Last Updated on December 14, 2024 by Yogi Deep
काशी में माँ गंगा के शांत तट पर स्थित श्री काशी विश्वनाथ मंदिर भारत में स्थित द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है। भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर काशी के प्रमुख मंदिरों में अग्रणी है। काशी में स्थित इस मंदिर को श्री काशी विश्वनाथ या विश्वेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। जिसका अर्थ है ‘संपूर्ण विश्व के ईश्वर’ अथवा ‘संपूर्ण विश्व के नाथ’।
मन्दिर का नाम | श्री काशी विश्वनाथ मंदिर |
स्थान | विश्वनाथ गली, वाराणसी, 221001 |
देवता | काशी विश्वनाथ |
निर्माण शैली | हिन्दू वास्तुकला |
निर्माता | महारानी अहिल्या बाई होल्कर |
निर्मित वर्ष | 1780 |
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर
विश्व की प्राचीनतम जीवित नगरी काशी हिंदू धर्मावलंबियों का एक महत्वपूर्ण तीर्थ है। द्वादश ज्योतिर्लिंग मे से सबसे ज्यादा प्रसिद्ध बाबा विश्वनाथ यहीं विराजमान हैं। वर्तमान में बाबा विश्वनाथ धाम विश्वनाथ कॉरिडोर के नाम से भले ही प्रसिद्ध और वैभवशाली है लेकिन इतिहास इस महत्वपूर्ण धाम की विध्वंस और निर्माण का साक्षी रहा है। ऐसा माना जाता है कि काशी का यह मंदिर भगवान शिव के त्रिशूल पर स्थित है एवं प्रलय काल में भी इस नगरी का नाश नहीं होता है।
काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास
ऐतिहासिक दृष्टिकोण से यदि हम काशी विश्वनाथ को देखते हैं तो काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार 11वीं सदी में राजा हरिश्चंद्र ने कराया था। जिसे 1194 में मोहम्मद गोरी ने हमला कर तुड़वा दिया। स्थानीय धर्मावलंबियों ने जैसे तैसे मंदिर को पुनः बनाया। लेकिन कुछ ही दिनों बाद कुतुबुद्दीन ऐबक और शहाबुद्दीन गौरी ने 1194 में काशी को जीत लिया और उन्होंने अपनी सत्ता सूबेदार सैयद जमालुद्दीन के हाथों में दी। सैयद जलालुद्दीन एक कट्टर शासक था और मूर्ति पूजा को समाप्त करने के लिए उसने काशी में विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त करते हुए काशी में भयंकर रक्तपात किया।
लगभग 200 सालों तक की चुप्पी के बाद 14वीं शताब्दी की शुरुआत में जौनपुर के सुल्तान मोहम्मद शाह ने काशी विश्वनाथ मंदिर को फिर से तुड़वा दिया। अकबर के शासनकाल में उनके मंत्री राजा टोडरमल के सहयोग से नारायण भट्ट द्वारा काशी विश्वनाथ मंदिर को पुनः बनवाया गया।
टोडरमल के काल में हुए कार्यों के लिए टोडरमल के पुत्र गोवर्धन को बड़ा श्रेय जाता है। काशी विश्वनाथ मंदिर को सबसे बड़ा नुकसान क्रूर शासक औरंगजेब के काल में हुआ 18 अप्रैल सन 1669 को औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने का आदेश दिया । यह शाही फरमान ‘एशियाटिक लाइब्रेरी कोलकाता’ में आज भी रखा हुआ है जिसमें औरंगजेब ने अपनी सेना से कहा कि न केवल इस मंदिर को तोड़ दिया जाए बल्कि यह भी निश्चित किया जाए कि यहां कोई और मंदिर ना बन सके। मंदिर को तोड़ने में काफी वक्त लगा 2 सितंबर 1669 की तारीख को औरंगजेब को इस मंदिर के तोड़े जाने की सूचना दी गई थी।
काशी विश्वनाथ मंदिर निर्माण
सन 1777 से 80 के बीच इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने पुनः इस मंदिर का निर्माण कराया। कालांतर में पंजाब के राजा रणजीत सिंह ने स्वर्ण पत्रों से मंदिर के शिखर को मंडित कराया। ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने प्रसिद्ध विश्वनाथ के मंडप का निर्माण कराया और नेपाल महाराज ने यहां विशाल नदी की प्रतिमा बनवाई। अगर ऐतिहासिक साक्ष्य की समीक्षा की जाए तो 11वीं से सदी से लेकर 17वीं सदी तक के कालखंड में मंदिर के निर्माण और विध्वंस की घटनाएं चलती रही।
