Last Updated on July 27, 2025 by Yogi Deep
मीर घाट वाराणसी के प्रमुख और प्राचीन घाटों में से एक है, जो अपनी ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है। यह घाट मानमंदिर घाट के पास स्थित है और इसे पूर्व में जरासंधघाट के नाम से जाना जाता था। इस लेख में हम मीर घाट के इतिहास, धार्मिक महत्व और वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डालेंगे।
घाट का नाम | मीर घाट (प्राचीन नाम जरासंध घाट) |
क्षेत्र | वाराणसी |
निर्माण | 1735 शताब्दी ई० |
निर्माता | वर्तमान निर्माण फौजदार मीर रूस्तमअली |
विशेषता | जरासंध तीर्थ |
दर्शनीय स्थल | जरासंधेश्वर शिव, विशालाक्षीश्वर, श्वेत माधव, आशा विनायक एवं यज्ञबराह मंदिर |
मीर घाट का इतिहास
मीर घाट का निर्माण सन् 1735 में काशी के तत्कालीन फौजदार मीर रूस्तमअली द्वारा कराया गया था। यही कारण है कि इस घाट का नाम मीर घाट पड़ा। मीर रुस्तम अली द्वारा घाट पर एक विशाल किले का निर्माण भी करवाया गया था, ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि काशी राज्य के संस्थापक राजा बलवंत सिंह ने इस किले को ध्वस्त कर उसके भग्नावशेषों से रामनगर किला बनवाया था।1 गीर्वाणपदमंजरी के अनुसार, इस घाट का पूर्व नाम “जरासंध घाट” था।

घाट का नामकरण जरासंध घाट इसलिए हुआ था क्योंकि घाट के पास स्थित गंगा नदी में ‘जरासंध तीर्थ’ की स्थिति मानी जाती है। इसके ऊपरी भाग में जरासंधेश्वर शिव मंदिर भी स्थित है, जो इस घाट को विशेष धार्मिक महत्व प्रदान करता है। मीर घाट का प्रथम उल्लेख अंग्रेज इतिहासकार जेम्स प्रिन्सेप द्वारा “मीर घाट” नाम से किया गया, जो बाद में स्थायी रूप से इसी नाम से प्रसिद्ध हो गया। सवाई मानसिंह द्वितीय संग्रहालय से प्राप्त एक रेखाचित्र में भी इसे नायक का घाट कहा गया है।
धार्मिक महत्व और विशेष तिथियाँ
मीर घाट पर श्रद्धालुओं के लिए कई धार्मिक अनुष्ठान और स्नान की विशेष तिथियाँ निर्धारित हैं। कार्तिक माह के कृष्ण चतुर्दशी को यहाँ स्नान करने और जरासंधेश्वर शिव के दर्शन-पूजन का विशेष महात्म्य है। इस अवसर पर नगर के अधिकांश स्नानार्थी इसी घाट पर स्नान के पश्चात् जरासघेश्वर का दर्शन-पूजन करते हैं।
घाट पर दूसरा प्रमुख मंदिर विशालाक्षी देवी का है। यह मंदिर वास्तुशिल्प की दृष्टि से भी उल्लेखनीय है। विशालाक्षी देवी काशी के नौ गौरियों में से एक हैं, एवं उनके दर्शन मात्र से मनुष्य समस्त सांसारिक कष्टों से छुटकारा पा जाते हैं ऐसा लोगों का मत है। यह काशी का दूसरा मंदिर है जिसका निर्माण दक्षिण भारतीय मंदिर वास्तु परम्परा के अनुरूप गोपुरम् एवं द्रविड़ शिखर से युक्त हुआ है। भाद्र माह के कृष्णपक्ष तृतीया को मीरघाट पर स्नान के पश्चात् देवी के दर्शन-पूजन करने का माहात्म्य है।
अन्य मंदिर और मठ
मीर घाट के ऊपरी भाग में जरासंधेश्वर शिव मंदिर के साथ-साथ कई अन्य धार्मिक स्थल भी स्थित हैं। यहाँ विशालाक्षीश्वर शिव, श्वेत माधव (विष्णु), आशा विनायक (गणेश) और यज्ञबराह मंदिर भी दर्शनीय हैं। इन मंदिरों में पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति को मानसिक शांति और आशीर्वाद मिलता है।
मीर घाट पर दो प्रमुख मठ स्थित हैं:
- भजनाश्रम (डी. 3/24) – इस आश्रम में विशेषतः बंगाली विधवाएं निवास करती हैं, एवं इसका संचालन स्वर्गीय गनपत राय खेमका ट्रस्ट, कलकत्ता द्वारा की जाती है।
- नानकपंथी मठ – इस मठ का संचालन स्वामी चन्दन सिंह करते हैं। यहाँ साधुओं और भिक्षुओं को प्रतिदिन निःशुल्क भोजन और रोगियों को औषधि दी जाती है।
वर्तमान स्थिति और पुनर्निर्माण
मीर घाट का वर्तमान स्वरूप पक्का और स्वच्छ है। इस घाट की सीढ़ियाँ पत्थरों के स्थान पर सीमेन्ट से बनी हैं। घाटियों के लिए चबूतरा (चौकी) तथा छतरियाँ भी सीमेन्ट से निर्मित हैं। 20वीं शती ई. के प्रारम्भ तक यह पक्का घाट अत्यन्त जीर्ण हो गया था जिसका उल्लेख मोतीचन्द्र ने किया है। 1958 में उत्तर प्रदेश सरकार ने इस घाट का पुनर्निर्माण किया था, जिससे इसकी सुंदरता और महत्व में और वृद्धि हुई है। आज यह घाट न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि पर्यटन और सांस्कृतिक दृष्टि से भी एक आकर्षक स्थल बन चुका है।
अतः मीर घाट, वाराणसी का एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है, जो न केवल अपने भव्य मंदिरों और मठों के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहाँ स्नान और दर्शन-पूजन का भी विशेष महत्व है। घाट का इतिहास और धार्मिक महत्व इसे वाराणसी के अन्य घाटों से अलग और विशेष बनाते है। यह स्थान न केवल धार्मिक आस्थाओं का प्रतीक है, बल्कि भारतीय वास्तुकला और संस्कृति का भी महत्वपूर्ण उदाहरण प्रस्तुत करता है।
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सन्दर्भ
- काशी का इतिहास – डॉ० मोतीचंद – पेज – 392 ↩︎