मलइयो: विश्वप्रसिद्ध बनारसी मिठाई

By Yogi Deep

Last Updated on December 14, 2024 by Yogi Deep

जब बात आती है बनारसी खानपान की तो बनारसी लोग खाने पिने के मामले में कभी पीछे नहीं रहते हैं और उसमें भी जब बात आती है बनारसी मिठाइयों की तो उसमें एक मिठाई का नाम सबसे पहले आता है जिसे हम मलइयो के नाम से जानते हैं। साल भर में मलइयो केवल सर्दियों में ही मिलती है। इस मिठाई का जितना अनोखा नाम है उससे भी अनोखा है इसे बनाने का तरीका। मलइयो मुंह में जाते ही घुल जाती है और इसका स्वाद इसकी मिठास काफी देर तक बनी रहती है। तो चलिए जानते हैं बनारस के इस मशहूर मिठाई के बारे में…

मलइयो 

नवंबर से फरवरी के बीच बनारस में मिलने वाली यह मलइयो आपको केवल सर्दियों के मौसम में ही देखने को मिलती है। मिट्टी के कुल्हड़ में केसर युक्त झागदार केसरिया दूध जिसकी खुशबू और स्वाद सभी मिठाइयों से अलग होती है, इसे मलइयो कहा जाता है। मलइयो की यही खासियत है कि यह आपके मुह में जाते ही घुल जाती है जिस कारण यह मिठाई बनारस की शान मानी जाती है। ठंड के समय मलइयो आपको सुबह-सुबह ही मिलती है, जिसमें आपको इलायची, दूध एवं केसर इन तीनों के स्वाद एवं सुगंध का अनुभव मिलता है।

मलइयो का स्वाद लेते युवा
मलइयो का स्वाद लेते युवा

लोग मलइयो को मिठाई से कहीं अधिक मानते हैं, इसे मिठाई मानना ही गलत है। हालांकि इसे मिठाई ना कह कर हम इसे डेजर्ट कह सकते हैं। क्योंकि इसे मिठाई की तरह नहीं बनाया जाता है। इसे बनाने के लिए आवश्यक है ठंडी का मौसम, ओस की बूंदे एवं कोहरा। मलइयो बनाने वालों का ऐसा मानना है कि जितनी अधिक ओस पड़ती है मलइयो का स्वाद उतना ही अधिक बढ़ जाता है। यही कारण है कि यह पूरे साल में केवल ठंड के मौसम में ही यह मिठाई बनाई जाती है।

इतिहास: कहाँ से आया मलइयो?

मलइयो का इतिहास सदियों पुराना है और यह बनारस की परंपरा एवं संस्कृति से जुड़ा हुआ है। सदियों पहले बनारस के गंगा किनारे उगने वाली घास को गाय खाया करती थी, जिस कारण गाय का दूध काफी गाढ़ा और मलाईदार होता था। गंगा किनारे पाई जाने वाली इन गायों को गंगातीरी गाय कहा जाता है। कई बार सर्दियों के समय जब दूध को ठंड में बाहर छोड़ दिया जाता था, तो उसमें मोटी मलाई की परत जम जाती थी। कई बार जब लोग इसे मथ देते थे तो इसमें काफी झाग उत्पन्न हो जाता था, जिसे लोग मलइयो कहा करते थे।

इस मिठाई को सबसे पहले किसने बनाया, इसका कोई भी ऐतिहासिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। परंतु ऐसा माना जाता है कि लोग दूध से घी मलाई इत्यादि निकालने के लिए दूध को मथते थे। ऐसे में गंगातीरी गाय के दूध में सबसे ज्यादा झाग उत्पन्न होता था, जिसे बनारसी मलइयो कहा करते थे और इसमें लोग अपने अपने अंदाज में शक्कर, मिश्री, इलायची इत्यादि मिला कर खाया करते थे। यहीं से धीरे-धीरे लोगों ने इस मिठाई को अपने-अपने अंदाज से बनाना भी शुरू किया और देखते ही देखते इस मिठाई नें व्यावसायिक रूप ले लिया। पहले सर्दियों में इस घर-घर बनाया जाता था। परंतु कुछ लोगों ने इसे और स्वादिष्ट बनाने का प्रयास किया एवं इसे एक पारंपरिक मिठाई की तरह पेश किया।

मलइयो कैसे बनती है?

मलइयो बनाने की प्रक्रिया जितनी सरल लगती है, इसे बनाना उतना ही कठिन है। मलइयो बनाने में पूरा-पूरा एक दिन का समय लगता है, सबसे पहले 40 से 50 किलो दूध को उबाल आने तक गर्म किया जाता है, फिर इसे प्राकृतिक तरीके से ठंडा किया जाता है। 40 से 50 किलो दूध से केवल 10 किलो मालियों बनता है। इस दूध को ठंडा करने के लिए इसे छोटे-छोटे बर्तनों में अलग-अलग रखा जाता है। इसे ऐसी जगह रखा जाता है जहाँ इसमें ओस एवं कोहरा जा सके। इसके बाद भोर में उठकर इस दूध को हाथ से मथा जाता है और जब इसमें से मक्खन वाला झाग (फेन) निकलता है तब उसमें इलायची केसर इत्यादि इंग्रेडिएंट्स को डालकर इसे पूरी तरह से तैयार कर लिया जाता है। 

मलइयो, बनारस की मिठाई
मलइयो, बनारस की मिठाई

इसे पूरी तरह से हाथ से बनाया जाता है इसमें किसी भी मशीन का प्रयोग नहीं किया जाता है। मलइयो बनाने का सबसे बेहतरीन मौसम दिसंबर और जनवरी ही होता है लेकिन बनारस में यह भैया दूज के अगले दिन से ही बनना शुरू हो जाता है। ठंडी जितनी अधिक पड़ती है मालियों उतनी ही अधिक सुंदर बनती है और इसे खाने का आनंद भी उतना अधिक आता है। 

कहाँ मिलेगी स्वादिष्ट मलइयो? 

बनारस में काल भैरव गली में स्थित श्री नन्द मिल्क एंड स्वीट्स के मालिक केशव यादव नें हमसे वार्तालाप के दौरान बताया की, मिलने के लिए मलइयो साल भर मिलती है लेकिन इसे आर्टिफिशियल तरीके से बनाया जाता है। असली मालियों केवल ठंडी के समय ही मिलती है। लोग मलइयो खाने के लिए ठंडी का इंतजार करते हैं। काल भैरव गली स्थित श्री नन्द मिल्क एंड स्वीट्स पर यह मिठाई नवंबर से लेकर मार्च तक मिलता है। 

बनारस की गलियों में स्थित मलइयो की पारंपरिक दूकान
बनारस की गलियों में स्थित मलइयो की पारंपरिक दूकान

इनके यहाँ मलइयो को पूरी तरह हाथों से ही बनाया जाता है, इसमें किसी भी प्रकार के मशीन का उपयोग नहीं किया जाता है। इसके अलावा इसे बनाने में नेचुरल इनग्रेडिएंट्स का प्रयोग किया जाता है, इसमें कोई भी आर्टिफिशियल इनग्रेडिएंट, केमिकल अथवा रंग इत्यादि का प्रयोग नहीं किया जाता है। यहाँ आपको शुद्ध आर्गेनिक मलइयो खाने को मिलती है।


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