काशी विश्वनाथ मंदिर की संरचना
काशी विश्वनाथ मंदिर का प्राचीन परिसर मात्र 3000 वर्ग फीट का था और आज श्री काशी विश्वनाथ धाम 5 लाख वर्ग फीट में विस्तार पा चुका है। प्राचीन मंदिर के मंडप को स्वर्ण मंदिर करने के लिए पंजाब के तत्कालीन महाराजा रणजीत सिंह 64 मन सोना दान किया था यानी तब 2389 किलोग्राम सोना महाराजा रणजीत सिंह ने दिया था।
इसी तरह वर्तमान में बाबा के किसी दक्षिण भारतीय भक्त ने इससे भी कहीं बहुत ज्यादा सोना बाबा को गुप्त दान कर काशी विश्वनाथ के गर्भगृह के अंदर और बाहर की दीवारों को स्वर्ण मंदिर कर दिया।
विश्वनाथ कॉरिडोर एक नजर में
वर्तमान में काशी विश्वनाथ धाम बिल्कुल नए कलेवर में प्रस्तुत है। जिसे काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के नाम से जाना जाता है। मंदिर के चारों ओर खूबसूरत विशाल द्वारों का निर्माण किया गया है। जिसमें चुनार के बलुआ पत्थर और मकराना संगमरमर का उपयोग करते हुए खूबसूरत नक्काशी की गई है। मंदिर परिसर की प्रदक्षिणा मार्ग को इस तरह सजाया गया है कि श्रद्धालुओं को धार्मिक अनुभूति हो।
मंदिर कॉरिडोर में यात्रियों की सुविधा के लिए यात्री सुविधा केंद्र बनाया गया है जिसमें उन्हें उनकी ही भाषा में हर तरह की जानकारी दी जाती है श्रद्धालुओं के लिए सिक्योरिटी चेकिंग से लेकर मुफ्त लाकर तक की सुविधा उपलब्ध है।
बाबा धाम की वृहद और विस्तारित स्वरूप को बनाने के लिए 489.05 करोड रुपए केवल मंदिर के आसपास के भवन को खरीदने के लिए खर्च किया गया है। करीब 386.70 करोड रुपए विभिन्न भवनों के निर्माण पर खर्च किए गए।इस दौरान 40 ऐसे मंदिर मिले जो विभिन्न घरों में स्थापित थे जिनको जनसामान्य जानता ही नही है।
संग्रहालय
विश्वनाथ कॉरिडोर के भीतर ही एक काशी की सनातन परम्परा से जुड़ा हुआ विश्वप्रसिद्ध संग्रहालय बना है। जिसमें दो मंजिला भवन और एक रिसेप्शन है जहां श्रद्धालुओं के स्वागत के अलावा उन्हें काशी से जुड़ी तमाम जानकारी दी जाती है।
मुमुक्षु भवन
एक प्राचीन सूक्ति है कि काशी में मरने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है इसलिए काशी में आने वालों की संख्या बहुत ज्यादा है। मुमुक्षु भवन वस्तुत काशी में आने वाले सभी वृद्ध यात्रियों एवं अस्वस्थ लोगों की देखभाल के लिए निर्मित किया गया है यह तीन मंजिला भवन 1161 वर्ग मीटर में बना हुआ है भवन में बेड के अलावा अन्य सुविधाओं का प्रबंध है।
वैदिक केंद्र
सनातन वैदिक भारतीय परंपरा को और भारत की मीमांसा की संरक्षण के लिए 986 वर्ग मीटर में वैदिक केंद्र भवन बनाया गया है। भवन का उपयोग आध्यात्मिक प्रदर्शनी,सभा और समारोह आयोजित करने के लिए इसके अलावा कॉरिडोर में दो मंजिला बहुद्देशीय हाल बनाया गया है। इसका उद्देश्य जनता की सेवा के कार्यों के संचालन के लिए पर्यटन सुविधा केंद्र का निर्माण किया गया है।
पर्यटन सुविधा केंद्र
इस केंद्र के निर्माण का उद्देश्य मणिकर्णिका घाट पर एक हाल बनाकर लकड़ियों को व्यवस्थित करना, उपरी मंजिल पर यात्रियों के लिए सुविधा और जानकारी उपलब्ध कराना है। इसके अलावा यात्रियों के लिए स्त्री और पुरुष शौचायलयों की अलग-अलग व्यवस्था जलपान गृह, आध्यात्मिक बुक स्टोर का भी निर्माण किया गया है।
शॉपिंग कंपलेक्स
