Last Updated on December 14, 2024 by Yogi Deep
रामनगर किला जितना प्राचीन है उससे भी अधिक प्राचीन है इसका इतिहास, गंगा के शांत तट पर वाराणसी में स्थित यह रामनगर दुर्ग (किला) अपने आप में एक ऐतिहासिक विरासत समेटे हुए है। यह किला जितना प्राचीन उससे भी प्राचीन और रोचक है इसके बनने की कहानी। रामनगर का यह किला पर्यटन के लिए भी प्रसिद्ध है यहाँ प्रति दिन देश विदेश से सैकड़ों पर्यटक घूमने आते हैं।
किला ही नहीं बल्कि इसके अन्दर बनी और भी कई चीजें हैं जिनकी कहानी बहुत रोचक है, जिनमें रामनगर की धर्म घड़ी सबसे प्रसिद्ध है इसके आलावा रामनगर दुर्ग संग्रहालय, काशीराज ग्रंथालय, काले हनुमान जी और भी अन्य कई ऐसी ही रोचक चीजें हैं जिनके बारे में आगे आपको विस्तार पूर्वक लिखा गया है।
धरोहर | रामनगर दुर्ग (किला) |
स्थान | रामनगर, वाराणसी |
निर्माण | 1742 – 1750 |
सामग्री | बलुआ पत्थर और सूर्खी-चूना |
निर्माता | काशी नरेश महाराजा बलवंत सिंह |
निर्मित वर्ष | 1750 ईस्वी |
रामनगर किला (रामनगर दुर्ग)
राजा बलवंत सिंह, जो राजा मंशाराम के पुत्र थे, ने 1752 में इसे अपना मुख्यालय बनाया और गंगापुर से यहाँ स्थानांतरित कर दिया। किले का वर्तमान रूप विभिन्न चरणों में निर्मित हुआ, जिसमें नई और पुरानी हवेली, दरबार हॉल, और बाऊ साहब की कोठी शामिल हैं। किले में कुल 1010 कमरे और सात आंगन हैं, जो इसकी विशालता को दर्शाते हैं। इसकी वास्तुकला देशी और विदेशी शैलियों का अद्भुत मिश्रण है, जो इसे अन्य किलों से अलग और खास बनाती है।
इस किले का निर्माण सन् 1750 में काशी नरेश महाराजा बलवंत सिंह नें कराया था, परन्तु किले की नींव 1742 में राजा मंशाराम ने रखी थी, जो उस समय एक साधारण चहारदीवारी थी। आज भी इसके दक्षिणी भाग में उस कच्ची दीवार के अवशेष मौजूद हैं।
किले का निर्माण, सुधार, और विस्तार का कार्य 1899 तक जारी रहा। सामरिक और सुरक्षा की दृष्टि से इसकी स्थिति अत्यंत महत्वपूर्ण है। गंगा नदी के कारण, किला प्राकृतिक रूप से आक्रमणों से सुरक्षित है। फिर भी, यदि कोई आक्रमण होता है, तो किले की ऊँची पत्थर की दीवारों में बने छेद दुश्मन पर गोलियाँ बरसाने के लिए बनारस राज्य की बंदूकों का उपयोग कर सकते हैं। पश्चिमी द्वार पर गंगा के जलस्तर को मापने के लिए एक मानक चिन्ह भी है, जो बाढ़ के समय में काशी के लोगों पर पड़ने वाले प्रभावों का आकलन करने में महाराज बनारस की मदद करता है।
रामनगर किले में स्थित चार द्वारों में से, पूर्वी दिशा का लाल दरवाजा इसका प्रमुख प्रवेश द्वार है। किले के भीतर दो विशाल आंगन हैं, जिनमें से एक लाल दरवाजे के आगे और दूसरा झंडा द्वार के बाद स्थित है, जहाँ रामनगर की प्रसिद्ध रामलीला के कोट-विदाई के दृश्य का मंचन होता है। यहाँ यह विश्वास किया जाता है कि रामजी अयोध्या से काशी एक माह के लिए आते हैं और आश्विन पूर्णिमा के दिन काशी नरेश उन्हें विदाई देते हैं। इस आकर्षक अनुष्ठान को देखने के लिए हजारों लोग एकत्रित होते हैं।
