काशी के 56 विनायक

By Yogi Deep

Last Updated on December 14, 2024 by Yogi Deep

काशी के 56 विनायक सात आवरण में वाराणसी की सुरक्षा करते हैं। स्कन्द पुराण के अनुसार पद्म कल्प के दौरान काशी खण्ड के साथ ही सम्पूर्ण पृथ्वी पर भयंकर सूखा पड़ा। ब्रह्मा जी पूरे मानव जाति को इस भयंकर सूखे से बचना चाहते थे अतः उन्होंने राजा रिपुंजय को दिवोदास नाम देकर संपूर्ण पृथ्वी को अपने क्षत्र छाया में लेने का अनुरोध किया, जिससे संपूर्ण मनुष्य जाति की रक्षा की जा सके।

राजा दिवोदास ने एक ऐसी राज्य की रचना की जहां पूर्ण रूप से समृद्ध एवं निर्दोष लोगों का निवास था। ऐसा नीति-रीति वाला राज्य आज तक किसी ने नहीं देखा था। उस राज्य में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं था जो अधर्म का कार्य करता हो।
हजारों वर्षो तक ध्यान में रहने के पश्चात भगवान शिव जब काशी में लौटना चाह रहे थे तब उनको ब्रह्मा जी एवं दिवोदास के बीच हुए समझौते की जानकारी हुई। जिस कारण भगवान शिव काशी नहीं लौट सकते थे।

सूर्य देव एवं योगिनियों को भेजने के पश्चात अंत में शिव जी ने श्री गणेश जी को काशी भेजा, क्योंकि कोई भी दिवोदास के राज्य में कोई भी कमी नहीं निकाल पाया था। अंत में श्री गणेश जी अपने बुद्धि के बल पर राजा दिवोदास के राज्य में कमी निकालने में सफल हुए एवं शिव जी नें पुनः काशी में प्रवेश किया। इसके पश्चात काशी की सुरक्षा हेतु श्री गणेश जी सात आवरण में स्वयं को काशी में 56 रूपों में विद्यमान कर लेते हैं।

अनुक्रम

काशी में स्थित 56 विनायक एवं उनके स्थल

कोई भी व्यक्ति यदि इन 56 विनायकों की पूजा करते हैं उन्हें हर प्रकार के कष्टों से मुक्ति प्राप्त होती है। इतना ही नहीं इनके दर्शन एवं उनके स्तोत्र एवं कहानियों को पढ़ने एवं सुनने वाले व्यक्ति के रास्ते में कोई बाधा भी नहीं रहती है एवं वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है।

Kashi ke 56 Vinayak
Kashi ke 56 Vinayak

।श्री गणेशाय नमः।

नमो विघ्नहर्ता नमो गणाधीशा गणनायका गणपती च नमो विनायकं ।
श्री विश्वेश्वरस्य आवर्णम करोती

सूत उवाच :-

गच्छता व्योम मार्गेण पृष्टा दूता महात्मना ।
वाराणसी-स्थितानां तु गणेशानां महात्मनाम़ ।
नामानि परिवाराणां तानि नः शृणुतानघाः ।

राजोवाच :-

दूता वदंतु कृपया विश्वेश परिवारगाऩ ।
गणेशान्मम कातस्तर्न्येन स्मरणात-सर्व-सिद्धिदान ।

प्रथम आवरण

दूता ऊचुः।
कथयामः समासेन विश्वेशावरणे गता़न ।
गणेशान्क्रमशो राजञ्शृणु सर्वभयापहान ।
दुर्गाविनायकोऽथार्क भीमचण्डी विनायकः।
देहलीगणपश्चाथ तथोद्दण्डविनायकः ।
पाशपाणीः सर्वविघ्न हरणोऽथ विनायकः।
प्रथमावरणे सिद्ध-सिद्धि-रूपो विनायकः।

१. अर्क विनायक

अर्क विनायक का मंदिर 2/17 तुलसी घाट स्थित लोलार्क कुण्ड के पास विद्यमान है। रविवार को इनका दर्शन-पूजन करने का विशेष महत्व है।

२. दुर्ग विनायक

दुर्ग विनायक का मंदिर 27/1 दुर्गाकुण्ड के पीछे स्थित है। यह मंदिर सुबह पांच से दोपहर 12 बजे तक और शाम को चार से रात 10 बजे तक खुला रहता है। मंदिर में मंगला आरती सुबह पांच बजे और सन्ध्या आरती शाम सात बजे होती है।

३. भीमचण्डी विनायक

भीमचण्डी विनायक का मंदिर पंचकोशी मार्ग में स्थित है। इनका मंदिर हर समय खुला रहता है।

४. देहली विनायक

देहली विनायक का मंदिर वाराणसी शहर से 20 किलो मीटर दूर गांव में स्थित है। यह मंदिर हर समय खुला रहता है। 

