देव दीपावली: जब देवता स्वर्ग से धरती पर उतर आते हैं

By Yogi Deep

Last Updated on December 14, 2024 by Yogi Deep

देव दीपावली, जिसे “देव दिवाली” अथवा “देवताओं की दीपावली” भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन देवता सीधे स्वर्ग से बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में मनुष्यों का रूप धारण करके दीपावली मनाने आते हैं। अतः इस दिन वाराणसी नगरी आस्था से सराबोर हो जाती है। काशी में देश-विदेश से आए लोग इस देव पर्व में लाखों दीप जलाकर देवताओं का स्वागत करते हैं। इस दिन काशी दीपों के प्रकाश से जगमगा उठती है, ऐसा प्रतीत होता है कि सितारे धरती पर उतर आये हों।

देव दीपावली: काशी का अद्भुत पर्व

भगवान शिव की नगरी काशी, जिसे वाराणसी भी कहा जाता है, अपने धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। ऐसे में यहां एक ऐसा दिन भी आता है जब देवता भी काशी में दीपावली मनाने आते हैं। काशी में प्रतिवर्ष देव दीपावली का महोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, जिसे देखने के लिए न केवल देश के कोने-कोने से लोग आते हैं, बल्कि विदेशी पर्यटक भी वाराणसी की इस दिव्यता का साक्षात्कार करने के लिए यहां खिंचे चले आते हैं। काशी के घाटों पर लाखों दीपों की रौशनी और गंगा जी की महाआरती का दृश्य अति मनोरम होता है।

इतिहास एवं मान्यताएं

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, त्रिपुरासुर नामक दैत्य के आतंक से सभी देवता पीड़ित थे। तब भगवान शिव जी ने त्रिपुरासुर दैत्य का वध करके उसके अत्याचार से देवताओं को मुक्ति दिलाई। उस दिन सभी देवताओं ने स्वर्ग से धरती पर भगवान शिव की नगरी काशी में आकर गङ्गा स्नान करके घाटों पर दीप जलाकर दीपावली मनाई। उस दिन से ऐसी मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवता काशी आते हैं। इस दिन भक्त शिव जी का भव्य श्रृंगार एवं दिव्य आरती करते हैं। 

इस दिन की एक और मान्यता है कि देवता मनुष्यों के रूप में काशी आते हैं और काशी में दीप जलाकर दीपावली मनाते हैं। देवताओं के स्वागत में काशी वासी भी दीप जलाकर देवताओं का स्वागत करते हैं।

देव दीपावली का इतिहास काशी में सदियों पुराना है, परन्तु वर्तमान का यह स्वरूप सन् 1780 में महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने पञ्चगङ्गा घाट पर हजारा दीप स्तंभ का निर्माण कराया था और उसी दिन से काशी में इस परंपरा की शुरुआत हुई। 1986 में काशी नरेश डॉ० विभूति नारायण सिंह ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव-दीपावली के अवसर पर वीरगति को प्राप्त हुए सैनिकों के सम्मान में दशाश्वमेध घाट पर आकाशदीप जलाया। इसके बाद से ही इस उत्सव को एक व्यापक रूप मिला, तब से ही गङ्गा जी के दोनों तटों पर देव दीपावली का औपचारिक आयोजन प्रारम्भ हुआ।

देव दीपावली 2024

इस वर्ष 2024 में देव दीपावली 15 नवंबर को मनाई जाएगी। इस दिन काशी के सभी प्रमुख घाटों को लाखों दीपों से सजाया जाता है, और गंगा के किनारे भगवान शिव की विशेष महाआरती होती है। यह दृश्य अत्यंत मनोरम और अद्वितीय होता है, जिस कारण इस अविस्मरणीय महोत्सव में हर कोई शामिल होना चाहता है।

पञ्चगङ्गा घाट से शुरू हुई देव दीपावली

प्रारम्भ में काशी में देव दीपावली पञ्चगङ्गा घाट पर हुआ करती थी। काशी सुमेरु पीठ के पीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती के अनुसार प्रारम्भ में इस उत्सव का अनुष्ठान दक्षिण भारतीय ब्राह्मणों द्वारा काशी के घाटों व् मंदिरों में कार्तिक पूर्णिमा के दिन दीप जला कर किया जाता था। आस-पास के लोगों के सहयोग से इस दीपोत्सव का आयोजन पञ्चगङ्गा घाट पर किया जाता था एवं इस महोत्सव को पौराणिक मान्यता के अनुसार संपन्न किया जाता था। 

वर्ष 1985 में मङ्गला गौरी मंदिर के महंत श्री नारायण गुरु ने दशाश्वमेध घाट के पं० सत्येन्द्र मिश्र, प्राचीन शीतला घाट के पं० किशोरी रमण दुबे (बाबू महाराज) इत्यादि की सहायता से देव दीपावली समिति बना कर इस दीपोत्सव को वृहद स्वरूप दिया। जिसके पश्चात अन्य घाटों पर भी देव दीपावली महोत्सव की शुरुआत होने लगी। 

