काशी की जगन्नाथ रथयात्रा

By Yogi Deep

Last Updated on December 14, 2024 by Yogi Deep

वैसे तो काशी बाबा विश्वनाथ की नगरी है। शैव नगरी होने के पश्चात भी यहां वर्ष भर विभिन्न प्रकार के उत्सवों का अंबार लगा रहता है। उन्हीं में से एक है काशी में होने वाली काशी की जगन्नाथ यात्रा। काशी में जगन्नाथ जी की रथ यात्रा आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को लक्खा मेले के रूप में मनाई जाती है। परंतु इस यात्रा का प्रारंभ ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा पर नाथों के नाथ श्री जगन्नाथ जी के स्नान यात्रा से किया जाता है। 

काशी की जगन्नाथ रथयात्रा

ताप से राहत के लिए भक्त करवाते हैं प्रभु को स्नान

काशी में जगन्नाथ जी की रथयात्रा मेले की शुरुआत ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन असि स्थित जगन्नाथ मंदिर में स्थापित भगवान जगन्नाथ के विग्रह को भक्तों द्वारा स्नान करवाने से शुरू होती है। ऐसी मान्यता है कि भीषण गर्मी के कारण भक्त अपने प्रिय भगवान को स्नान करवाने हेतु कलश यात्रा पर निकल जाते हैं। भक्त अपने चमचमाते कलश में गंगाजल, केवड़ा और गुलाब जल समेत अन्य कई सुगंधियां मिलाते हैं। बहन सुभद्रा व भइया बलभद्र समेत प्रभु को इससे सुबह से लेकर रात्रि तक स्नान कराते हैं।

भक्तों का ऐसा भाव है कि इस सावन के मौसम में भगवान अति स्नान करने के कारण बीमार हो जाते हैं। अत्यधिक स्नान के कारण उन्हें जुकाम बुखार हो जाता है। जिस कारण उन्हें 15 दिनों तक विश्राम करवाया जाता है। इन 15 दिनों में प्रभु के विश्राम में कोई खलल न पहुंचे इसलिए 15 दिनों के लिए मंदिर को बंद कर दिया जाता है।

अति स्नान से जब प्रभु हो जाते हैं बीमार

ऐसे में भगवान एवं भक्तों के मध्य एक भावप्रवण लोकाचार भी है। प्रभु के बीमार होने पर उन्हें पखवारे भर पूर्ण विश्राम कराया जाता है, ताकि प्रभु स्वस्थ हो सके। इस दौरान मंदिर के कपाट बंद रहते हैं एवं प्रभु को परवल का पथ्य एवं अन्य औषधियां दी जाती हैं। जहां प्रभु को 56 भोगों के स्थान पर एक कटोरी में गंगाजल में पकाए गए लौंग, इलाइची, चंदन, मरीच, जायफल एवं तुलसी दल की छौंक वाले औषधीय अर्थ युक्त दिव्य काढ़ा चढ़ाया जाता है।

इस काढ़े को भगवान के साथ-साथ भक्तजन भी बड़े भाव से प्रणाम कर पी लेते हैं। भक्तों की यह आस्था है कि जब यह खड़ा भगवान को स्वस्थ कर देता है तो हमारे लिए तो यह अमृत समान है। आस्था एवं विश्वास का यही भाव आपको अस्सी स्थित जगन्नाथ मंदिर में पखवारे भर देखने को मिलता है। 

