Last Updated on December 14, 2024 by Yogi Deep
काशी हिंदू विश्वविद्यालय (का.हि.वि.वि.) को हम काशी हिन्दू यूनिवर्सिटी अथवा बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी या केवल बी.एच.यू (BHU) इन विभिन्न नामों से जानते हैं इस विश्वविद्यालय की स्थापना सन 1916 ई को बसंत पंचमी के दिन धर्म एवं मोक्ष की नगरी काशी वाराणसी में महामना मदन मोहन मालवीय जी के कर कमल द्वारा हुई।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय का मुख्य परिसर 1300 एकड़ क्षेत्रफल की भूमि में फैला हुआ है। जिसमें 6 संस्थान, 14 संकाय, एवं लगभग 140 विभाग उपलब्ध है। विश्वविद्यालय का एक और परिसर भी है जो मिर्जापुर जिले के बरकछा नामक जगह 2700 एकड़ क्षेत्रफल पर स्थित है।
नाम | काशी हिन्दू विश्वविद्यालय |
अन्य नाम | बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी, बी एच यू (BHU) |
स्थान | वाराणसी |
स्थापना वर्ष | 1916 ई |
संस्थापक | पंडित महामना मदन मोहन मालवीय |
केंपस एरिया | 1300 एकड़ |
सम्बन्धन | यूजीसी |
आदर्श वाक्य | विद्ययाऽमृतमश्नुतेअर्थ : विद्या से अमृत की प्राप्ति होती है। |
वेबसाइट | Banaras Hindu University, BHU Online |
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय देश के प्रमुख प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में से एक है। इस विश्वविद्यालय के बनने का इतिहास अपने आप में संघर्ष और प्रेरणा की एक वास्तविक कथा है। एक समय जब हमारे देश कोआधुनिक शिक्षा के लिए विश्वविद्यालय की आवश्यकता थी उसे समय श्री मालवीय जी ने अपने कठिन परिश्रम एवं संघर्षों से देश को एक आधुनिक विश्वविद्यालय दिया। इस विश्वविद्यालय को महामना मदन मोहन मालवीय जी ने उस समय के अमीर से अमीर एवं गरीब से गरीब लोगों से दान लेकर बनाया था।
B.H.U की स्थापना 4 फरवरी 1916 ई को हुई थी। इस विश्वविद्यालय की स्थापना का प्रथम प्रस्ताव श्री काशी नरेश महाराज प्रभु नारायण सिंह की अध्यक्षता में सन 1904 ईस्वी में हुई। अंग्रेजों के शासनकाल में इस प्रकार से एक हिंदू विश्वविद्यालय बनाना अपने आप में एक चुनौती पूर्ण कार्य था, परंतु इस चुनौती को पूर्ण तो करना ही था तथा इसी उद्देश्य को पूर्ण करने हेतु जनवरी 1909 ई में संपूर्ण भारतवर्ष से कुंभ मेले में आई जनता के समक्ष त्रिवेणी संगम पर मालवीय जी ने अपने विश्वविद्यालय निर्माण संकल्प को दोहराया। ऐसा कहते हैं कि मेले में आई एक वृद्ध महिला ने मालवीय जी को सर्वप्रथम चंदे के रूप में एक पैसे का दान दिया। इसके पश्चात विश्वविद्यालय के स्थापना हेतु मालवीय जी ने पेशावर से लेकर कन्याकुमारी तक की यात्राएं की थी। दान में उन्हें एक करोड़ 64 लख रुपए चंदे के रूप में मिले थे।
उस समय के तत्कालीन महाराजा श्री काशी नरेश प्रभु नारायण सिंह जी ने 1360 एकड़ जमीन काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना हेतु दान में दिए थे। लेकिन यहां एक शर्त थी की मालवीय जी सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक पैदल जितनी जमीन नाप लेंगे वह पूरी जमीन उन्हें मिल जाएगी। मालवीय जी दिनभर पैदल चलकर विश्वविद्यालय के लिए जमीन ले ली, जिनमें 11 गांव, 70000 पेड़, 40 पक्के मकान, 860 कच्चे मकान, 100 पक्के कुएं, 20 कच्चे कुएं, कई ग्राम देवता के मंदिर एवं एक धर्मशाला भी शामिल था।
