरोवर, तीसरा सोनारपुरा और चौथा सीधे घाट की सीढ़ियों से जुड़ता है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, इसी चौमुहानी के कारण ही इसका नाम “चौकी घाट” पड़ा। मुख्य घाट से गली तक पक्की सीढ़ियाँ बनी हैं, जो न केवल सुविधाजनक हैं बल्कि इसके ऐतिहासिक स्वरूप को भी दर्शाती हैं।
घाट के दक्षिणी भाग में स्थानीय लोगों की सुविधा के लिए आधुनिक शौचालय बने हैं, जबकि उत्तरी छोर पर सिवेज पंपिंग स्टेशन स्थापित किया गया है। यहाँ के निर्माण में पारंपरिक और आधुनिक तकनीक का सामंजस्य देखने को मिलता है।
घाट के ऊपरी भाग में हनुमान जी और शिव जी को समर्पित दो प्रमुख मंदिर हैं। हनुमान मंदिर के बारे में मान्यता है कि स्वयं तुलसीदास जी ने यहाँ मूर्ति की स्थापना की थी। यह मंदिर आस्था का केंद्र है और भक्तों को आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है। मंदिर के पास विशाल पीपल के पेड़ के नीचे “नाग पट्ट” स्थित है, जो स्थानीय लोगों के लिए पूजनीय स्थल है।
सामाजिक जीवन और आधुनिक सुविधाएँ
चौकी घाट पर स्नान करने वालों की संख्या अन्य घाटों की तुलना में कम है, लेकिन यहाँ का सामाजिक जीवन गतिशील है। घाट के ऊपरी हिस्से में बंगाली समुदाय की घनी आबादी है, जो इस क्षेत्र की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाती है। इसके अलावा, यहाँ दूध का क्रय-विक्रय भी होता है, जो स्थानीय अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
चौकी घाट न केवल वाराणसी के ऐतिहासिक और धार्मिक स्वरूप को प्रस्तुत करता है, बल्कि यह आधुनिक सुविधाओं और सामाजिक सद्भाव का भी उदाहरण है। यहाँ की चौमुहानी, प्राचीन मंदिर और स्थानीय जीवनशैली इसे एक अनोखा अनुभव बनाते हैं। यदि आप वाराणसी की यात्रा कर रहे हैं, तो चौकी घाट की शांति और इसके सांस्कृतिक वैभव को अवश्य देखें।