प्रयाग घाट, वाराणसी

लेख - Yogi Deep

Last Updated on July 13, 2025 by Yogi Deep

प्रयाग घाट, वाराणसी के प्रमुख और प्राचीन घाटों में से एक है, जो गंगा नदी के तट पर स्थित है। यह घाट दशाश्वमेध घाट के उत्तरी छोर पर स्थित है और इसकी धार्मिक, ऐतिहासिक एवं स्थापत्य महत्ता के कारण यह श्रद्धालुओं और पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।

घाट का नामप्रयाग घाट
क्षेत्रवाराणसी
निर्माण19वीं शताब्दी
निर्माता महारानी एच. के. देवी (महारानी पोटिया स्टेट) द्वारा
विशेषताप्रयाग संगम जितना ही महत्त्व
दर्शनीय स्थलप्रयागेश्वर, शूलटंकेश्वर, ब्रह्मेश्वर और प्रयागमाधव

प्रयाग घाट

प्रयाग घाट का उल्लेख काशी खण्ड में मिलता है, अर्थात यह घाट बहुत ही प्राचीन है। शीतला घाट एवं दशाश्वमेध घाट के मध्य में स्थित यह घाट काशी के प्रसिद्ध घाटों में से एक है। ऐसी मान्यता है की इस घाट में स्नान करने से आपको प्रयागराज के प्रयाग संगम में स्नान का फल प्राप्त होता है। अति प्राचीन होने के बाद भी समय के साथ यह घाट क्षीण हो गया था, तब इस घाट का पुनर्निर्माण 19वीं सदी में बंगाल की एक महारानी ने करवाया। इस घाट का अपना एक इतिहास, मान्यताएवं महत्व है। आइये इसे विस्तार से जानते हैं।

प्रयाग घाट, वाराणसी Prayag Ghat (2008)
प्रयाग घाट, वाराणसी Prayag Ghat (2008)

इतिहास और निर्माण

प्रयाग घाट का निर्माण 19वीं शताब्दी ईस्वी के प्रारम्भ में बंगाल के पोटिया राज्य की महारानी एच. के. देवी द्वारा कराया गया था। इस घाट के निर्माण से संबंधित अभिलेख आज भी इसकी सीढ़ियों पर उत्कीर्ण हैं, जो इसके गौरवपूर्ण इतिहास का साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं।

काशी का प्रयाग तीर्थ

काशीखण्ड के अनुसार, इस घाट को प्रयाग तीर्थ की मान्यता प्राप्त है। प्रयाग (इलाहाबाद) की भांति, यह स्थल भी धार्मिक संगम का प्रतिनिधित्व करता है। इस घाट को काशी के प्रयाग तीर्थ के रूप में माना जाता है। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो 19वीं शताब्दी तक बेनिया तालाब से निकलने वाला एक बरसाती नाला — जिसे गोदावरी नदी के रूप में माना जाता था — मिसिर पोखरा और गोदौलिया होते हुए प्रयाग घाट के उत्तरी छोर पर गंगा में मिल जाता था।

बेनियाबाग क्षेत्र में स्थित, बेनिया तालाब पूर्व में अस्थि प्रक्षेप तड़ाग (जहाँ चिता की राख को विसर्जित किया जाता था) के रूप में प्रयोग किया जाता था। जेम्स प्रिन्सेप द्वारा बनाये गए छायाचित्रों से इसकी पुष्टि की जा सकती है। इसके आलावा सवाई मानसिंह द्वितीय के संग्रहालय से प्राप्त 17वीं और 18वीं शती ई. के रेखाचित्रों से भी इस बात की पुष्टि होती है की पूर्व में तालाब से निकला हुआ नाला गंगा जी में जाकर मिलता था। परन्तु वर्तमान में अतिक्रमण के कारण यह नाला लुप्त हो चुका है।

सांस्कृतिक महत्व एवं पर्व इत्यादी

दशाश्वमेध घाट से सटे होने के कारण प्रयाग घाट पर स्नानार्थियों की भीड़ हमेशा ही रहती है। विशेष रूप से माघ महीने में इस घाट पर स्नान का अत्यधिक धार्मिक महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इस घाट पर स्नान करने और घाट पर स्थित शूलटंकेश्वर शिवलिंग के दर्शन से वही पुण्यफल प्राप्त होता है जो प्रयागराज के त्रिवेणी संगम में स्नान करने से मिलता है। दशाश्वमेध पर होने वाले स्नान के मेलों, पर्वों, उत्सवों आदि का सम्पादन इस घाट पर भी होता है।

प्रमुख मंदिर और मूर्तियाँ

घाट पर स्थित मंदिरों में प्रयागेश्वर, शूलटंकेश्वर, ब्रह्मेश्वर और प्रयागमाधव अत्यंत पूज्यनीय हैं। यह भी कहा जाता है कि ब्रह्मेश्वर शिवलिंग की स्थापना स्वयं ब्रह्मा ने दश अश्वमेध यज्ञ के उपरांत की थी, जो इस घाट की धार्मिक महत्ता को और भी प्रबल बनाता है।

Shooltankeshwar Mahadev Mandir, Varanasi - May 2018
Shooltankeshwar Mahadev Mandir, Varanasi – May 2018

आधुनिक संरचना और सुविधाएँ

वर्तमान समय में प्रयाग घाट पूरी तरह पक्का, स्वच्छ और सुदृढ़ है। यहाँ पर गंगा से जुड़ी सीढ़ियाँ संगमरमर से निर्मित हैं, जिनका निर्माण 1977 ईस्वी में भागलपुर (बिहार) के ललितनारायण खण्डेलवाल द्वारा कराया गया था। घाट की सीढ़ियों पर चार-चार की दो पंक्तियों में कुल आठ मढ़ियाँ निर्मित हैं। गंगा के समीपवर्ती मढ़ियाँ विशेष रूप से स्त्रियों द्वारा वस्त्र परिवर्तन के लिए प्रयोग में लाई जाती हैं। इस घाट के शांत वातावरण में आप यहां ध्यान कर सकते हैं, यहाँ स्थित मंदिरों और घाटों का भ्रमण कर सकते हैं एवं प्रातःकाल यहाँ नाव की सवारी का आनंद भी ले सकते हैं।


प्रयाग घाट केवल एक स्नान स्थल नहीं, बल्कि एक जीवंत धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा का केंद्र है। इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, धार्मिक मान्यता और स्थापत्य कला इसे वाराणसी के अन्य घाटों से विशिष्ट बनाती है। प्रत्येक वर्ष यहाँ पर आयोजित पर्व, उत्सव और मेलों में हजारों श्रद्धालु भाग लेते हैं, जो इस घाट की आस्था और महत्व को पुष्ट करते हैं। वाराणसी आने वाले प्रत्येक तीर्थयात्री को प्रयाग घाट के दर्शन अवश्य करने चाहिए, जिससे उन्हें आध्यात्मिक शांति और धार्मिक पुण्य की अनुभूति होती है।

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