Last Updated on December 14, 2024 by Yogi Deep
रीवा घाट – Reewa Ghat अथवा लाला मिसीर घाट अथवा बनारस के सुंदर घाटों में से एक है, इस घाट का नाम रीवा नरेश के नाम पर पड़ा है। इससे पहले इस घाट को लोग लाला मिसीर घाट अथवा लीलाराम घाट के नाम से जानते थे। कालांतर में यह घाट असि (अस्सी) घाट का ही एक हिस्सा था। जिसे बाद में रीवा के राजा नें इस घाट को क्रय कर लिया एवं इसे एक सुन्दर रूप दिया। यहाँ रीवा महल भी स्थित है जिसे रीवां कोठी के नाम से जाना जाता है। वर्तमान में यह कोठी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के अंतर्गत है। इसे छात्रावास के रूप में प्रयोग किया जाता है।
आइये जानते हैं इस घाट का मिसीर घाट से लेकर रीवा घाट बनाने तक का सफ़र कैसे शुरू हुआ?
घाट का नाम | रीवा घाट |
क्षेत्र | वाराणसी |
निर्माण | 1879 ईस्वी |
निर्माता | रीवा के महाराज |
विशेषता | गंगा आरती |
दर्शनीय स्थल | लक्ष्मीनारायण मंदिर |
रीवा घाट
पंजाब के राजा रणजीत सिंह के पुरोहित लाला मिसिर नें सर्वप्रथम इस घाट का निर्माण करवाया था।1 इसके साथ ही उन्होंने यहां एक सुंदर महल का निर्माण भी करवाया। वस्तुतः यह घाट लाला मिसिर घाट के नाम से प्रसिद्ध हो गया। कई वर्षों बाद सन 1879 में इस घाट को रीवा के महाराज ने क्रय कर लिया एवं इस घाट का सुंदरीकरण भी कराया।
इसके बाद से यह घाट रीवा घाट एवं महल रीवा महल अथवा रीवा कोठी के नाम से प्रसिद्ध हो गया। कुछ समय उपरांत रीवा महल को काशी नरेश ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय को दान में दे दिया। वर्तमान में इस कोठी का प्रयोग दृश्य एवं संगीत कला के विद्यार्थियों के छात्रावास हेतु किया जाता है।
इतिहास
यह घाट स्वयं में कई ढेर सारी ऐतिहासिक धरोहरों एवं मान्यताओं को समेटे हुए हैं। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से देखे तो कालांतर में यह घाट असि (अस्सी) घाट का ही भाग हुआ करता था। परंतु समय के साथ धीरे-धीरे इनका विस्तार हुआ एवं असि घाट से कई अन्य घाट बने, जिन में क्रमशः अस्सी घाट, गंगा महल घाट, रीवा घाट एवं तुलसी घाट इत्यादि अलग-अलग भाग में बटे हुए हैं।
इन घाटों का इतिहास सैकड़ो वर्ष प्राचीन है। पंजाब के राजा रणजीत सिंह के पुरोहित लाला मिसिर जी के घाट एवं महल निर्माण से लेकर रीवा घाट एवं रीवा कोठी बनते बनते इस घाट का स्वरूप और भी सुंदर हो गया। आज भी यदि आप देखेंगे तो उसे महल पर रीवां कोठी, बनारस 1879 राज चिन्ह के साथ अंकित है।
वर्तमान में रीवा घाट
सूरज की पहली किरण से ही इस घाट पर एक अलौकिकता का अनुभव होता है। अगल-बगल के घाटों की तुलना में यह घाट काफी शांत है। यहां से मां गंगा के सूर्योदय का दृश्य भी बेहद मनमोहक लगता है। प्रातः काल के समय अक्सर इस घाट पर योग मुद्रा में ध्यान करते लोग दिख जाते हैं।
एवं शाम के समय रीवा कोठी पर आपको देश विदेश के संगीत के विद्यार्थियों की जुगलबंदी भी सुनने को मिल जाती है, जिसे देखना सुनना काफी आनंददायक लगता है। कई लोग अस्सी घाट के भीड़ से बचने के लिए यहां आकर शांति से बैठते हैं।
कैसे पहुंचे
यह घाट अस्सी घाट के ठीक बगल में स्थित है, अतः आप अस्सी घाट से पैदल ही इस घाट पर आ सकते हैं। अस्सी घाट तक आप दो पहिया चार पहिया अथवा ऑटो से आ सकते हैं। यहां आपको पार्किंग की सुविधा भी मिलती है।
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सन्दर्भ
- KASHI THE CITY ILLUSTRIOUS OR BENARES Book BY EDWIN GREAVES ↩︎