झंडा द्वार का नामकरण इसलिए हुआ क्योंकि इसके शिखर पर बनारस राज्य का ध्वज फहराया जाता है, जिस पर दो मछलियों के बीच सूर्य का चित्र अंकित है। यह ध्वज तब तक लहराता रहता है जब तक काशी नरेश किले में उपस्थित होते हैं, और उनके नगर से बाहर जाने पर इसे उतार लिया जाता है।
रामनगर दुर्ग के भीतरी भाग में स्थित धर्म घड़ी, काशी की विज्ञान और कला के संगम का प्रतीक है। इसे रामनगर के इंजीनियर, मूल चन्द्र शर्मा ने 1872 में निर्मित किया था। यह घड़ी न केवल समय, दिन, और तारीख बताती है, बल्कि भारतीय ज्योतिष शास्त्र के आधार पर नक्षत्र, ग्रह, राशि, सूर्योदय, सूर्यास्त, चंद्रोदय, चंद्रास्त की गणना भी प्रस्तुत करती है। इसे पंचांग घड़ी या ज्योतिष घड़ी के नाम से भी जाना जाता है। 1923 में इसकी मरम्मत मूलचन्द्र के पुत्र, बाबू मुन्नी लाल शर्मा ने की थी, और आज इसकी देखभाल शर्मा परिवार की वर्तमान पीढ़ी कर रही है।
रामनगर दुर्ग संग्रहालय
रामनगर दुर्ग संग्रहालय, जो बनारस राज्य के विलय के पश्चात भारतीय गणराज्य का हिस्सा बना, अपने अनूठे संग्रह के लिए प्रसिद्ध है। महाराजा विभूति नारायण सिंह ने इस संग्रहालय की स्थापना की, जहाँ राजसत्ता और राज परिवार से संबंधित दुर्लभ कलाकृतियाँ विभिन्न वीथिकाओं में प्रदर्शित की गई हैं।
इस संग्रहालय में निम्नलिखित वीथिकाएँ हैं:
- अस्त्र-शस्त्र वीथिका: पारंपरिक हथियारों का संग्रह जिनमें ढाल तलवारें, तीर-धनुष एवं स्वदेशी बन्दूकों के साथ ही आधुनिक विदेशी हथियार भी यहाँ स्थित हैं।
- हाथी दाँत कला वीथिका: यहाँ रामनगर एवं बनारस के कारीगरों द्ववारा हाथी दाँत से निर्मित कलाकृतियाँ शामिल हैं।
- यान वीथिका: प्राचीन और आधुनिक यानों का संग्रह है जहाँ उस समय के पारम्परिक यानों के साथ ही बैलगाड़ी, नक्काशी युक्त बग्घी, घोड़ा व 19वीं सदी के विटेंज कारों इत्यादि का अनुपम संग्रह है।
- जीव-जंतु वीथिका: यहाँ उस समय के राजाओं द्वारा शिकार किए गए जानवरों के खालों का संग्रह है।
- भित्ति चित्र वीथिका: दीवार चित्रों का संग्रह।
- कला वीथिका: यहाँ विभिन्न प्रकार की कलाकृतियाँ हैं।
- पालकी कक्ष: इस कक्ष में ताम जान, नोकदार, तोड़दार आदि के साथ-साथ चाँदी की पालकियां, हाथी दात की बनी पालकियां एवं लकड़ी की कलाकृतियों युक्त पालकियां है।
- हौदा कक्ष: यहाँ विभिन्न प्रकार के हौदे हैं जिनमें स्वर्ण निर्मित ‘अम्बारी हौदा’ रजत हौदा, इत्यादि का संग्रह है।
- दरबार कक्ष: राजसी दरबार से संबंधित वस्तुएँ।
- वस्त्रागार: यहाँ उस समय के आधुनिक बनारसी वस्त्रों का संग्रह है। यहाँ राज परिवार द्वारा उपयोग की गयी सोने-चांदी के तारों से बुने, रत्न जड़ित वस्त्रों विशाल एवं अद्भुत संग्रह है।
- धर्म घड़ी: बनारस की विज्ञान और कला के संगम का प्रतीक है।
1990 में एक नया चित्र अनुभाग, रामलीला संग्रहालय भी जोड़ा गया, जिसमें रामनगर की प्रसिद्ध रामलीला से जुड़ी सामग्री का संग्रह है। जिसमें रामनगर की विश्व प्रसिद्ध रामलीला में बनने वाले पात्रों के मुखौटे, सिंहासन, मुकुट एवं अस्त्र-शस्त्रों और अन्य वस्तुओं का संग्रह किया गय है। यह संग्रहालय अपने अनूठे संग्रह के साथ बनारस की सांस्कृतिक और कलात्मक विरासत को संजोए हुए है।
धर्म घड़ी: काशी की कला और विज्ञान का प्रतीक
