Last Updated on March 8, 2025 by Yogi Deep
वाराणसी के गंगा घाटों में एक खास नाम है क्षेमेश्वर घाट। यह घाट न सिर्फ अपने धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है, बल्कि इसके इतिहास और विकास की कहानी भी रोचक है। घाट पर स्थित 19वीं शताब्दी के क्षेमेश्वर शिव मंदिर के कारण इस स्थान का नाम क्षेमेश्वर घाट पड़ा। मान्यता है कि इस मंदिर की स्थापना शिवभक्त (राक्षस) क्षेमक ने की थी, जो अपनी भक्ति के लिए प्रसिद्ध था। यह मंदिर स्थानीय लोगों के साथ-साथ गौड़ (भूजा) जाति के लोगों के लिए विशेष महत्व रखता है। क्षेमेश्वर शिव की पूजा गौड़ जाति के लोग विशेष रूप से करते हैं।
घाट का नाम | क्षेमेश्वर घाट |
क्षेत्र | वाराणसी |
निर्माण | 19वीं सदी |
निर्माता | कुमारस्वामी मठ |
विशेषता | क्षेमेश्वर शिव मंदिर |
दर्शनीय स्थल | क्षेमेश्वर शिव मंदिर |
क्षेमेश्वर घाट का इतिहस एवं नामकरण
इतिहासकारों के अनुसार, 19वीं तक नगर का एक नाला इस क्षेमेश्वर घाट के दक्षिणी हिस्से से जाकर गंगा में मिलता था। जिसके कारण इसे “नालाघाट” के नाम से जाना जाता था। प्रसिद्ध विद्वान जेम्स प्रिन्सेप और एम.ए. शेरिंग ने भी अपने लेखों में इस नाम का उल्लेख किया है। हालाँकि, 1931 में मोतीचन्द्र जैसे विद्वानों ने इसे “सोमेश्वर घाट” बताया, जो एक भ्रम प्रतीत होता है, क्योंकि यहाँ सोमेश्वर शिव से जुड़ा कोई मंदिर या तीर्थ नहीं है। संभवतः क्षेमेश्वर और सोमेश्वर नामों में असमंजस के कारण यह भ्रांति फैली।

घाट के विकास की यात्रा
क्षेमेश्वर घाट का वर्तमान स्वरूप कई चरणों में विकसित हुआ। 19वीं सदी में कुमारस्वामी मठ ने घाट के उत्तरी भाग का पक्का निर्माण कराया, जबकि यह घाट लंबे समय तक कच्चा था। साल 1958 में राज्य सरकार ने इस कच्चे हिस्से को पक्का बनवाया और पुराने घाट की मरम्मत कराई। आज यह घाट पूरी तरह पक्का है, लेकिन इसके बावजूद यह अन्य घाटों की तरह भीड़भाड़ वाला नहीं है।
स्थानीय जीवन और उपयोगिता
क्षेमेश्वर घाट धार्मिक आयोजनों या पर्यटन के बजाय स्थानीय दैनिक जीवन से जुड़ा हुआ है। यहाँ अक्सर गायों और अन्य पशुओं को नहलाने का काम होता था। साथ ही, धोबी समुदाय के लोग यहाँ कपड़े धोते थे। घाट के पास नावों की मरम्मत का कार्य भी सामान्य दृश्य है। यही कारण है कि स्नान करने वाले स्थानीय की संख्या भी यहां कम है।
क्षेमेश्वर घाट वाराणसी के उन घाटों में से एक है, जो अपने सादगीभरे जीवन और ऐतिहासिक विरासत के लिए जाना जाता है। यहाँ का शांत वातावरण और स्थानीय गतिविधियाँ इसे अनोखा बनाती हैं। अगर आप वाराणसी की असली महक को समझना चाहते हैं, तो इस घाट पर ज़रूर जाएँ—यहाँ का अनुभव आपको शहर की सांस्कृतिक बुनावट के करीब ले जाएगा।