स्वयं भगवान्‌ शंकर ने काशी के पश्चिम क्षेत्र की रक्षा के लिये ‘देहली विनायक’ को नियुक्त किया है। (स्कन्द पु०, का० ख०, ७९५)

५. उद्दण्ड विनायक

उद्दंड विनायक रामेश्वर के पास एक गांव में स्थित है। उद्दण्ड विनायक भक्तों के दैनिक जीवन में आने वाली बड़ी से बड़ी बाधाओं को भी दूर कर देते हैं।

६. पाशपाणि विनायक

पाशपाणि विनायक इनका मंदिर सदर बाजार क्षेत्र में स्थित है।

७. खर्व विनायक

खर्व विनायक का मंदिर राजघाट किले के बगल में स्थित है। 

खर्व विनायक मनुष्यों को महासिद्धि देनेवाले हैं। (स्कन्द पु०, का० ख०, ८०३)

८. सिद्धि विनायक

सिद्धि विनायक का मंदिर मणिकर्णिका कुण्ड के पास है।

द्वितीय आवरण

कुष्माण्डाख्यश्चतुर्थंश्च पंचमो मुण्डसंज्ञकः।
विकट-द्विज-संज्ञस्तु राजपुत्र-विनायकः।
प्रणवाख्योऽथापरश्च द्वितीयावरणे स्थिताः ।

९. लम्बोदर विनायक

लम्बोदर विनायक का मंदिर केदारघाट पर स्थित है।

१०. कूटदंत विनायक

कूटदंत विनायक का मन्दिर क्रींकुण्ड पर है।

११. शालकण्ड विनायक

शालकण्ड विनायक (शूलटंक विनायक) इनका मन्दिर मण्डुवाडीह पर है।

१२. कुष्माण्ड विनायक

कुष्माण्ड विनायक का मंदिर फुलवरिया में है।

१३. मुण्ड विनायक

इनका मंदिर सदर बाजार में स्थित है।

१४. विकटद्विज विनायक

विकटद्विज विनायक मंदिर धूपचंडी क्षेत्र में है।

१५. राजपुत्र विनायक

इनका मंदिर राजघाट किले के पास स्थित है।

१६. प्रणव विनायक

प्रणव विनायक का मंदिर त्रिलोचन घाट पर स्थित है।

तृतीय आवरण

वक्रतुण्ड एकदन्तस्त्रिमुखश्च विनायकः।
पंचास्यश्चापरशचात्र हेरम्बश्च विनायकः।
विघ्नराजोऽपरश्चापि वरदश्च विनायकः।
मोदकप्रिय इत्येव तृतीयावरणे स्तिताः।

१७. वक्रतुण्ड विनायक

वक्रतुण्ड विनायक का मंदिर लोहटिया में है।

१८. एकदंत विनायक

एक दंत विनायक का मंदिर D-32/102 पुष्प दंतेश्वर बंगाली टोला में स्थित है। एक दंत विनायक काशी को बुरी शक्तियों से बचाते हैं।

१९. त्रिमुख विनायक

इनका मंदिर सिगरा टीले के पास है।

२०. पंचास्य विनायक

पंचास्य विनायक का मंदिर पिशाचमोचन स्थित है।

२१. हेरम्ब विनायक

हेरम्ब विनायक का मन्दिर मलदहिया इलाके में है।

२२. विघ्नहरण विनायक (विघ्नराज विनायक)

इनका मन्दिर चित्रकूट इलाके में स्थित है।

२३. वरद विनायक

वरद विनायक का मन्दिर प्रह्लाद घाट पर है।

२४. मोदकप्रिय विनायक

इनका मन्दिर त्रिलोचन मन्दिर के पास है।

चतुर्थ आवरण

विनायकोऽभयप्रदः सिंहतुण्ड -विनायकः।
कुणिताक्षश्चापरश्च क्षिप्रप्रसादसंज्ञकः ।
चिंतामणिरिति ख्यातो दंतहस्त-विनायकः।
प्रचंडश्चाप्य-परश्चोद्दण्डमुण्डविनायकौ ।
चतुर्थावरणे ज्ञेया अष्टावेते विनायकः।

२५. अभय विनायक (अभयप्रद विनायक)

सभी भयों से मुक्ति देने वाले अभय विनायक का मंदिर D 17/111, दशाश्वमेध घाट के बगल में स्थित है। दर्शनार्थी रिक्शा से इस मंदिर तक पहुँच सकते हैं। यह मंदिर दर्शन पूजन के लिए दिन भर खुला रहता है।