काशी विश्वनाथ कॉरिडोर में श्रद्धालुओं के लिए एक समान और रियायती दर पर रुद्राक्ष,स्फटिक, चंदन की माला, शिवलिंग नन्दी विभिन्न धातु के पूजा पाठ की सामग्री,दान की वस्तुएं और अन्य उपयोगी सामानों के लिए दुकान भी बनाए गए हैं । जिससे श्रद्धालुओं को सुविधा के साथ काशी में रोजगार की भी वृद्धि हुई है।
काशी विश्वनाथ मंदिर आरती
मंगला आरती
ब्रह्म मुहूर्त में 3:00 बजे से 4:00 बजे के बीच होने वाली प्रतिदिन की आरती है भोर में बाबा का मंदिर खुलते ही मंदिर के चार अर्चक बाबा की आरती करते हैं इस पूजन में षोडसोपचार पूजा और श्रृंगार के बाद आरती की जाती है। मंगला आरती के बाद प्रातः 4:00 बजे मंदिर दर्शनार्थियो लिए खोल दिया जाता है।
मध्याह्न भोग आरती
प्रतिदिन 11:15 से लेकर 12:20 बजे तक बाबा के मध्यान्ह भोग आरती की जाती है।काशी विश्वनाथ के षोडशोपचार पूजा तथा रुद्राभिषेक और श्रृंगार के उपरांत आरती की जाती है। मध्यान भोग में तिथि के अनुसार फलाहार और खाद्य सामग्री की भोग लगाने की परंपरा है। सोमवार को पूरी सब्जी एवं अन्य दिनों में दाल चावल रोटी सब्जी और सूजी के हलवे का भोग लगता है।
एकादशी पर मखाने का खीर या कुट्टू के आटे की पूरी और आलू की सब्जी का भोग लगता है। आरती के पश्चात यह भोग श्रद्धालुओं में वितरित किया जाता है। इस भोग आरती का प्रसाद प्रतिदिन दंडी स्वामियों को कराया जाता है और भोजन के बाद सभी संन्यासियों को 101 रुपए की दक्षिणा भी दी जाती है।
सायं कालीन सप्त ऋषि आरती
सप्त ऋषियों कश्यप अत्रि वशिष्ठ विश्वामित्र गौतम जमदग्नि और भारद्वाज ऋषि के नाम से प्रतिदिन होने वाली आरती है। यह प्रतिदिन सायं 7:00 बजे से 8:15 के बीच की जाती है। लेकिन हर पूर्णिमा को इसका समय बदल जाता है पूर्णिमा को सप्तऋषि आरती सायं 6:00 बजे से 7:15 के बीच की जाती है।
इस दौरान मंदिर के चार अर्चक और सात व्यक्तिगत पुजारी शामिल होते हैं। इसमें बाबा की प्रार्थना और आरती की जाती है इस आरती की खासियत यह है कि इसे निश्चित स्थान पर बैठकर निश्चित परिवार द्वारा उनकी पाली के अनुसार ही किया जाता है। किसी जमाने में राजाओं और शासको के खजाने से इन पुजारी को आरती के संचालन में व्यय की प्रतिपूर्ति की जाती थी।
शृंगार/भोग आरती
सबसे विशिष्ट आरती है इसमें बाबा का श्रृंगार काशीपुराधिश्वर के रूप में किया जाता है यह पूर्ण रूप से वैदिक आरती है। जिसमें विधि विधान से षोडसोपचार पूजा रुद्राभिषेक तथा श्रृंगार के साथ आरती की जाती है। आरती रात्रि में 9:00 बजे से 10:15 बजे के बीच की जाती है।
शयन आरती
यह प्रतिदिन की आरती के क्रम की अंतिम आरती होती है यह रोज रात्रि में 10:30 बजे से 11 के बीच की जाती है विशेष अवसरों पर जब मंदिर रात भर खुला रहता है तभी आरती नहीं की जाती है इस आरती में बाबा के शयन के लिए वहां उपस्थित समस्त भक्त लोरी गाते हैं।
इस आरती को भजन के रूप में किया जाता है। उपरांत 11:00 बजे मंदिर का कपाट बंद कर दिया जाता है और फिर अगले दिन मंगला आरती के वक्त प्रातः काल में खुलता है। ऑनलाइन आरती रजिस्ट्रेशन के लिए आप काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट की वेबसाइट पर जा कर बुकिंग कर सकते हैं।
कैसे पहुंचे काशी विश्वनाथ मंदिर
मंदिर आप वायु मार्ग, रेल मार्ग एवं सड़क तीनो मार्गों से पहुँच सकते हैं।
वायु मार्ग से
वायु मार्ग द्वारा आप सीधे लाल बहादुर शास्त्री अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, बाबतपुर पर उतर सकते हैं। वाराणसी आने के लिए आपको दिल्ली से भी कनेक्टिंग फ्लाइट मिल जाती है। यह वाराणसी को दिल्ली के साथ-साथ मुंबई, कोलकाता, हैदराबाद, चेन्नई, अहमदाबाद, भुवनेश्वर, आगरा, खजुराहो, गया तथा लखनऊ आदि एयरपोर्ट्स के साथ जोड़ता है।
