Last Updated on June 19, 2025 by Yogi Deep
अहिल्याबाई घाट गंगा तट पर स्थित वाराणसी के ऐतिहासिक घाटों में से एक है, जो अपनी स्थापत्य कला, धार्मिक महत्व और ऐतिहासिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है। यह घाट मुंशी घाट की उत्तरी सीमा से सटा हुआ है और इसकी स्थापना 1785 ई. में इन्दौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा कराई गई थी। यह घाट धार्मिक आस्था एवं इतिहास के एक प्रमुख केंद्र है।
घाट का नाम | अहिल्याबाई घाट |
प्राचीन नाम | केवलगिरि घाट |
क्षेत्र | वाराणसी |
निर्माण | 1785 ई० |
निर्माता | महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा |
विशेषता | अहिल्याबाई का विशाल महल |
दर्शनीय स्थल | हनुमान मंदिर (डी.17/18) |
घाट का इतिहास
इस घाट का प्राचीन नाम ‘केवलगिरिघाट’ था। हालांकि महारानी अहिल्याबाई द्वारा घाट के पुनर्निर्माण के पश्चात इसका नामकरण ‘अहिल्याबाई घाट’ किया गया, परन्तु स्थानीय लोग लंबे समय तक इसे केवलगिरि घाट के नाम से ही संबोधित किया करते थे। प्रिन्सेप (1831 ई०) ने भी इस घाट का उल्लेख केवलगिरि घाट नाम से ही किया है। शेरिंग (1868 ई०) ने इस घाट का उल्लेख अहिल्याबाई घाट नाम से किया है जिससे ज्ञात होता है कि इस समय तक यह घाट अहिल्याबाई के नाम से लोकप्रिय हो गया था।
अहिल्याबाई होल्कर

अहिल्याबाई होल्कर (1725–1795) मराठा साम्राज्य की महान रानी थीं। उनका जन्म महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के चौंडी गाँव में हुआ था। अत्यंत कम उम्र में विवाह और फिर वैधव्य का जीवन जीते हुए उन्होंने न केवल अपने राज्य को सफलतापूर्वक संभाला, बल्कि पूरे भारत में धार्मिक और सामाजिक कार्यों को नया स्वरूप दिया।
उन्होंने देशभर के तीर्थस्थलों पर मंदिर, घाट, बावड़ियाँ, कुएँ और धर्मशालाएँ बनवाईं। उनके द्वारा पुनर्निर्मित सोमनाथ मंदिर और काशी विश्वनाथ मंदिर आज भी उनके योगदान की जीवंत प्रतिरूप हैं।
घाट की विशेषताएँ
अहिल्याबाई घाट का मुख्य आकर्षण चुनार के बलुआ पत्थर से बनी सीढ़ियाँ हैं, जो गंगातट से लेकर महल तक जाती हैं। इन सीढ़ियों के बीच-बीच में चौकियाँ बनी हैं, जहाँ यात्री विश्राम कर सकते हैं। घाट पर मढ़ियों का निर्माण भी हुआ है। घाट पर स्थित तीन प्रमुख बरामदे, जो अब घाटिया एवं मल्लाहों का निवास स्थान बन चुके हैं, पहले तीर्थयात्रियों के ठहरने के लिए बनाए गए थे।

इस घाट पर स्थित अहिल्याबाई का विशाल महल, अहिल्याबाई बाड़ा (डी.18/16) और हनुमान मंदिर (डी.17/18) इसकी धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता को और बढ़ाते हैं। घाट पर दो प्राचीन शिव मंदिर भी स्थित हैं, जिनमें कई देवकुलिकाएँ हैं – यहाँ मूर्तियों की प्रतिष्ठा की गई है।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
अहिल्याबाई घाट पर स्नान करना पवित्र माना जाता है, विशेष रूप से धार्मिक पर्वों और स्नान उत्सवों के दौरान यह घाट श्रद्धालुओं से भर जाता है। इस घाट से जुड़ा हनुमान मंदिर और शिव मंदिर भी पूजा-अर्चना के लिए प्रमुख स्थल हैं।
वाराणसी यात्रा में क्यों जाएँ अहिल्याबाई घाट?
- ऐतिहासिक महत्त्व: 18वीं शताब्दी की विरासत और स्थापत्य कला का जीवंत प्रतिरूप
- धार्मिक आस्था: हनुमान मंदिर, शिव मंदिर, गंगास्नान और पुराणों से जुड़ा महत्व
- स्थापत्य सौंदर्य: चुनार पत्थर की सीढ़ियाँ, विशाल महल, देवकुलिकाएँ
- संतुलित वातावरण: गंगा के किनारे शांतिपूर्ण और ध्यानस्थ स्थान
अहिल्याबाई घाट वाराणसी की धार्मिक और ऐतिहासिक धरोहरों में एक अनमोल रत्न है। यह घाट न केवल महारानी अहिल्याबाई होल्कर की दूरदर्शिता और परोपकारी सोच का प्रतीक है, बल्कि गंगा की पवित्रता और भारतीय सांस्कृतिक विरासत का भी प्रतीक बन चुका है। यदि आप वाराणसी की यात्रा पर हैं, तो इस घाट का भ्रमण अवश्य करें – यह आपको इतिहास, श्रद्धा और आत्मिक शांति तीनों का अद्भुत संगम प्रदान करेगा।