काशी की छठ पूजा: आस्था और भक्ति का महापर्व

By Arvind Mishra

Last Updated on December 14, 2024 by Yogi Deep

काशी की छठ पूजा, काशी! सात वार नौ त्यौहार वाला शहर। खासकर कार्तिक महीने मे तो क्या ही पूछने। इसी महीने मे एक पर्व है छठ। जो आस्था और विश्वास का सबसे बड़े लोक पर्व में से एक। आर्यावर्त के उस हिस्सेका उत्सव है जहाँ पंडित जी के पतरा से ज्यादा ज्ञान पण्डिताइन के अंचरा में रहता है। विशेषकर उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में इसे व्यापक रूप से मनाया जाता है, और काशी की छठ पूजा का आकर्षण श्रद्धालुओं के लिए विशेष होता है।

छठ पूजा का महत्व

वर्तमान में जब समाज में लैंगिक असमानता, स्त्री विमर्श, की तमाम बातें उठा रहीं हैं। छठ अपने मूल स्वभाव में सह-अस्तित्व और धारणीय विकास के साथ साथ स्त्री सशक्तिकरण का एक महत्वपूर्ण उत्सव सिद्ध हुआ है।
छठ पूजा की महत्ता इसलिए भी बढ़ जाती है क्योंकि इसमें सूर्य की उपासना की जाती है। कुछ सनातन धर्मी मानते हैं कि छठ सिर्फ प्रत्यक्ष देवता सूर्य की उपासना का त्योहार है। “सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च” जिसका अर्थ है सूर्य जगत की आत्मा है, क्योंकि सूर्य की ऊर्जा व रोशनी ही जगत में ऊर्जा व चेतना भरती है। सूर्य की ऊर्जा ही इस पृथ्वी पर जीवन का स्रोत है, और छठ पूजा उसी ऊर्जा के प्रति कृतज्ञता और भक्ति का पर्व है।

काशी में छठ पूजा
काशी में छठ पूजा (इमेज – अरविन्द मिश्र)

काशी की छठ पूजा में परंपरागत रूप से संज्ञा सहित सूर्य की पूजा की जाती है। इस पर्व में काशी के विभिन्न घाटों पर भक्त सूर्य को अर्घ्य देकर, उन्हें नमन करते हैं। गंगा के तट पर, सूर्यास्त और सूर्योदय के समय अर्घ्य देने का विशेष महत्व है। यह अर्घ्य न केवल सूर्य देव को समर्पित होता है बल्कि प्रकृति और उसके तत्वों के प्रति आदर की भावना को भी दर्शाता है।

छठ पूजा का पौराणिक इतिहास

छठ पर्व की उत्पत्ति के पीछे अनेक पौराणिक कथाएँ हैं। पौराणिक परंपरा में संज्ञा को सूर्य की पत्नी कहा गया है। इस पर्व की परंपरा कम से कम 1000 साल प्राचीन है क्योंकि गहड़वाल राजा गोविंदचंद्र (12वीं शती का पूर्वाद्ध) के सभा पंडित लक्ष्मीधर कृत्यकल्पतरु में इस दिन सूर्य की पूजा का विधान किया है।

स्कंद पुराण के अनुसार, दुख और रोग नाश के लिए सूर्य का व्रत करने का विधान बताया गया है। इस व्रत का पालन करने से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है। ऐसी मान्यता है कि इस पर्व को करने से भगवान भास्कर सभी कष्टों का नाश कर देते हैं।

सूर्य – ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च। हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन् (यजु. 33। 43, 34। 31) लेकिन देवी भागवत में पढ़ने से पता चलता है कि वहाँ षष्ठी देवी का पूरा चरित्र है। कार्तिक शुक्ल षष्ठी एवं सप्तमी तिथि को पारंपरिक रूप से विवस्वत् षष्ठी का पर्व मनाया जाता है। इसमें प्रधान रूप से संज्ञा सहित सूर्य की पूजा का विधान है।

