दशाश्वमेध घाट, वाराणसी

लेख - Yogi Deep

Last Updated on July 22, 2025 by Yogi Deep

दशाश्वमेध घाट काशी के धार्मिक, सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से काशी के सबसे प्रमुख घाटों में से एक है। यह घाट न केवल अपनी भव्य गंगा आरती के लिए प्रसिद्ध है, अपितु प्राचीन काल से ही इसका एक गहरा ऐतिहासिक महत्व भी रहा है।

घाट का नामदशाश्वमेध घाट
क्षेत्रवाराणसी
निर्माण(आदि काल) सन 1735 ई० में पक्का निर्माण
निर्मातामराठा शासक बाजीराव पेशवा
विशेषतारुद्रसर तीर्थ
दर्शनीय स्थलमाँ गंगा, काली, राम पंचायतन एवं शिव मंदिर

दशाश्वमेध घाट, नामकरण एवं मान्यताएं

काशीखण्ड के अनुसार दशाश्वमेध घाट का पौराणिक नाम रूद्रसर है। आज भी घाट के पुरोहित (घाटिया) मंत्रोच्चारण एवं संकल्प के समय इसी प्राचीन नाम का प्रयोग करते हैं। मत्स्यपुराण में वर्णित काशी के पाँच प्रमुख तीर्थों में भी इस घाट का उल्लेख है किन्तु यहाँ इसे दशाश्वमेध नाम से ही सम्बोधित किया गया है।

दशाश्वमेध घाट के नामकरण के पीछे दो प्रमुख मान्यताएं हैं:

  1. पौराणिक मान्यता: परम्परा के अनुसार भगवान ब्रह्मा ने यहां दस अश्वमेध यज्ञ किए थे, जिसके बाद से इसका नाम दशाश्वमेध पड़ा।
  2. ऐतिहासिक मत: प्रख्यात इतिहासकार डॉ० काशीप्रसाद जायसवाल के अनुसार, दूसरी शताब्दी ईस्वी में भारशिव राजाओं ने कुषाणों को परास्त करने के पश्चात्, अपने आराध्य देव शिव की नगरी काशी में इसी घाट पर दस अश्वमेध यज्ञ किए जिस कारण इस घाट का नाम दशाश्वमेध हुआ।1

घाट का इतिहास

दशाश्वमेध घाट, Dashashwamedh Ghat
दशाश्वमेध घाट, Dashashwamedh Ghat

सन 1735 ई. में मराठा शासक बाजीराव पेशवा ने इस घाट का पक्का निर्माण करवाया। निर्माण से पूर्व यह एक कच्चा घाट हुआ करता था, जिसे पक्का स्वरूप पेशवा काल में मिला। 18वीं शताब्दी ई. के पूर्व तक दशाश्वमेध घाट का विस्तार वर्तमान अहिल्याबाई घाट से लेकर राजेन्द्रप्रसाद घाट तक था। 18वीं सदी के मध्य में यह विभाजित होकर अहिल्याबाई घाट, शीतला घाट, प्रयाग घाट और घोड़ा घाट (वर्तमान राजेन्द्रप्रसाद घाट) में बंट गया। 1965 ई. में उत्तर प्रदेश राज्य सरकार द्वारा दशाश्वमेध घाट का नवनिर्माण कराया गया, जिससे इसकी वर्तमान संरचना अस्तित्व में आई।2

गंगा आरती

दशाश्वमेध घाट पर होने वाली विश्वप्रसिद्ध गंगा आरती इस घाट की सबसे बड़ी पहचान है। यह दैनिक आयोजन संध्या के समय होता है और लाखों श्रद्धालुओं व पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। यह आरती सूर्यास्त के पश्चात प्रारंभ होती है और लगभग 45 मिनट तक चलती है।

घाट पर पुरोहित (पंडे) विशेष वस्त्र धारण कर, मंत्रोच्चारण और गंगा भजनों की मधुर संगीतमयी धुनों के साथ विस्तृत विधि-विधान से आरती संपन्न कराते हैं। गर्मियों में आरती शाम 7 बजे एवं सर्दियों में शाम 6 बजे शुरू होती है। तीज-त्याहारों जैसे विशेष अवसरों पर हजारों दीपकों से सुसज्जित विशाल आरती का आयोजन किया जाता है। इस अद्भुत आध्यात्मिक दृश्य को देखने के लिए प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में लोग घाट पर एकत्रित होते हैं।

धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व

दशाश्वमेध घाट का धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्त्व है, यहाँ घाट पर स्नान करने से ले कर मोक्ष प्राप्ति तक की यात्रा का मार्ग है:

  • गंगा स्नान: दैनिक एवं विशेष पर्वों पर स्नान करने वालों की इस घाट पर सर्वाधिक भीड़ होती है। प्रातःकाल स्नानार्थियों की संख्या यहाँ सबसे अधिक होती है, परन्तु दोपहर, सायं और मध्यरात्रि में भी यहां अन्य घाटों की तुलना में अधिक लोग स्नान करते हैं।
  • रुद्रसर तीर्थ: ऐसी मान्यता है की घाट के सामने गंगा में ही रुद्रसर तीर्थ स्थित है। ऐसी मान्यता है कि इस तीर्थ में स्नान करने से व्यक्ति के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • विभिन्न संस्कार: घाट पर विवाह, मुंडन (चूड़ाकर्म), गंगा पुजैया, गंगा को पीयरी चढ़ाना, गो-दान, पिण्डदान जैसे महत्वपूर्ण धार्मिक संस्कार एवं क्रियाएं निरंतर होती रहती हैं।
  • मंदिर: घाट के ऊपरी भाग में 20वीं शताब्दी के चार छोटे-छोटे मंदिर हैं, जिनमें गंगा, काली, राम पंचायतन और शिवलिंग स्थापित हैं।
  • घाट पर होने वाले कार्यक्रम:  यहाँ इस घाट पर प्रतिवर्ष दुर्गापूजा, कालीपूजा, सरस्वतीपूजा, गणेश एवं विश्वकर्मापूजा धूम-धाम से मनाई जाती है, जिनके समापन के पश्चात उन प्रतिमाओं का विसर्जन गंगा जी में ही कर दिया जाता था। परन्तु स्वच्छ गंगा मिशन के तहत गंगा जी में किसी भी प्रकार के विसर्जन पर रोक है।

पर्यटन

दशाश्वमेध घाट नगर के मुख्य बाजार मार्ग (दशाश्वमेध बाजार) से जुड़ा हुआ है, जिससे यह पर्यटकों के लिए आसानी से पहुंच योग्य है। घाट से नाव पर बैठकर गंगा और काशी के अन्य घाटों का नजारा लिया जा सकता है, जो रात के समय और भी आकर्षक लगता है। रोजाना हजारों स्नानार्थी और पर्यटक यहां धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेते हैं। घाट के आसपास स्थानीय हस्तशिल्प और मिठाइयों की दुकानें भी पर्यटकों को लुभाती हैं।

गंगादशहरा पर नौका दौड़, तैराकी, वाटर पोलो जैसे जलक्रीड़ा के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा संचालित गंगा महोत्सव (गंगा में नाव पर होने वाला संगीत समारोह), बुढ़वा मंगल विशेषतः उल्लेखनीय हैं जो न केवल काशी की विविध धार्मिक-सांस्कृतिक परम्परा के निर्वाध रूप का सूचक है वरन् वर्तमान से भी जुड़ा है और परिष्कृत सांस्कृतिक अभिरुचियों का साक्षी है।

घाट का सम्बन्ध नगर के मुख्य मार्ग से होने के कारण अधिकांश देशी-विदेशी पर्यटक सबसे पहले इसी घाट पर आते हैं। यह काशी का सबसे व्यस्ततम घाट है, जिस कारण यहां पण्डे-पुरोहित (घाटियों) और भिक्षुओं की सर्वाधिक संख्या देखी जा सकती है। हालांकि, व्यस्ततम घाट होने के कारण पूर्व में यहां चोरी और मादक द्रव्यों का सेवन जैसे अपराध भी कभी-कभी होते रहते थे।

2010 की आतंकवादी घटना


7 दिसंबर 2010 को, शीतला घाट स्थित आरती स्थल के दक्षिणी छोर पर एक कम तीव्रता वाला बम विस्फोट हुआ था। इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना में 2 लोगों की मृत्यु हो गई थी और 6 विदेशी पर्यटकों सहित 37 लोग घायल हो गए थे। इस हमले की जिम्मेदारी इंडियन मुजाहिदीन ने ली थी।


दशाश्वमेध घाट वाराणसी की आत्मा का प्रतीक है, जहां प्राचीन परंपराएं आधुनिक जीवन के साथ मिलकर एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करती हैं। चाहे आप आध्यात्मिक शांति की तलाश में हों या भारतीय संस्कृति की गहराई को समझना चाहते हों, दशाश्वमेध घाट की यात्रा आपके लिए अविस्मरणीय रहेगी।

Google Geo Location

सन्दर्भ

  1. काशी का इतिहास – डॉ० मोतीचंद – पेज – 392 ↩︎
  2. History of Varanasi 1206 to 1761 Sachindra Pandey ↩︎
आदि काशी - Aadi Kashi

Aadi Kashi आदि काशी के इस वेबसाइट पर आपका स्वागत है। इस वेबसाइट को काशी के अध्यात्मिक एवं प्राचीनता को समझने हेतु बनाया गया है। काशी यूं तो कई युगों पुराना है, परन्तु इसे समझना उतना ही जटिल है। बस इसी जटिलता को सरल बनाने के उद्देश्य से इस वेबसाइट को बनाया गया है।