रेल मार्ग से
वाराणसी का रेल मार्ग देश के सभी प्रमुख महानगरों एवं बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है, जिसके माध्यम से आप देश के किसी भी कोने से डायरेक्ट अथवा कनेक्टिंग रेल मार्ग के द्वारा वाराणसी शहर में बड़े ही आसानी से पहुंच सकते हैं।
सड़क मार्ग से
वाराणसी शहर तीन राष्ट्रीय राजमार्गों द्वारा जुड़ा हुआ है। जिन में NH2 जो कोलकाता से दिल्ली तक को जोड़ता है, NH7 जो कन्याकुमारी से जुड़ा हुआ है एवं NH29 गोरखपुर के साथ जुड़ा हुआ है, जो देश के सभी प्रमुख सड़कों से जुड़ा हुआ है।
काशी विश्वनाथ मंदिर दर्शन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां
- काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर में जाने हेतु दो रास्ते हैं। पहले रास्ता गंगा के तट से होकर मंदिर परिसर तक जाता है एवं दूसरा रास्ता गोदौलिया स्थित विश्वनाथ गली से होकर जाता है।
- सुरक्षा की दृष्टिकोण से मंदिर परिसर में किसी भी प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस अथवा गैजेट ले जाना प्रतिबंधित है। इसमें स्मार्ट वॉच एवं मोबाइल फोन भी शामिल है।
- विश्वनाथ मंदिर में प्रवेश करने से पूर्व आप अपने सामान को वहां आसपास उपलब्ध लकार में भी रख सकते हैं। जहां आप अपने जूते, चमड़े के बेल्ट, चमड़े के पर्स इत्यादि रख सकते हैं।
- मंदिर प्रतिदिन प्रातः 2:30 AM पर खुल जाता है। जहां श्रद्धालु 2:30 AM से लेकर 3:00 AM तक मंदिर परिसर में प्रवेश कर सकते हैं।
- बाबा विश्वनाथ के दर्शन एवं आरती हेतु आप ऑनलाइन बुकिंग भी कर सकते हैं। बुकिंग के लिए आप श्री काशी विश्वनाथ ट्रस्ट वेबसाइट पर जाकर दर्शन एवं आरती हेतु अलग-अलग बुकिंग कर सकते हैं।
FAQs
काशी विश्वनाथ मंदिर क्यों प्रसिद्ध है?
काशी विश्वनाथ मंदिर भारत में स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक होने के कारण प्रसिद्ध है।
काशी विश्वनाथ दर्शन कैसे करे?
विश्वनाथ मंदिर में दर्शन आप भोर में 3 बजे से लेकर रात्रि में 11 बजे तक कभी भी कर सकते हैं।
काशी विश्वनाथ मंदिर दर्शन समय
विश्वनाथ मन्दिर भोर में 3 बजे खुल जाता है एवं यह रात्रि में 11 बजे तक खुला रहता है।
काशी विश्वनाथ मंदिर जाने का रास्ता
मंदिर में जाने के 2 मुख्य द्वार है, पहला सीधे गंगा घाट से एवं दूसरा विश्वनाथ गली से
काशी विश्वनाथ मंदिर का टिकट कितना है?
मंदिर में दर्शन, पूजन एवं आरती के लिए अलग-अलग टिकट हैं, जिन्हें आप विश्वनाथ ट्रस्ट के वेबसाइट से बुक कर सकते हैं।
काशी विश्वनाथ मंदिर में किस चीज की अनुमति नहीं है?
मंदिर परिसर में किसी भी प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस ले जाने की अनुमति नहीं है। जिनमें आपके स्मार्ट वाच एवं मोबाइल फ़ोन भी शामिल है।
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर पर इस लेख को बिना किसी त्रुटि के साथ लिखने का प्रयास किया गया है। अभी हो सकता है आपको इस लेख में स्रोतों की कमी मिले, परंतु हम इसे यथाशीघ्र सही करने का प्रयास करेंगे। यदि इस लेख में कोई भी त्रुटि हो तो कृपया हमारे कांटेक्ट पेज पर जाकर हमें अवश्य सूचित करें। यदि आपके पास श्री काशी विश्वनाथ मंदिर से संबंधित कोई भी अन्य जानकारी हो अथवा आपके पास इससे संबंधित पुरानी तस्वीर हो तो आप हमसे साझा कर सकते हैं, हम आपके द्वारा दी गई जानकारी को इस वेबसाइट पर प्रकाशित करेंगे।
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