मिथिला के धर्मशास्त्री रुद्रधर (15वी शती) के अनुसार इस पर्व की कथा स्कंदपुराण से ली गई है। इस कथा में दुख एवं रोग नाश के लिए सूर्य का व्रत करने का उल्लेख किया गया है- “भास्करस्य व्रतं त्वेकं यूयं कुरुत सत्तमा:। सर्वेषां दु:खनाशो हि भवेत्तस्य प्रसादत:।”

एक अन्य संदर्भ में शिव की शक्ति से उत्पन्न कार्तिकेय को छह कृतिकाओं ने दूध पिलाकर पाला था। अत: कार्तिकेय की छह माताएं मानी जाती हैं। और उन्हें षाण्मातर् भी कहा जाता है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि कृतिका नक्षत्र छह ताराओं का समूह भी है तथा स्कंद षष्ठी नाम से एक व्रत का उल्लेख भी है।

लोक मान्यता के अनुसार बच्चे के जन्म के छठे दिन स्कंदमाता षष्ठी की पूजा भी प्राचीनकाल से होती आयी है। अत: सूर्य-पूजा तथा स्कंदमाता की पूजा की पृथक परंपरा एक साथ जुड़कर सूर्यपूजा में स्कंदषष्ठी समाहित हो गई है, किन्तु लोक संस्कृति में छठी मैया की अवधारणा सुरक्षित है। 

वाराणसी के ग्रामीण क्षेत्र में छठ पूजा करती महिलाएं
वाराणसी के ग्रामीण क्षेत्र में छठ पूजा करती महिलाएं (इमेज – नागेश तिवारी)

छठ पूजा 2024 की महत्वपूर्ण तिथियाँ

नहाय खाय (5 नवंबर 2024): छठ पूजा का पहला दिन होता है। इस दिन श्रद्धालु नदी या तालाब में स्नान करते हैं और शुद्ध, सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं। इस दिन से पूजा की शुरुआत होती है।

खरना (6 नवंबर 2024): दूसरे दिन व्रती (व्रत रखने वाले लोग) पूरा दिन बिना पानी पिए उपवास करते हैं। शाम को पूजा करने के बाद, खीर, रोटी और फल का प्रसाद ग्रहण किया जाता है।

संध्या अर्घ्य (7 नवंबर 2024): तीसरे दिन, सूर्यास्त के समय व्रती नदी या तालाब के किनारे जाकर सूर्य देव को अर्घ्य (जल अर्पण) देते हैं। यह दिन छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है।

प्रातःकालीन अर्घ्य (8 नवंबर 2024): चौथे और अंतिम दिन, उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इसके बाद व्रती अपना उपवास समाप्त करते हैं और प्रसाद का वितरण करते हैं।

काशी में छठ पूजा की विशेषता

काशी की छठ पूजा की रौनक देखते ही बनती है। गंगा के तट पर बने घाट, सूर्य को अर्घ्य देने वाले श्रद्धालुओं से भरे रहते हैं। हर घाट पर भक्तगण अपनी-अपनी वेदी बनाकर सूर्य की आराधना करते हैं। छठ पर्व के दौरान पूरा वातावरण भक्तिमय हो जाता है। यहाँ के अस्सी घाट, दशाश्वमेध घाट, अस्सी घाट, राजेंद्र प्रसाद घाट और पंचगंगा घाट जैसे प्रसिद्ध घाटों पर छठ पूजा की अद्वितीय छटा देखने को मिलती है।

संध्या के समय सूर्य को अर्घ देती महिलाएं
संध्या के समय सूर्य को अर्घ्य देती महिलाएं (इमेज – अरविन्द मिश्र)

काशी में इस पर्व को पूरे पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है। लोग व्रत रखते हैं, निराहार रहते हैं और संध्या समय गंगा के तट पर जाकर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते हैं। काशी में हर ओर दीप जलाए जाते हैं, और गंगा की लहरों पर उनका प्रतिबिंब मानो आध्यात्मिक शांति और सौंदर्य की छटा बिखेरता है।