रामनगर दुर्ग की धर्म घड़ी, जो बिना किसी आधुनिक ऊर्जा स्रोत के काम करती है, एक सप्ताह में एक बार चाबी द्वारा चलाई जाती है। इसमें एक मोटी डोरी से बंधा भारी पत्थर या लोहे का वजन ऊपर उठाया जाता है, जिसके दबाव से घड़ी संचालित होती है। वजन धीरे-धीरे नीचे आता है, और सप्ताह के अंत में नीचे पहुँच जाता है, जिसे फिर से चाबी से ऊपर किया जाता है। यह घड़ी ज्योतिषीय गणनाओं के लिए उपयोगी है एवं इसकी बनावट एक कमरे के बराबर है।
इसे लकड़ी के सांचे में धातु की प्लेट पर उकेरा गया है, जिसमें घड़ी के मध्य में, और दोनों ओर सूर्य और चंद्रमा की गति, नक्षत्र, ग्रह, और राशियों का चित्रण है। इस घड़ी की सहायता से ज्योतिष के विद्वान लोग कुण्डली, लग्न, पंचांग तथा अन्य ज्योतिषीय गणनायें करते हैं। यह घड़ी विज्ञान और कला की उत्कृष्टता का प्रतीक है, जो दुनिया भर से लोगों को आकर्षित करती है।
इस घड़ी की घंटी बजाने की विधि भी अद्वितीय है। हर 15 मिनट पर यह अलग-अलग स्वर में घंटी बजाती है – 15 मिनट पर एक बार ‘टिन’, 30 मिनट पर दो बार ‘टीन टन’, 45 मिनट पर तीन बार ‘टीनटन’, और प्रत्येक घंटे के पूरे होने पर ‘टन’ की आवाज उतनी बार जितने घंटे हुए हैं।
सरस्वती भंडार – काशीराज ग्रंथालय
सरस्वती भंडार (काशीराज ग्रंथालय) यहां आपको काशी के गौरवशाली इतिहास से जुड़ी तमाम पुस्तक मिलेगी। दुर्ग में स्थित यह काशीराज ग्रंथालय काशी के निर्माण एवं उत्थान से जुड़ी प्रत्येक जानकारियों का एक श्रोत है। काशी में आने वाले देसी-विदेशी कला प्रेमी इस ग्रंथालय के माध्यम से प्राचीन काशी से जुड़ते हैं। महाराजा बनारस विद्या मंदिर संग्रहालय वाराणसी की शाही और कलात्मक परंपरा का एक जीवंत प्रतीक है, जो अपने भीतर इस नगरी की उत्कृष्ट कला की धरोहर को संजोए हुए है।
बनारस राज्य के इस पुस्तकालय में भारतीय वाङ्मय के षड्दर्शनों पर आधारित अनेक हस्तलिखित और चित्रमय ग्रंथ संरक्षित हैं। यहां गोस्वामी तुलसीदास के हस्ताक्षरित ‘पंचनामा’ सहित संस्कृत साहित्य और रीतिकाल के दुर्लभ ग्रंथों का भी संग्रह है। इस ग्रंथालय में काष्ठ जिह्वा स्वामी की ‘मानसपरिशिष्ट परिचर्चा प्रकाश’, राजा रघुराज प्रताप सिंह का ‘सीता स्वयंवर’, ‘भागवत अमृताम्बुजम’, रामसखेदि कवि की संपूर्ण रचनावली, और ‘प्रेमदास’ जी का ‘प्रेमरामायण’ जैसे अनेक ज्ञात-अज्ञात दुर्लभतम् अप्रकाशित और अनुपलब्ध ग्रंथावलियों का जीवंत दस्तावेज है।
इस प्राचीन ग्रंथालय की स्थापना महाराजा ईश्वरी नारायण सिंह ने की थी और इसका संचालन महाराजा विभूति नारायण सिंह के कार्यकाल तक हुआ। वर्तमान में, इस ग्रंथालय की स्थिति अवरुद्ध है, और प्रशासकीय अयोग्यता के कारण यह बंद पड़ा है। एक समय था जब इस संग्रहालय में पर्यटक, दार्शनिक, ज्ञानी और विज्ञानी लोगों का आना जाना लगा रहता था। यह अपने अनोखे अमूल्य कला, ज्ञान-विज्ञान, और परंपराओं के संग्रह के लिए जाना जाता है।
काले हनुमान जी