२६. सिंह तुण्ड विनायक

सिंह तुण्ड विनायक इनका मन्दिर खालिसपुरा में है।

२७. कुणिताक्ष विनायक

कुणिताक्ष विनायक इनका मन्दिर लक्ष्मीकुण्ड में है।

२८. क्षिप्र प्रसाद विनायक

प्रसाद विनायक का मन्दिर पितरकुण्डा पर है।

२९. चिन्तामणि विनायक

चिन्तामणि विनायक का मंदिर K 26/42 ईश्वर गंगी तालाब के पूरब स्थित है। लहुराबीर से रिक्शा के जरिए इस मंदिर तक पहुँचा जा सकता है। दर्शनार्थी किसी भी समय मंदिर में दर्शन-पूजन कर सकते हैं।

३०. दंतहस्त विनायक

दन्त हस्त विनायक का मन्दिर K 58/101 बड़ा गणेश मंदिर के पास लोहटिया में स्थित है। यह मंदिर भोर में साढ़े चार बजे से रात साढ़े दस बजे तक खुला रहता है। प्रतिदिन मंगला आरती पौने पांच बजे सुबह व शाम की आरती रात साढ़े दस बजे होती है। बुधवार को मंदिर में विशेष आरती रात साढ़े ग्यारह बजे होती है।

३१. पिचडिला विनायक

इनका मन्दिर प्रह्लाद घाट पर है।

३२. उद्दण्डमुण्ड विनायक

उद्दण्ड मुण्ड विनायक A-2/80, त्रिलोचन मंदिर में स्थित है। उद्दण्डमुण्ड विनायक भक्तों को आशीर्वाद और समृद्धि प्रदान करते हैं। निकट ही, पिलपिला तीर्थ हैं, जिसे काशी खंड में बहुत महत्व दिया गया है वर्तमान में यह एक कूप (कुआँ) के रूप में विद्यमान है।

पंचम आवरण

स्थूलदन्तो द्वितीयस्तु कलिप्रिय-विनायकः।
चतुर्दन्तो द्वितुण्दाख्वो ज्येष्ठो गज-विनायकः।
कालाख्यश्च तथा ज्ञेयो मार्गेशाख्योपरोऽपि च।
पंचमावरणे ज्ञेया अष्टावेते विनायकः।

३३. स्थूलदन्त विनायक

स्थूलदन्त विनायक का मन्दिर मानमंदिर के पास है।

३४. कलिप्रिय विनायक

कलिप्रिय विनायक का मंदिर D 10/50 साक्षी विनायक के पीछे मनप्रकमेश्वर मंदिर के पास स्थित है।

३५. चतुर्दंत विनायक

चतुर्दंत (चक्रदंत) विनायक का मंदिर D 49/10 सनातन धर्म स्कूल नई सड़क के पास ही स्थित है। दर्शनार्थियों के लिए यह मंदिर हमेशा खुला रहता है।

३६. द्वितुंड विनायक (द्विमुख विनायक)

द्वितुंड विनायक (द्विमुख विनायक) का मंदिर D 51/90 संबा आदित्य के पश्चिम सूरज कुण्ड के पास स्थित है।

३७. ज्येष्ठ विनायक

ज्येष्ठ विनायक का मंदिर K 62/144 सप्तसागर मोहल्ला में स्थित है। मैदागिन से इस मंदिर तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। यह मंदिर दर्शन पूजन के लिए सुबह साढ़े पांच बजे से दोपहर साढ़े 12 बजे तक और शाम पांच से रात साढ़े आठ बजे तक खुला रहता है।

३८. गज विनायक

गज विनायक का मंदिर CK 54/44 राजा दरवाजा बड़ा भूतेश्वर मंदिर के पास स्थित है। चौक से रिक्शा या पैदल चलकर इस मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।

३९. काल विनायक

काल विनायक K 247/10 राम घाट पर स्थित है। चौक से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।

४०. नागेश विनायक

इनका मन्दिर भोंसला घाट पर है।

षष्ठम आवरण

मणिकर्णि-विनायक आशासृष्टि-विनायकः।
यक्षाख्यो गजकर्णाख्यश्चित्र-धण्ट-विनायकः।
सुमंगलश्च मित्राख्य एते षष्ठे-विनायकः।

४१. मणिकर्ण विनायक

मणिकर्ण विनायक (मणिकर्णिका विनायक), मणिकर्णिका घाट के मुख्य द्वार के सामने स्थित है।

४२. आशा विनायक

आशा विनायक का मंदिर D-3/71 मीर घाट हनुमान मंदिर के पास स्थित है। इनके दर्शन-पूजन से सारी मनोकामनायें पूरी होती है। विश्वनाथ गली दशाश्वमेध घाट होते हुए यहां पहुंचा जा सकता है यह मंदिर सुबह सात बजे से दोपहर एक बजे तक और शाम को चार से रात 9 बजे तक खुला रहता है।

