Last Updated on December 14, 2024 by Yogi Deep
कात्यायनी देवी मंदिर वाराणसी के प्रमुख मंदिरों में से एक है, जो मां कात्यायनी को समर्पित है। मां कात्यायनी दुर्गा के नव रूपों में से एक हैं और नवरात्रि के छठे दिन माता की पूजा की जाती है। यह मंदिर ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण होने के साथ-साथ धार्मिक दृष्टिकोण से भी अत्यधिक पूजनीय है। आइए, इस मंदिर से जुड़ी प्रमुख जानकारी और इससे जुड़े धार्मिक संदर्भों को समझते हैं।
नवदुर्गा | कात्यायिनी देवी |
स्वरुप | षष्ठ स्वरूप |
संबंध | माँ दुर्गा का रूप (हिन्दू देवी) |
मंत्र | चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना। कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानव-घातिनी॥ |
अस्त्र | कमल व तलवार |
सवारी | सिंह |
स्थान | सी.के.-7/158, सिंधिया घाट, वाराणसी |
कात्यायनी देवी का वाराणसी में आगमन और उनका महत्व
कात्यायनी देवी माता शक्ति का ही दूसरा स्वरुप हैं। उनका नाम ऋषि कात्यायन से जुड़ा है, जिन्होंने मां दुर्गा की घोर तपस्या की जिसके फलस्वरूप माता ने उनके घर में पुत्री के रूप में अवतार लिया। ‘काशी खंड’ में कात्यायनी देवी का उल्लेख मिलता है। इसके अनुसार, मां कात्यायनी ने काशी में अपने भक्तों को आशीर्वाद देने के लिए निवास किया। काशी में स्थित कात्यायनी देवी मंदिर शिव शक्ति के मिलन का प्रतीक माना जाता है और यहां दर्शन करने से समस्त पापों से मुक्ति मिलती है।
ऐसी मान्यता है की जिन कन्याओ के विवाह मे विलम्ब हो रहा हो, उन्हें नवरात्री के छठवें दिवस माता की पूजा अर्चना करनी चाहिए, जिससे उन्हे मनोवान्छित वर की प्राप्ति होती है। मान्यता है की माता को पीली वस्तुएं अति प्रिय हैं। अतः जिन बालकों एवं कन्याओं की शादी में विघ्न आते हैं, वे माता को हल्दी-दही का लेप करें, पीला माला-फूल, पीला वस्त्र, पीला प्रसाद चढ़ाएं तो माता कुंवारी कन्याओं को उनके मन योग्य वर प्रदान करती हैं।
विवाह के लिये कन्याओं की इन कात्यायनी मन्त्र का जाप करना चाहिए।
ॐ कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरि । नंदगोपसुतम् देवि पतिम् मे कुरुते नम:॥
स्वरुप व महत्व
माता कात्यायनी देवी चार भुजाओं वाली हैं। उनका एक हाथ वर मुद्रा में तथा दूसरा अभय मुद्रा में है। उनके तीसरे हाथ में पुष्प कमल एवं चौथे हाथ में खड्ग सुशोभित है। माँ भगवती का वाहन सिंह है। जो साधक मन, कर्म एवं वचन से माता की उपासना करते हैं उन्हें धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति होती। माता शत्रु का विनाश कर भक्त को भय से मुक्ति दिलाती हैं।
कात्यायनी देवी मंदिर का इतिहास और निर्माण
इस मंदिर का निर्माण कब और किसके द्वारा किया गया, इसके संदर्भ में स्पष्ट ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं। लेकिन कहा जाता है कि यह मंदिर प्राचीन काल से ही यहां स्थित है और इसकी पूजा आदिकाल से होती आ रही है। काशी में स्थित अन्य देवी मंदिरों की तरह, यह मंदिर भी समय-समय पर पुनर्निर्माण और सुधार के दौर से गुजरा है। मंदिर की स्थापत्य शैली प्राचीन भारतीय मंदिर निर्माण कला का उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें पत्थरों और शिलाओं का उपयोग किया गया है। इसकी संरचना साधारण परंतु प्रभावशाली है, जो इसके आध्यात्मिक महत्त्व को और बढ़ाती है।