रामनगर किले में हनुमान जी की एक प्राचीन मूर्ति है, ऐसा माना जाता है की यह मूर्ति हजारों वर्ष प्राचीन है। काशी में यह एकलौती हनुमान जी मूर्ति है की काले रंग की है और यही कारण है की यह काफी लोकप्रिय भी है। काले हनुमान जी से जुडी कुछ अपनी अनूठी मान्यताएं भी हैं। लोककथाओं के अनुसार, जब काशी नरेश दुर्ग का निर्माण करा रहे थे, तो गंगा के तेज प्रवाह के कारण दुर्ग का दक्षिण-पश्चिम किनारा बार-बार ढह जा रहा था।
एक बार राजन को स्वप्न आया की वहां हनुमान जी का एक मंदिर था, जहाँ वर्तमान में दुर्ग का निर्माण हो रहा है। अतः जब उस स्थान की खुदाई की गई, तो वहां से हनुमान जी की एक मूर्ति प्राप्त हुई। इस मूर्ति को उसी स्थान पर स्थापित करने के बाद, दीवार अचानक स्थिर हो गई और दुर्ग का निर्माण संभव हो सका।
इस मंदिर में हनुमान जी की काली मूर्ति है, जो दक्षिण की ओर मुख करके स्थापित है और जमीन को दोनों हाथों से दबाए हुए है। यह मान्यता है कि इस मूर्ति के कारण गंगा के प्रकोप से दुर्ग की रक्षा होती है। इस मंदिर में वर्ष में एक बार, आश्विन मास की पूर्णिमा को, जनसाधारण के लिए दर्शन की व्यवस्था होती है। इस मंदिर की महत्ता और काशी राज से संबंध को एक लोकप्रिय दोहे के माध्यम से भी व्यक्त किया गया है:
व्यास मंदिर
रामनगर दुर्ग के प्रांगण में अवस्थित व्यास मंदिर, काशी की पवित्रता का एक अनिवार्य अंग माना जाता है। यहाँ की परंपरा के अनुसार, काशी में गंगा स्नान और दान के बिना व्यास जी के दर्शन के बिना यात्रा अधूरी मानी जाती है। इसलिए, काशी के दर्शनार्थी इस मंदिर में आवश्यक रूप से आते हैं। इस मंदिर का इतिहास अत्यंत प्राचीन है, जहाँ कहा जाता है कि कृष्णद्वैपायन, जिन्हें बाद में वेद व्यास के नाम से जाना गया, ने महाभारत की रचना आरंभ की थी। यह स्थान काशी के आग्नेय कोण पर एक ऊंचे टीले पर स्थित है, जहाँ से वेद व्यास ने काशी का निरीक्षण किया था।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह मंदिर लगभग 5000 वर्ष पुराना है और यहाँ वेद व्यास और शुकदेव को लिंगरूप में पूजा जाता है। समय के साथ, यहाँ काष्ठजिह्वा स्वामी द्वारा काशी विश्वनाथ का शिवलिंग भी स्थापित किया गया, जिससे यहाँ तीन लिंगों के दर्शन होते हैं। माघ मास में यहाँ वेद पारायण की परंपरा है, और इस महीने में काशीवासी यहाँ आकर कीर्तन और भजन करते हैं। यह मान्यता है कि काशी में रहने वाले हर व्यक्ति को व्यास जी के दर्शन किए बिना काशी वास का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता।
कैसे पहुंचे
रामनगर किले तक बहुत ही आसान है। यहां आप रेल मार्ग वायु मार्ग एवं नेशनल हाईवे तीनों रास्तों से आ सकते हैं। वायु मार्ग से आने के लिए यहां आपको बाबतपुर हवाई अड्डे पर उतरना होगा। वहां से सीधे आपको यहां आने के लिए टैक्सी इत्यादि मिल जाते हैं। वायु मार्ग चेन्नई ,बेंगलुरु, मुंबई और दिल्ली जैसे महानगरों से जुड़ा हुआ है।
रेल मार्ग से आने के लिए आप सीधे वाराणसी स्टेशन पर उतारने के बाद आपको रामनगर किले के लिए आपको टैक्सी एवं साधन आसानी से मिल जाते हैं। वाराणसी से तीन नेशनल हाईवे जुड़े हुए हैं जो कोलकाता दिल्ली एवं गोरखपुर से होते हुए वाराणसी से जुड़े हुए हैं।
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