Last Updated on December 20, 2024 by Yogi Deep
जानकी घाट काशी के उन घाटों में से एक है जो अपने सुन्दरता और शांति के लिए प्रसिद्ध है। यूँ तो इस घाट पर किसी भी प्रकार का कोई धार्मिक कार्यक्रम नहीं होता है, परन्तु यहाँ लोग तीर्थ इत्यादि के समय स्नान करने आते हैं। वैसे तो काशी के सभी घाटों की अपनी-अपनी एक अलग पहचान है, परन्तु उनमें गंगा किनारे स्थित इस घाट का अपना एक अलग ही स्थान है। इस घाट के बनने का अपना एक अलग ही इतिहास है जिसे हम आगे विस्तार से जानेंगे।
जानकी घाट
जानकी घाट का निर्माण 1870 वीं सदी में सुरसंड (सुरसर1) रियासत की रानी कुंवर ने इस घाट का निर्माण करवाया था। इसके साथ ही रानी नें यहाँ जानकी मंदिर एवं महल का निर्माण भी करवाया। रानी ने अपनी आराध्या जानकी देवी के नाम पर इस घाट का नाम रखा। इस घाट पर दो आवासीय भवन भी है जिसमें शिव एवं विष्णु भगवान के मंदिर स्थित है। इस घाट पर किसी भी प्रकार का धार्मिक कार्यक्रम नहीं होता है। परन्तु यहाँ स्थित इन मंदिरों में सुबह-शाम दर्शन पूजन हेतु लोग जाया करते हैं।
इतिहास
जानकी घाट वाराणसी के ऐतिहासिक और धार्मिक घाटों में से एक है। सन् 1870 से पहले यह एक कच्चा घाट हुआ करता था, इस घाट को लोग नघम्बरघाट के नाम से जानते थे। इस कच्चे घाट का स्वरूप बदलने का श्रेय बिहार के सुरसंड राज्य की रानी कुंवर को जाता है। 1870 के दशक में रानी कुंवर ने इस घाट का पक्का निर्माण करवाया। इसके आलावा रानी कुंवर के आदेश पर यहां जानकी मंदिर और एक महल का निर्माण भी करवाया गया।
इसके अतिरिक्त घाट पर दो अन्य आवासीय भवन भी स्थित हैं, जहाँ भगवान शिव और लक्ष्मीनारायण के मंदिर स्थित हैं। रानी, माता सीता की अनन्य भक्त थीं अतः रानी ने घाट को माता सीता को समर्पित करते हुए इसे “जानकी घाट” नाम दिया। यहां का शांत वातावरण, मंदिरों की दिव्यता और रानी कुंवर का भक्ति-भाव इस स्थान को एक अद्वितीय पहचान देते हैं, जो इसे अन्य घाटों से अलग बनाते हैं।
घाट की विशेषताएं
जानकी घाट वाराणसी के सबसे शांत और स्वच्छ घाटों में से एक है, जो गंगा किनारे स्थित अपनी विशिष्टता और सौंदर्य के लिए जाना जाता है। इस घाट की रंग-बिरंगी सीढ़ियां न केवल इसे आकर्षक बनाती हैं, बल्कि यहां का दृश्य एक अनोखा अनुभव प्रदान करता है। घाट से गंगा के उस पार फैला हुआ सुंदर रेत का किनारा स्पष्ट रूप से दिखाई देता है, जो इसकी प्राकृतिक छटा को और भी बढ़ाता है।
जानकी घाट से बाईं ओर गंगा किनारे स्थित अन्य घाटों की एक लंबी श्रृंखला नजर आती है, जबकि दाहिनी ओर तुलसी घाट, अस्सी घाट और अन्य महत्वपूर्ण घाटों का मनमोहक दृश्य देखने को मिलता है। यहीं से रामनगर और वाराणसी को जोड़ने वाला शास्त्री पुल भी नजर आता है, जो शाम के समय बहुत ही सुन्दर दिखता है।
यह घाट न केवल पर्यटकों के लिए, बल्कि स्थानीय लोगों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है। सुबह के समय यहां की शांति में लोग टहलने, योग, और ध्यान करने आते हैं। सूर्योदय का दृश्य यहां से बेहद मनोहारी और आत्मिक शांति देने वाला होता है। शाम के समय, गंगा की लहरों पर नाव की सवारी का आनंद लेते हुए इस घाट की खूबसूरती का अनुभव और भी खास हो जाता है। जानकी घाट का यह शांत और सुरम्य वातावरण इसे वाराणसी के अन्य घाटों से अलग और विशेष बनाता है।
पर्यटकों के लिए सुझाव
- सुबह का समय: सूर्योदय के समय गंगा का दृश्य मनमोहक होता है। इस समय आप घाट पर शांति से बैठकर प्रकृति का आनंद ले सकते हैं।
- नाव की सवारी: गंगा की लहरों पर नाव की सवारी करना यहाँ का मुख्य आकर्षण है।
- शाम की शांति: शाम के समय यहाँ का शांत वातावरण आपको आत्ममंथन का मौका देता है।
- सुगम्य मौसम : यह घाट बरसात के समय गंगा के बढे जलस्तर के कारण डूब जाता है अतः बरसात के अलावा आप यहाँ सभी मौसमों में आ सकते हैं।
Google Geo Location
जानकी घाट वाराणसी के सबसे सुंदर और स्वच्छ घाटों में से एक है। इसकी शांति और सुंदरता इसे विशेष बनाती है। यदि आप भीड़-भाड़ से दूर गंगा की अनछुई सुंदरता का आनंद लेना चाहते हैं, तो यहाँ पर जा कर आप अपना समय बिता सकते हैं।
जानकी घाट से जुड़े आपके सभी सवालों एवं सुझावों का स्वागत है।
- Banaras by Babu Balmukund Varma 1924 – Upanyas Tarang ↩︎