जगन्नाथ जी को दी जाती है औषधि

यह औषधिय काढ़ा आषाढ़ अमावस्या तक प्रभु को स्वस्थ कर देती है। प्रातः काल नाड़ी परीक्षण के बाद भइया बलभद्र व बहन सुभद्रा समेत प्रभु जगन्नाथ के स्वस्थ होने की घोषणा हो जाती है। इसके पश्चात एक पखवारे से प्रतीक्षा कर रहे भक्तजनों के लिए मंदिर के कपाट खोल दिए जाते हैं। भक्तों का ऐसा भाव है कि पखवारे भर काढ़ा पीने के कारण प्रभु के मुंह का स्वाद भी कसैला हो गया होगा। इसे सही करने के लिए प्रभु को परवल का सूप भोग स्वरूप चढ़ाया जाता है। दोपहर में पूड़ी एवं परवल की भुजिया के साथ परवल की ही मिठाई का भोग लगाया जाता है। इसके बाद शुरू होती है काशी की उत्सव मिजाज वाली रथयात्रा। 

इतिहास

सात वार – नौ त्यौहार मिजाज वाली काशी में श्री जगन्नाथ जी की रथयात्रा की शुरुआत लगभग १७वीं सदी में हुई थी। वर्तमान में परंपरागत स्वरूप में भले ही थोड़ा परिवर्तन आया हो परंतु समय कल के साथ श्री जगन्नाथ जी से जुड़ी काशी वासियों की इस श्रद्धा आस्था वाली परंपरा में रंचमात्र भी परिवर्तन नहीं आया। लगभग तीन सदि से चल रही यह परंपरा आज भी अक्षुण्ण एवं निर्बाध बनी हुई है। काशी में स्थित जगन्नाथ स्वामी जी की कथा भी उड़ीसा के जगन्नाथ जी से जुड़ी हुई है। 

काशी में जगन्नाथ रथयात्रा

काशी में जगन्नाथ रथयात्रा की शुरुआत जगन्नाथ पुरी के एक निर्वासित ब्रह्मचारी ने किया था। 1790 में पुरी के राजा से किसी बात पर मतभेद हो जाने के कारण जगन्नाथ पुरी मंदिर के पुजारी एवं रथ यात्रा महोत्सव के प्रबंधक ब्रह्मचारी जी जगन्नाथ पुरी छोड़कर काशीपुरी आ गए। 

मतभेद होने के कारण पुरी नरेश ने ब्रह्मचारी जी को उस समय तो नहीं रोका परंतु जब पुरी नरेश को ब्रह्मचारी जी के संकल्प का स्मरण हुआ कि वह जगन्नाथ जी के प्रसाद के अलावा कुछ भी ग्रहण नहीं करते तब उन्हें इसका अत्यंत पश्चाताप हुआ। अतः पुरी नरेश ने ब्रह्मचारी जी के लिए हर सप्ताह उड़ीसा से काशी तक प्रसाद भेजने की व्यवस्था की। यह व्यवस्था वर्षों तक ऐसे ही चलती रही उस समय हरकारे (डाकिये) कांवर से प्रसाद लेकर काशी आते थे। परंतु एक बार भयंकर बाढ़ आने के कारण प्रसाद पहुंचने में कई हफ्तों लग गए, जिस कारण ब्रह्मचारी जी भूखे ही रह गए। 

काशी में जगन्नाथ मंदिर की स्थापना

जिस पर ब्रह्मचारी जी के सपने में महाप्रभु जगन्नाथ स्वयं आकर उन्हें काशी में ही प्रतिस्थापित करने का आदेश दिया। ब्रह्मचारी जी ने इस स्वप्न का उल्लेख उस समय के भोंसला राज्य के मंत्री पंडित बेनीराम एवं कटक के दीवान विश्वंभर पण्डित से किया। मंत्री एवं दीवान जी के अथक प्रयासों एवं भोसला राज बैंकोजी भोसले द्वारा दिए गए दान से जगन्नाथ जी का सकुटुंब काष्ठ विग्रह एवं मंदिर बनाकर असि क्षेत्र में स्थापित किया गया। मंदिर एवं उत्सव प्रबंधन हेतु बैंकोजी ने छत्तीसगढ़ का तखतपुर महाल काशी के जगन्नाथ मंदिर को दान कर दिया। तखतपुर के राजस्व से मिलने वाले धन का प्रयोग जगन्नाथ मंदिर एवं उससे संबंधित उत्सव प्रबंधन में होता रहा। 

