नाग नथैया लीला, वाराणसी

By Yogi Deep

Last Updated on December 14, 2024 by Yogi Deep

वाराणसी, जिसे महादेव की नगरी कहा जाता है, अपने धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहरों के लिए विश्व प्रसिद्ध है। इसी धरोहर का हिस्सा है नाग नथैया लीला, जो प्रति वर्ष तुलसी घाट पर आयोजित होती है। यह लीला भगवान श्रीकृष्ण द्वारा कालिया नाग के मर्दन की अद्भुत कथा को जीवंत करती है। नाग नथैया लीला की परंपरा करीब 500 साल पुरानी है, जिसे गोस्वामी तुलसीदास ने आरंभ किया था। आइए जानते हैं इस लीला से जुड़ी खास बातें और इसकी महिमा।

काशी की नाग नथैया लीला

Nag Nathaiya Leela at Tulsi Ghat, Varanasi
Nag Nathaiya Leela at Tulsi Ghat, Varanasi (इमेज साभार – इन्टरनेट)

नाग नथैया लीला भगवान श्रीकृष्ण की प्रसिद्ध कथा पर आधारित है, जब यमुना नदी का जल कालिया नाग के विष से दूषित हो गया था। भगवान श्री कृष्ण कालिया नाग का मर्दन करने हेतु खेल खेल में अपनी गेंद को यमुना में जाने देते हैं, फिर वह गेंद निकलने हेतु नदी में छलांग लगाते हैं, जहाँ उन्हें कालिया नाग मिलता है। भगवन श्री कृष्ण कालिया नाग का मर्दन करने के पश्चात यमुना से बाहर आते हैं। जिस कारण यमुना का जल फिर से शुद्ध हो जाता है। इसी अद्भुत घटना का मंचन वाराणसी के तुलसी घाट पर हर साल कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को किया जाता है।

लीला के दौरान भगवान श्रीकृष्ण कदंब के पेड़ पर चढ़ते हैं और यमुना रूपी गंगा नदी में छलांग लगाते हैं। यह दृश्य दर्शकों के लिए अत्यंत रोमांचक होता है, जब भगवान श्रीकृष्ण कालिया नाग के फन पर बांसुरी बजाते हैं और कालिया नाग को पराजित करते हैं। इस घटना को देखने के लिए घाटों, नावों और छतों पर भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।

नाग नथैया लीला का इतिहास

नाग नथैया लीला की शुरुआत लगभग 500 साल पहले हुई थी। इसे गोस्वामी तुलसीदास ने वाराणसी के तुलसी घाट पर प्रारंभ किया था। तुलसीदास जी, जो कि रामचरितमानस के रचयिता थे, ने काशी में कई धार्मिक लीलाओं की परंपरा को पुनर्जीवित किया। नाग नथैया लीला की शुरुआत उन्होंने कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को की थी, और यह परंपरा तब से लेकर आज तक जारी है।

गोस्वामी तुलसीदास ने इस लीला के माध्यम से धर्म और संस्कृति को एक नई दिशा दी। उन्होंने इस लीला में भाग लेने के लिए सभी धर्मों और जातियों के भेदभाव को मिटा दिया था। कलाकार और श्रद्धालु, जो इस लीला में भाग लेते हैं, आज भी इस परंपरा का अनुसरण करते हैं। वाराणसी के अस्सी घाट और भदैनी क्षेत्र से कलाकारों का चयन किया जाता है, जो भगवान श्रीकृष्ण, बलराम, और राधा के रूप में अभिनय करते हैं। इस लीला की खासियत यह है कि यह लीला 22 दिनों तक चलती है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण की विभिन्न लीलाओं का मंचन किया जाता है।

लीला की खास बातें

  • कदंब का पेड़: नाग नथैया लीला के दौरान भगवान श्रीकृष्ण कदंब के पेड़ से छलांग लगाते हैं। इस पेड़ की डाली को हर साल संकट मोचन मंदिर के जंगल क्षेत्र से काटा जाता है, और इसके स्थान पर एक नया कदंब का पौधा लगाया जाता है। इस परंपरा से पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया जाता है।
  • कालिया नाग का मंचन: कालिया नाग के विशाल फन को रंगीन कपड़ों से सजाया जाता है, और इसमें लाइट्स लगाई जाती हैं। कालिया नाग को दुष्टता का प्रतीक माना जाता है, जिसे भगवान श्रीकृष्ण मर्दित कर यमुना को कालिया नाग के विष से मुक्त करते हैं।
  • काशीराज परिवार की उपस्थिति: काशीराज परिवार इस लीला का हिस्सा होते हैं और भगवान श्रीकृष्ण का माल्यार्पण और आरती करते हैं। यह परंपरा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है, और काशीराज परिवार के प्रतिनिधि डॉ. अनंत नारायण सिंह परंपरा का निर्वहन करते हुए हर वर्ष इस लीला में सम्मिलित होते हैं।
Kashiraj Parivar Varanasi
Kashiraj Parivar Varanasi (इमेज – अरविन्द मिश्र)

