वाराही घाट, वाराणसी

लेख - Yogi Deep

Last Updated on July 23, 2025 by Yogi Deep

वाराही घाट वाराणसी के प्राचीन घाटों में से एक है, जिसका धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व अत्यंत गहरा है। यहाँ वाराही देवी का मंदिर होने के कारण यह घाट वाराही घाट के नाम से प्रसिद्ध हो गया। यह घाट काशी की सांस्कृतिक विरासत को संजोए हुए है। आइये विस्तार से इस घाट के बारे में जानते हैं।

घाट का नामवाराही घाट
क्षेत्रवाराणसी
निर्माणसन 1958 ई०
निर्मातासिंचाई विभाग उत्तर प्रदेश
विशेषतावाराही देवी
दर्शनीय स्थलवाराही देवी मंदिर

वाराही घाट का इतिहास

वैसे तो इस घाट का इतिहास अत्यंत प्राचीन है परन्तु प्राप्त लेखों एवं सन्दर्भों के आधार पर प्राप्त जानकारियों के अनुसार सन 1958 ई० से पूर्व यह घाट कच्चा हुआ करता था एवं उत्तर दिशा में स्थित त्रिपुरभैरवी घाट का ही भाग था। बाद में उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग सरकार द्वारा इसका पक्का निर्माण कराया गया और तभी से इसे वाराही घाट के नाम से जाना जाने लगा।

Varahi Ghat Varanasi, वाराही घाट
Varahi Ghat Varanasi, वाराही घाट

घाट पर स्थित एक विशाल प्रसिद्ध मकान भी है जो मणिकर्णिका घाट (श्मशान) के डोम राजा कैलाश चौधरी का है, जिन्हें काशी का दूसरा राजा भी कहा जाता है। पूर्व समय में डोम राजा का काशी नरेश के सामान स्वयं का प्रतिक चिन्ह (सिंह) भी था। इस भवन की उत्तरी दिशा में गंगा तट से गली तक पक्की सीढ़ियाँ बनाई गई हैं। घाट के ऊपरी भाग में आज भी हरिजन बाहुल्य समाज देखने को मिलता है।1

वाराही देवी मंदिर

इस काशी क्षेत्र में महादेव के साथ-साथ नौ दुर्गा, नौ गौरी के साथ ही 64 योगिनियां भी काशी में विराजमान हैं, यह देव भूमि देवियों की भी भूमि है। वाराही घाट से कुछ ही दूरी पर गली में प्रसिद्ध वाराही देवी मंदिर (डी.16/84) भी स्थित है। यह मंदिर मान मंदिर घाट के पास स्थित है। काशी की अष्ट मातृकाओं में वाराही देवी का नाम प्रमुख रूप से आता है।

सवाई मानसिंह द्वितीय संग्रहालय जयपुर से प्राप्त चित्रों में भी इस मंदिर का उल्लेख मिलता है, जो इसके प्राचीन और पौराणिक महत्व को दर्शाता है। यह मंदिर जमीन से एक मंज़िल नीचे स्थित है, अतः श्रद्धालु छत पर बने झरोखे से दर्शन करते हैं। काशी की क्षेत्रपालिका के रूप में काशी की रक्षा करने वाली वाराही देवी भक्तों की हर कामनाएं पूर्ण करती हैं।

मंदिर के कपाट प्रातः भोर में मंगला आरती के पश्चात खुलते हैं, आम श्रद्धालु सुबह 7:00 से 8:30 बजे तक दर्शन कर सकते हैं। इसके बाद मंदिर के कपाट बंद हो जाते हैं। देवी वाराही को भगवान विष्णु के वराह अवतार की शक्ति स्वरूपा माना जाता है, इनका शीश जंगली सूकर का है। इस प्रकार की दिव्य मूर्तियाँ काशी में वैसे कम ही हैं परन्तु माता वाराही देवी की यह मूर्ति उन सभी में दिव्य है।2

घाट की वर्तमान स्थिति

एक समय था जब घाट के ऊपरी भाग से गंदे पानी की निकासी के कारण घाट पर काफी गंदगी रहती थी। लेकिन आज के समय में वाराही घाट पूरी तरह से स्वच्छ और सुव्यवस्थित है। यहाँ आकर गंगास्नान के बाद देवी वाराही के दर्शन का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि यहाँ स्नान और देवी के दर्शन से मनुष्य को सभी विपत्तियों से मुक्ति मिलती है।

हालाँकि वर्तमान में श्रद्धालु अक्सर त्रिपुर भैरवी घाट पर स्नान करने के बाद देवी वाराही के दर्शन-पूजन के लिए जाते हैं, लेकिन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार स्नान वाराही घाट पर ही करना अधिक पुण्यदायक माना गया है।


वाराही घाट, वाराणसी न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह घाट काशी के इतिहास, संस्कृति और आध्यात्मिक चेतना का भी प्रतीक है। यहाँ देवी वाराही का मंदिर आस्था का केन्द्र है और गंगास्नान के बाद इनके दर्शन से भक्तों की मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।

यदि आप वाराणसी की यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो वाराही घाट और वहाँ स्थित वाराही देवी मंदिर अवश्य जाएँ — जहाँ आस्था और दिव्यता का अनूठा संगम आपको आत्मिक शांति का अनुभव कराएगा।

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सन्दर्भ

  1. काशी के घाट और उनका सांस्कृतिक महत्व – सहायक निदेशक पर्यटन कार्यालय वाराणसी ↩︎
  2. अमर उजाला लेख ↩︎
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