आशा विनायक एवं वहां पर स्थित परम अद्भुत धर्मकूप, जहाँ पिण्डदान करके मनुष्य अपने पितरोंको ब्रह्मलोकमें पहुँचा सकता है। (स्कन्द पु०, का० ख०, ८०४)

४३. सृष्टि विनायक

इनका मन्दिर कालिका गली में है।

४४. यक्ष विनायक

इनका मंदिर कोतवालपुरा में है।

४५. गजकर्ण विनायक

CK 37/43, कोतवालपुरा ईशानेश्वर में स्थित हैं इस मंदिर में कभी भी दर्शन-पूजन कर सकते हैं।

४६. चित्रघण्ट विनायक

चित्रघण्ट विनायक का मंदिर CK 23/34 चित्र घण्टा देवी के पास स्थित है। यह मंदिर चौक में यूको बैंक के सामने गली में स्थित है दर्शनार्थी दिनभर कभी भी मंदिर में जाकर दर्शन-पूजन कर सकते हैं।

४७. मंगल विनायक

मंगल विनायक बालाघाट में स्थित है।

४८.मित्र विनायक 

मित्र विनायक Ck-7/158, सिंधिया घाट पर आत्मा वीरेश्वर के परिसर में स्थित है जो वाराणसी का एक प्रसिद्ध इलाका है।

सप्तम आवरण

मोदः प्रमोदः सुमुखो दुर्मुखश्च विनायकः।
गणपाख्योथापरश्च तथा ज्ञेयो ज्ञान विनायकः।
सप्तमावरणे ज्ञेया स्तथा द्वार-विनायकः।
अविमुक्तोऽष्टमो यत्र मोक्षदोऽथ विनायकः।
अन्यो भगीरथाख्यो हि हरिश्चन्द्र-विनायकः।
कपर्दीति परो ज्ञेय-स्तथा बिंदु-विनायकः।

४९. मोद विनायक

इनका मन्दिर काशी करवट मन्दिर के पास है।

५०. प्रमोद विनायक

प्रमोद विनायक का मन्दिर CK 31/16 काशी में है।

५१. सुमुख विनायक

सुमुख विनायक का मन्दिर मोतीघाट पर स्थित है। 

५२. दुर्मुख विनायक

दुर्मुख विनायक का मंदिर CK 34/60 काशी करवट मंदिर के पास स्थित है। चौक से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। 

५३. गणनाथ विनायक

गणनाथ विनायक का मंदिर CK 37/1 ढंढ़ी राज गली विश्वेश्वर मंदिर के पास स्थित है। ज्ञानवापी से मंदिर तक आसानी से पहुंचा जा सकता है।

५४. ज्ञान विनायक

ज्ञान विनायक का मंदिर खोवा गली चौराहा CK 28/4 लंगीलेश्वर मंदिर सुबह आठ से दस बजे तक और शाम छह बजे तक खुला रहता है।

५५. द्वार विनायक

द्वार विनायक का मंदिर स्वर्गद्वारेश्वर मणिकर्णिका घाट के पास स्थित है। यहां कभी भी दर्शन-पूजन किया जा सकता है।

५६. अविमुक्त विनायक

कुछ लोगों के अनुसार मूल अविमुक्त विनायक का मंदिर गायब हो चुका है। वहीं ज्ञानवापी मस्जिद के पास अविमुक्त विनायक का मंदिर है। बगल में ही विश्वेश्वर विश्वनाथ जी का मंदिर है। ऐसी मान्यता है कि अविमुक्त विनायक सारी परेशानियों से मुक्ति देते हैं।

एतेषां स्मरणं नित्यं सर्वकामफलप्रदम़ । प्राथरुत्थाय यश्चैतान्पठते शुद्धमानसः।
न तस्य विघ्ना विघ्नं हि कुर्वन्ति सर्वकर्मसु । एकैकनाम्ना दाजेन्द्र दुर्वाभिस्तन्दुलैरपि।
तिलैः-शमी-दलैश्चैतान्पुजयेद़-भक्तिमान्नरः। असाध्यं साधयेतकार्यं सर्वत्र विजयी भवेत।
आयुष्यं पुष्टिमारोग्यं प्राप्नुयाद्धनमुत्तमम़ । इदं ते कथितं सर्वं यद्धि पृष्टं त्वया नृप।
तृर्ष्णि ययुर्देवदूतास्ततो धाम निजं मुदा । इती श्री गणेशपुराणे क्रीडाखंडे
चतु़ःपंचाशदुत्तरशततमोध्याये षटपंचाशद-विनायक वर्णनम संपूर्णम।

वर्तमान में काशी कॉरिडोर बनने के कारण 4 विनायक अपने मूल स्थान से हटाये गए हैं। परन्तु अभी तक उनकी स्थापना नहीं की गई है।

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