नाग नथैया लीला की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, कालिया नाग यमुना नदी के एक कुंड में निवास करने लगा था। उसके विषैले प्रभाव से यमुना का जल खौलता रहता था, जिससे पक्षी और पेड़-पौधे भी जलने लगते थे। एक दिन भगवान श्रीकृष्ण अपने सखाओं के साथ यमुना तट पर खेल रहे थे, तभी उनकी गेंद नदी में जा गिरी। गेंद निकालने के लिए कृष्ण नदी में कूद पड़े, जबकि उनके मित्र उन्हें रोकने की कोशिश कर रहे थे, क्योंकि सभी को पता था की यमुना में कालिया नाग रहता है।

नदी में कूदते ही सोए हुए कालिया नाग की नींद टूट गई, जिस कारण उसने क्रोध में भगवान को बालक जान उनपर हमला कर दिया। लेकिन भगवान कृष्ण ने उसे अपने दिव्य बल से वश में कर लिया और उसके फन पर नृत्य करने लगे। यह दृश्य देखकर गोकुल के लोग, जो कृष्ण की चिंता में यमुना किनारे आए थे, भय और आश्चर्य से भर उठे।

अंततः कालिया नाग ने हार मान ली। श्रीकृष्ण ने उसे यमुना नदी छोड़ने का आदेश दिया, जिससे वह यमुना को छोड़ कर भागने लगा, भागते हुए कालिया को भगवान नें श्राप दे दिया कि यदि वह पीछे मुड़कर देखेगा, तो पत्थर का हो जाएगा। वृंदावन से पांच किलोमीटर दूर जैंत गांव में, कालिया ने पीछे मुड़कर देखा और पत्थर का बन गया। इस घटना के बाद यमुना का जल फिर से स्वच्छ हो गया। 

नाग नथैया लीला का महत्त्व

Naag Nathaiya Leela Croud at Tulsi Ghaat
Naag Nathaiya Leela Croud at Tulsi Ghaat (इमेज – अरविन्द मिश्र)

नाग नथैया लीला सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह लोगों को जल प्रदूषण और पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश देती है। जिस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने यमुना के विषैले जल को शुद्ध किया, उसी प्रकार यह लीला आधुनिक समय में नदियों के संरक्षण की आवश्यकता को रेखांकित करती है।

वाराणसी के तुलसी घाट पर आयोजित यह लीला न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह शहर की सांस्कृतिक पहचान का भी प्रतीक है। यह लीला काशी के चार लक्खा मेलों में से एक है, जहाँ कम से कम एक लाख लोगों तक की संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक भाग लेते हैं।

नाग नथैया कब है?

नाग नथैया लीला हर साल दीपावली के चार दिन बाद, कार्तिक शुक्ल चतुर्थी के दिन आयोजित होती है। इस बार नाग नथैया लीला 5 नवम्बर 2024, मंगलवार को होगी। इस दिन वाराणसी के तुलसी घाट पर हजारों की संख्या में लोग इकट्ठा होते हैं और भगवान श्रीकृष्ण के दिव्य रूप के दर्शन करते हैं। इस लीला का आयोजन गोस्वामी तुलसीदास के अखाड़े द्वारा किया जाता है, और इसे देखने के लिए दूर-दूर से भक्त वाराणसी आते हैं।

समकालीन परिप्रेक्ष्य में नाग नथैया लीला

आधुनिक समय में भी नाग नथैया लीला की प्रासंगिकता बनी हुई है। जहाँ एक ओर यह धार्मिक आस्था और संस्कृति को बढ़ावा देती है, वहीं दूसरी ओर यह सामाजिक समरसता और एकजुटता का भी प्रतीक है। इस आयोजन के दौरान सभी वर्गों के लोग एक साथ इकट्ठा होते हैं और भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन हो जाते हैं। यह लीला हमें यह भी सिखाती है कि चाहे कितनी भी कठिनाई आए, यदि आपके साथ प्रभु हैं तो आपको हर प्रकार के संकट से मुक्ति मिल जायेगी।

नाग नथैया लीला क्या है?

नाग नथैया/ नाग नथैया लीला वाराणसी में होने वाला एक लक्खा मेला है, जहाँ भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोकुल वासियों को कालिया नाग के आतंक से मुक्ति की लीला की जाती है।

नाग नथैया लीला का इतिहास कितना पुराना है

नाग नथैया लीला का इतिहास लगभग 500 वर्ष प्राचीन है, जिसे गोस्वामी तुलसीदास ने आरंभ किया था।

कहाँ होती है नाग नथैया लीला?

नाग नथैया लीला, प्रति वर्ष तुलसी घाट पर आयोजित होती है।

नाग नथैया लीला 2024

नाग नथैया लीला 5 नवम्बर 2024, मंगलवार को है।

लक्खा मेला क्या होता है?

ऐसे मेलें जहाँ एक लाख लोगों से अधिक भीड़ होती है उसे लक्खा मेला कहा जाता है।

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