Last Updated on July 18, 2025 by Yogi Deep
राजेन्द्र प्रसाद घाट, वाराणसी (काशी) के ऐतिहासिक घाटों में से एक है, जिसका अपना एक अलग ही इतिहास रहा है। यह घाट दशाश्वमेध घाट के उत्तर में स्थित है और पहले इसे घोड़ा घाट के नाम से जाना जाता था। स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के सम्मान में इसका नाम परिवर्तित कर दिया गया।
घाट का नाम | राजेन्द्र प्रसाद घाट |
क्षेत्र | वाराणसी |
निर्माण | मौर्य काल, (पक्का निर्माण सन् 1984) |
निर्माता | उत्तर प्रदेश राज्य सरकार 1984 |
विशेषता | डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को समर्पित |
दर्शनीय स्थल | दुर्गा मंदिर, राम-जानकी मंदिर एवं शिव मंदिर |
इतिहास और नामकरण

पूर्व काल में यह घाट दशाश्वमेध घाट का उत्तरी भाग था जिसे “घोड़ा घाट” कहा जाता था। इसका इतिहास मौर्य काल तक का है, जब यह घाट घोड़ों के क्रय-विक्रय का प्रमुख केंद्र हुआ करता था। प्रसिद्ध विद्वान जेम्स प्रिन्सेप ने अपने छायाचित्रों के माध्यम से इस घाट की ऐतिहासिकता की पुष्टि की है।
सन् 1984 में उत्तर प्रदेश राज्य सरकार द्वारा घाट का पक्का निर्माण करवाया गया और वर्ष 1979 में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद (1884–1963) की स्मृति में इस घाट का नाम बदल कर राजेन्द्र प्रसाद घाट किया गया, इस बात की पुष्टि वाराणसी नगर निगम ने की है।
🐎 घोड़ा घाट
“घोड़ा घाट” नाम संभवतः इसलिए पड़ा क्योंकि यह घाट घोड़ों क्रय-विक्रय का एक महत्वपूर्ण केंद्र हुआ करता था। साथ ही, यह स्थान गंगा पार से आने वाली बालू की ढुलाई और व्यापार का भी प्रमुख केंद्र था, जहाँ खच्चरों के माध्यम से बालू की ढुलाई होती थी। 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में यहाँ “दशाश्वमेध” नामक मूर्ति देखी गई थी। ऐसी मान्यता है कि इस मूर्ति को बाद में संकटमोचन मंदिर में स्थापित कर दिया गया।
🛕 घाट पर स्थित प्रमुख दर्शनीय स्थल
राजेन्द्र प्रसाद घाट पर कई नवनिर्मित मंदिर स्थापित हैं, जिनमें प्रमुख हैं:
- दुर्गा मंदिर
- राम-जानकी मंदिर
- शिव मंदिर
इन मंदिरों के समीप ही डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की आदमकद प्रतिमा भी स्थापित की गई है, जो इस घाट की पहचान बन चुकी है। इसके अतिरिक्त, घाट पर एक सिवेज पम्पिंग स्टेशन भी बना हुआ है जो नगर की जल-व्यवस्था को दुरुस्त करता है।
🌊 सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व
राजेन्द्र प्रसाद घाट न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यहाँ अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी होता रहता है। साथ ही सटे हुए दशाश्वमेध घाट पर दैनिक भव्य गंगा आरती का भी आयोजन किया जाता है।
घाट पक्का, स्वच्छ है और यह शहर के मुख्य मार्ग से सीधे जुड़ा हुआ है, जिससे यहाँ स्नानार्थियों एवं पर्यटकों की लगातार आवाजाही बनी रहती है। गंगा किनारे नाविक अपनी नावें बाँधते हैं जो पर्यटकों के लिए नौका-विहार की सुविधा प्रदान करती हैं।
राजेन्द्र प्रसाद घाट एक ऐसा स्थल है जहाँ इतिहास, आस्था और आधुनिकता का समन्वय देखने को मिलता है। यह घाट काशी के धार्मिक महत्व को दर्शाने के साथ-साथ डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जैसे महान व्यक्तित्व को श्रद्धांजलि भी अर्पित करता है। यदि आप वाराणसी की यात्रा पर हैं, तो इस घाट की भव्यता और गरिमा को अवश्य अनुभव करें।