छठ पूजा की विधि और अनुष्ठान

छठ पूजा चार दिनों का पर्व है। यह पर्व नहाय-खाय के साथ शुरू होता है, इसके बाद खरना, संध्या अर्घ्य और उषा अर्घ्य देकर इसे सम्पन्न किया जाता है। व्रती महिलाएं और पुरुष इस पर्व के दौरान शुद्धता और संयम का विशेष ध्यान रखते हैं। 

षष्ठी तिथि को निराहार व्रत रहकर संध्या समय में नदी के तट पर जाकर धूप, दीप, घी, में पकाये हुए पकवान आदि से भगवान भास्कर की आराधना कर उन्हें अ‌र्घ्य दें। यहां अ‌र्घ्य-मंत्र इस प्रकार कहे गए हैं-

अर्घ्य मंत्र

“नमोऽस्तु सूर्याय सहस्रभानवे नमोऽस्तु वैश्वानर जातवेदसे।
त्वमेव चाघर्य प्रतिगृह्ण गृह्ण देवाधिदेवाय नमो नमस्ते।।
नमो भगवते तुभ्यं नमस्ते जातवेदसे।
दत्तमघ्र्य मया भानो त्वं गृहाण नमोऽस्तु ते।। 

एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते।
अनुकम्पय मां भक्त्या गृहाणाघ्र्य दिवाकर।।
एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते।
गृहाणाघ्र्य मया दत्तं संज्ञयासहित प्रभो।”

इस मंत्रोच्चार के साथ भक्तजन भगवान भास्कर को जल चढ़ाकर उन्हें अर्घ्य अर्पित करते हैं।

लोक मान्यताएं और काशी की संस्कृति में छठ पूजा का स्थान

छठ पूजा का महत्व केवल धार्मिक नहीं है, बल्कि यह समाज में महिलाओं के सशक्तिकरण का प्रतीक भी है। इस पर्व में महिलाएं विशेष रूप से व्रत रखती हैं और अपने परिवार के सुख और समृद्धि के लिए पूजा करती हैं। यह पर्व नारी शक्ति और धैर्य का अद्भुत प्रदर्शन करता है। इस दौरान महिलाएं 36 घण्टों तक कठिन व्रत करती हैं और पूरे मनोयोग से सूर्य की उपासना करती हैं।

काशी में छठ पूजा करती महिलाएं
काशी में छठ पूजा करती महिलाएं (इमेज – अरविन्द मिश्र)

छठ पर्व में लोक संस्कृति और परंपराएँ इस प्रकार सम्मिलित होती हैं कि एक साधारण व्यक्ति से लेकर काशी के पंडितजन तक इसमें भागीदारी निभाते हैं। काशी में लगभग सभी घाटों पर भक्तगण डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं, और यह दृश्य बेहद मनमोहक होता है।


अतः छठ पूजा न केवल सूर्य उपासना का पर्व है, बल्कि यह काशी की आस्था, प्रेम और परंपरा का प्रतीक है। यह पर्व प्रकृति, समाज, और परिवार के प्रति आस्था का प्रतीक है। काशी के घाटों पर छठ पूजा की छवि एक अद्भुत अनुभव है, जिसमें धार्मिक उत्साह और आस्था की लहर देखने को मिलती है।काशी की छठ पूजा समाज में सह-अस्तित्व, पर्यावरण संरक्षण और नारी सशक्तिकरण का संदेश देती है। यह पर्व भारतीय संस्कृति का एक ऐसा अनमोल हिस्सा है, जो हमें हमारे मूलभूत आदर्शों से जोड़ता है।

छठ पूजा कब है? 2024

 इस वर्ष छठ पूजा 05 नवंबर से लेकर 08 नवंबर तक मनाया जाएगा।

छठ पूजा का नहाए खाए कब है

05 नवंबर को नहाय खाय होगा, यहीं से छठ पूजा की शुरुआत होती है।

छठ पूजा का अर्घ्य कब-कब होगा?

पूजा के प्रथम शाम के समय का अर्घ्य 7 नवंबर को एवं सुबह का अर्घ्य 8 नवंबर को दिया जाएगा।

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