जहां वाराणसी शहर के समाजसेवी, व्यापारी एवं क्षेत्रीय ब्राह्मणों के योगदान द्वारा लगभग सन् 1990 से देव दीपावली को एक व्यापक आधार मिलने लगा एवं देखते ही देखते देव दीपावली का यह पर्व आज पूरे विश्व भर में प्रसिद्ध हो गया है।

कैसे मनाई जाती है देव दीपावली

देव दीपावली का आयोजन अत्यंत भव्यता से किया जाता है। वैसे तो इस उत्सव में काशी के सभी 84 घाटों को दीपों से सजाया जाता है परन्तु यहां के प्रमुख घाट जैसे दशाश्वमेध घाट, अस्सी घाट, शीतला घाट और पंचगंगा घाट इस अवसर पर विशेष आकर्षण का केंद्र होते हैं। इन घाटों को लाखों दीयों से सजाया जाता है। यहाँ दीपों के अद्भुत जगमग प्रकाश से काशी ‘देवलोक’ जैसी लगने लगती है। ऐसा प्रतीत होता है कि मानो आसमान के सभी सितारे धरती पर उतर आए हों।

देव दीपावली 2024
देव दीपावली में रंग-बिरंगी आतिशबाजी

देव दीपावली की तैयारियां एक दिन पहले से ही शुरू हो जाती हैं। घाटों पर स्वास्तिक, ओम, रंगोली और अन्य शुभ चिन्हों को दीपों से सजाया जाता है। विशेषकर अस्सी, दशाश्वमेध, पञ्चगङ्गा घाट और शीतला घाट पर भक्तों की भारी भीड़ उमड़ पड़ती है, जो गंगा आरती का आनंद लेने के लिए घंटों पहले से वहां आकर बैठ जाते है।

क्या क्या होता है इस दिन

  1. महाआरती और दीप प्रज्ज्वलन: पंचगंगा घाट पर शाम के करीब 5 बजे हजारा दीप स्तंभ पर दीप जलाए जाते हैं। इसके बाद धीरे-धीरे सभी घाटों पर दीप प्रज्ज्वलित किए जाते हैं और घाटों के किनारे महा गङ्गा आरती एवं देवताओं की आराधना की जाती है।
  2. आतिशबाजी: दीप जलाने के बाद आकाश में रंग-बिरंगी आतिशबाजी का अद्भुत नजारा होता शुरू होता है। जो इस महोत्सव का सबसे मनोरम दृश्य होता है। इसे देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं।
  3. नौकाओं पर कार्यक्रम: गंगा के मध्य नौकाओं पर बने मंचों पर विशेष सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। नौकाओं पर बने इन मंचों से लोग गंगा की महाआरती आतिशबाजी एवं घाटों पर बने दीपों के रंगोलियों को भी देख पाते हैं।
  4. इंडिया गेट का प्रतिरूप: कारगिल युद्ध में शहीद हुए सैनिकों को श्रद्धांजलि देने के लिए इंडिया गेट का प्रतिरूप बनाया जाता है। इस प्रतिरूप के समक्ष गार्ड ऑफ ऑनर दिया जाता है, जो इस पर्व के सेना के प्रति भावनात्मक महत्व को और भी बढ़ा देता है।

देव दीपावली केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि आस्था और श्रद्धा का ऐसा संगम है जिसे देखकर हर किसी का मन मंत्रमुग्ध हो जाता है। वाराणसी के घाटों पर दीपों से सजी इस दिव्य रात्रि में शामिल होना एक ऐसा अनुभव है जिसे कोई भी भुला नहीं सकता। 2024 में देव दीपावली का पर्व 15 नवंबर को मनाया जाएगा, और इस अद्भुत महोत्सव में आपका स्वागत है।

देवताओं के इस दिव्य पर्व का हिस्सा बनकर आप भी वाराणसी की इस अनूठी संस्कृति और परंपरा का अनुभव कर सकते हैं।

2024 में देव दीपावली कब है?

2024 में देव दीपावली का पर्व 15 नवंबर को वाराणसी में मनाया जाएगा।

वाराणसी में देव दीपावली क्यों मनाई जाती है?

जब शिव जी ने त्रिपुरासुर नामक दैत्य के आतंक से ऋषियों और देवताओं को मुक्ति दिलाई तब इस खुशी में सर्वप्रथम देवताओं ने काशी में देव दीपावली मनाई।

वाराणसी में देव दीपावली किस घाट पर मनाई जाती है?

वाराणसी में देव दीपावली का विशेष आकर्षण अस्सी, दशाश्वमेध, पञ्चगङ्गा घाट और शीतला घाट पर होता है।

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