कात्यायनी देवी का मंदिर वाराणसी के पंचकोसी क्षेत्र में स्थित है। यह स्थान वाराणसी के उन धार्मिक स्थलों में आता है जहां हर साल लाखों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। मंदिर के गर्भगृह में मां कात्यायनी की मूर्ति प्रतिष्ठित है। इस मूर्ति का सौंदर्य अद्वितीय है और मां के रूप को एक दिव्य आभा प्रदान करता है।
काशी खण्ड से संदर्भ
‘काशी खण्ड’ में कहा गया है कि काशी में मां कात्यायनी का निवास होने से यहां के लोग सदैव उनकी कृपा के पात्र होते हैं। काशी खण्ड के अनुसार, मां कात्यायनी के दर्शन मात्र से मानव जीवन के सभी संकट दूर हो जाते हैं और भक्तों को सुख-शांति की प्राप्ति होती है। काशी खण्ड के अनुसार विकटा देवी को काशी में कात्यायनी देवी के नाम से पूजा जाता है। काशी खण्ड में राजा अमित्रजीत के कथा में विकटा देवी का वर्णन मिलता है।
काशी खण्ड की कथा के अनुसार राजा अमित्रजित और उनकी पत्नी ने प्रसन्नतापूर्वक एक व्रत का अनुष्ठान किया, जिससे प्रसन्न होकर देवी पार्वती नें उन्हें वरदान मांगने को कहा। रानी ने देवी पार्वती से प्रार्थना की कि उन्हें भगवान विष्णु के अंश से उत्पन्न पुत्र प्रदान हो, जो जन्म के बाद स्वर्गलोक जाए और फिर लौट आए। वह शिव का बड़ा भक्त हो और बिना माँ का दूध पिए ही सोलह साल का हो जाए। देवी पार्वती ने ‘तथास्तु’ कह दिया और रानी ने माता की क्रपा से एक पुत्र को जन्म दिया। लेकिन दुष्ट नक्षत्र में जन्म होने के कारण महाराज की मृत्यु भी हो सकती थी अतः पंडितों के कहने पर रानी ने बालक को विकटा देवी के पास भिजवा दिया। विकटा देवी ने योगिनियों को बुलाकर बालक की रक्षा करने को कहा। योगिनियों ने उसे ब्रह्माणी और अन्य मातृकाओं के पास ले जाकर आशीर्वाद दिलवाया। फिर बालक काशी में तपस्या करने लगा, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे वरदान देने की बात कही।
मंदिर से जुड़े कुछ प्रमुख तथ्य
- प्राचीनता: यह मंदिर बहुत प्राचीन है और इनकी पूजा का वर्णन ‘काशी खण्ड’ में मिलता है।
- आध्यात्मिक महत्त्व: कात्यायनी देवी की पूजा से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- नवरात्रि पूजा: नवरात्रि के दौरान यहां विशेष पूजा-अर्चना होती है और हजारों भक्त दर्शन के लिए आते हैं।
- स्थापत्य: मंदिर की संरचना साधारण है, लेकिन इसमें भारतीय मंदिर स्थापत्य कला के महत्वपूर्ण तत्व दिखाई देते हैं।
- पंचकोसी यात्रा: यह मंदिर पंचकोसी यात्रा का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है, जो वाराणसी के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है।
कात्यायनी देवी मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह काशी की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर का एक प्रमुख हिस्सा है। काशी खंड में इसका वर्णन इसे और भी विशिष्ट बनाता है। यहां आकर श्रद्धालु मां कात्यायनी के आशीर्वाद से अपने जीवन के कष्टों से मुक्ति पाते हैं और आध्यात्मिक शांति का अनुभव करते हैं।
कैसे पहुंचें
कात्यायनी दुर्गा मंदिर आत्म वीरेश्वर मंदिर के परिसर में स्थित है, यह मंदिर चौक मन्दिर पर माता संकटा मन्दिर के पीछे सी.के.-7/158, सिंधिया घाट पर स्थित है।
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