माता आनंदमयी घाट, वाराणसी

By Yogi Deep

Last Updated on December 20, 2024 by Yogi Deep

माता आनंदमयी घाट वाराणसी के उन प्रसिद्ध घाटों में से एक है, जिसका नाम सुनते ही मन में एक विशेष आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव होता है। इस घाट की सबसे बड़ी बात तो यह है की माता आनंदमयी नें इस घाट को अंग्रेजों से खरीद कर यहाँ एक पक्के घाट का निर्माण करवाया था। गंगा नदी के किनारे स्थित यह घाट अपने आप में शांति और दिव्यता का प्रतीक है। यहाँ बैठकर गंगा के शांत लहरों और अद्भुत दृश्यों का अनुभव लेने का अपना एक अलग ही आनंद है। 

इतिहास और निर्माण

माता आनंदमयी घाट का निर्माण सन 1944 में प्रसिद्ध साध्वी माता आनंदमयी द्वारा किया गया था। सन 1944 में, उन्होंने इसे अंग्रेजों से खरीदा था। उस समय यह घाट इमिलिया घाट के नाम से जाना जाता था। माता आनंदमयी ने यहाँ एक विशाल आश्रम का निर्माण कराया, जो भगवान शिव और देवी अन्नपूर्णा को समर्पित है। यह आश्रम घाट के ठीक ऊपर स्थित है और भक्तों के लिए एक प्रमुख आकर्षण है।

माता आनंदमयी घाट
माता आनंदमयी घाट

आश्रम और उसकी विशेषताएँ

घाट के ऊपर स्थित माता आनंदमयी आश्रम में मंदिर, यज्ञशाला, कन्यापीठ इत्यादि उपलब्ध है:

  • माता अन्नपूर्णा और विश्वनाथ मंदिर: यहाँ देवी अन्नपूर्णा और भगवान शिव को समर्पित भव्य मंदिर हैं।
  • यज्ञशाला: आश्रम परिसर में स्थित यज्ञशाला में नियमित रूप से धार्मिक अनुष्ठान और हवन होते रहते हैं।
  • कन्यापीठ: आश्रम परिसर में ही कन्याओं के लिए कन्यापीठ भी स्थित है जहां गुरुकुल पद्धति से बालिकाओं को शिक्षा प्रदान किया जाता है। यहां कन्याओं को निशुल्क आवास भोजन एवं वस्त्र इत्यादि की सुविधा दी जाती है। 

भगवान शिव का विग्रह और हवन कुंड

घाट के ठीक नीचे भगवान शिव का एक छोटा सा विग्रह स्थापित है, जहाँ दैनिक पूजन होता है। इसके पास ही एक हवन कुंड भी है, जिसका उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों के लिए किया जाता है।

अन्य विशेषताएँ

  • माता आनंदमयी घाट के पास ही एक प्राचीन हनुमान मंदिर स्थित है।
  • इसके बगल में छेदीलाल जैन घाट भी है, जिसका ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है।
  • सिंचाई विभाग में सन 1988 में इस जीर्ण हो रहे घाट का जीर्णोद्धार करवाया।
  • इसके आलावा इस घाट के अगल-बगल जानकी घाट एवं वच्छराज घाट स्थित है।  
आनंदमयी घाट से माँ गंगा का दृश्य
आनंदमयी घाट से माँ गंगा का दृश्य

माता आनंदमयी

माता आनंदमयी अथवा आनंदमयी मां भारत की एक प्रसिद्ध साध्वी व् संत थीं। उनका जन्म भारत के ब्रह्मन बारिया जिले के खेऊरा ग्राम जो (वर्तमान बांग्लादेश) में हुआ था। उनकी जीवन यात्रा भक्ति योग से ओतप्रोत थी और लोगों नें उन्हें “आनंद से परिपूर्ण” की संज्ञा दी। उनकी भक्ति नें समाज को सेवा, प्रेम और भक्ति की प्रेरणा दी। बंगाल के छोटे से गाँव खेओरा में जन्मी आनंदमयी मां को बचपन में लोग निर्मला सुंदरी के नाम से पुकारते थे। उनका जीवन गरीबी में बीता, लेकिन उनमें आध्यात्मिकता बचपन से ही प्रकट होने लगी थी। उन्होंने अपने विवाहित जीवन को ब्रह्मचर्य में बिताया और 1922 में उन्हें आत्मज्ञान की प्राप्ति हुई। उनके भक्तों ने उनकी चमत्कारी शक्तियों और आध्यात्मिक अनुभवों को देखा, जो भक्ति और ध्यान की गहराई को दर्शाते हैं।

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माता आनंदमयी घाट केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक केंद्र भी है। यहाँ का शांत वातावरण, स्वच्छता और दिव्यता इसे स्थानीय निवासियों और पर्यटकों के लिए एक अद्भुत स्थल बनाते हैं।

इस घाट से जुड़े आपके सभी प्रकार के सवालों एवं सुझावों का स्वागत है। 

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