Jagannath Temple, Kashi, Varanasi
Jagannath Temple, Kashi, Varanasi

कथाओं के अनुसार काशी में पंडित बेणीराम के बगीचे के समीप पुरी की तरह रथ यात्रा मेले का भव्यता से आयोजन किया जाता था। सन 1805 में पंडित बेनीराम का स्वर्गवास हो गया इसके पश्चात उनके वंशजों ने कि परंपरा को आगे बढ़ाया। सन 1857 में अंग्रेजों ने छत्तीसगढ़ पर आक्रमण करके उसे पर कब्जा कर लिया, इसके बाद भी काशी के जगन्नाथ पुरी में किसी भी प्रकार के पूजन उत्सव में कोई आर्थिक कमी नहीं आई। आज भी मंदिर में नियमित श्रद्धा पूर्वक पूजा अर्चना होती है एवं वार्षिक तीन दिवसीय रथ यात्रा मेले का आयोजन किया जाता है।

रथयात्रा के लिए भव्य रथ का निर्माण

काशी में जगन्नाथ मंदिर स्थापित होने के पश्चात मंदिर से जुड़े उत्सव भी प्रारंभ हुई। ब्रह्मचारी जी के आग्रह पर भव्य रथ का निर्माण सन 1802 में कराया गया। अष्टकोणीय शिखर वाला यह दो मंजिला रथ शीशम की लकड़ी से बनाया गया है। रथ में गर्भ ग्रह को कमानियों वाले छत्र से सजाया गया है। भारत के आगे सारथी एवं दो अश्व की कांस्य की प्रतिमाएं भी बनी हुई है। रथ के तैयार होने के साथ ही 1802 में काशी की रथयात्रा की शुरुआत हुई। लेकिन काशी के रथयात्रा का इतिहास इससे भी प्राचीन है। 

काशी के जगन्नाथ जी, जाते हैं अपने ससुराल

जगन्नाथपुरी में जहां भगवान स्वस्थ होने के उपरांत अपने मौसी के घर की यात्रा पर जाते हैं। वही काशी में प्रभु अपने ससुराल जाते हैं। जहां पंडित बेनीराम के वंशज दामाद की तरह उनका स्वागत करते हैं। इसी अवसर पर यहां रथयात्रा मेले का आयोजन किया जाता है। 

तीन दिनों तक लगता है मेला

काशी उत्सव की नगरी है और यही कारण है कि काशी ही एकमात्र ऐसी नगरी है जहां तीन दिनों तक रथ यात्रा महोत्सव मनाया जाता है। सड़क के बीचो-बीच भगवान श्री जगन्नाथ जी का दरबार लगता है। इस समय भगवान की छवि अति मनोहर लगती है। वर्ष में एक बार भगवान अपने भक्तों को दर्शन देने हेतु बाहर आते हैं और ऐसा माना जाता है कि इस समय दर्शन करने का फल एक वर्षों तक दर्शन करने के बराबर मिलता है।

भक्त भगवान को नानखटाई का लगाते हैं भोग

काशी की जगन्नाथ यात्रा में आए हुए श्रद्धालु भगवान को नानखटाई का भोग चढ़ाते हैं। मेले के दौरान यह भगवान जगन्नाथ जी का एक पारंपरिक भोग माना जाता है। नानखटाई की सबसे खास बात यह होती है कि यह मुंह में रखते ही घुल जाती है। मैदा, सूजी, मेवे एवं नारियल की सामग्री को तैयार करके सांचे में भरकर तंदूर में पका कर नानखटाई का स्वरूप दिया जाता है। इस सामग्री के अलावा भी कई अन्य फ्लेवर के नानखटाई को भी बनाया जाता है जिसमें काजू, पिस्ता इत्यादि का भी प्रयोग किया जाता है।  

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