देशभर में विश्वविद्यालय के लिए चंदा इकट्ठा करते-करते मालवीय जी हैदराबाद के सातवें निजाम मीर उस्मान अली खान के पास पहुंचे जहां उन्होंने पैसे की जगह मालवीय जी को उनकी जूती ले जाने का प्रस्ताव दिया। जिस पर मालवीय जी ने बेज्जती के बाद भी बड़े विनम्र भाव से उनकी जूती लेकर वहां से चले गए और उन्हीं के बाजार में उनकी जूती नीलाम करने लगे। जैसे ही निजाम को पता चला उसने तुरंत मालवीय जी को बुलाकर माफी मांगी एवं विश्वविद्यालय हेतु एक लाख रुपए का दान भी दिया। वर्तमान में काशी हिंदू विश्वविद्यालय का हैदराबाद गेट एवं हैदराबाद कॉलोनी इन्हीं निजाम के नाम पर नामकरण हुआ है।
उद्देश्य
काशी हिंदू विश्वविद्यालय का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों के संपूर्ण चरित्र को विकसित करना था, जिस कारण इस विश्वविद्यालय को आवासीय विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित किया गया। संभवत यह विश्व का एकमात्र ऐसा विश्वविद्यालय है जहां नर्सरी और प्राथमिक स्कूल से लेकर पोस्ट डॉक्टोरल तक की डिग्री का संचालन किया जाता है।1
इसके अतिरिक्त भारत की सर्वसाधारण जनता जिनमें मुख्यतः हिंदुओं के सनातन शास्त्रों एवं संस्कृत साहित्य के प्रसार से भारतीय संस्कृति एवं विचारों की रक्षा की जा सके।
भारतीय प्राचीन सभ्यता एवंसनातन धर्म का जो कुछ भी महान एवं गौरवपूर्ण इतिहास था उसका निदर्शन हो।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय परिसर
यह संपूर्ण एशिया का सबसे बड़ा आवासीय विश्वविद्यालय है जहां लगभग 34 से अधिक देशों से 30000 से अधिक छात्र एवं छात्राएं अध्यनरत हैं। इस विश्वविद्यालय को विद्या के मंदिर के रूप में भी जाना जाता है और यही कारण है कि इस विश्वविद्यालय परिसर में श्री काशी विश्वनाथ जी का एक विशाल भव्य मंदिर भी स्थित है।
विश्वविद्यालय के कर्मचारी एवं छात्र
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के माध्यम से लगभग 30000 भारतीय एवं विदेशी विद्यार्थियों के रचनात्मक प्रतिभा के चरित्र को विशेष बल मिले, इस कारण विश्वविद्यालय में लगभग 1700 उच्च योग्यताधारी शिक्षक एवं लगभग 5000 समर्पित कर्मचारियों को यहां स्थापित किया गया है।
विश्वविद्यालय परिसर के भीतर जाने के मार्ग
विश्वविद्यालय परिसर के भीतर जाने के लिए वैसे तो एक मुख्य मार्ग है जिसे सिंह द्वारा बी एच यू गेट कहते हैं। इसके अलावा विश्वविद्यालय के अंदर प्रवेश हेतु दो और अन्य मार्ग है जिनमें सीर गेट एवं हैदराबाद गेट शामिल है। इसके अलावा छोटे-छोटे दो तीन अन्य गेट भी हैं जहां से व्यक्ति पैदल अंदर आ सकते है। इन सभी के अलावा भी दो और गेट हैं एक गेट सिंह द्वारा से 500 मीटर की दूरी पर है और दूसरा ट्रामा सेंटर के साइड वाले गेट के ठीक सामने स्थित है, परंतु यह केवल समय-समय पर ही खुलते हैं।
संस्थान
- चिकित्सा विज्ञान संस्थान
- कृषि विज्ञान संस्थान
- पर्यावरण एवं संपोष्य विकास संस्थान
- भारतीय प्रौद्यौगिकी संस्थान
- प्रबन्ध शास्त्र संस्थान
- विज्ञान संस्थान
संकाय
- आयुर्वेद संकाय
- संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय
- संगीत एवं मंच कला संकाय
- दृश्य कला संकाय
- कला संकाय
- वाणिज्य संकाय
- शिक्षा संकाय
- विधि संकाय
- सामाजिक विज्ञान संकाय
संबद्ध महाविद्यालय
- महिला महाविद्यालय, लंका, वाराणसी
- वसन्त कन्या महाविद्यालय, वाराणसी
- बसन्त कॉलेज, राजघाट, वाराणसी
- डी.ए.वी. कॉलेज, वाराणसी
- आर्य महिला डिग्री कालेज, चेतगंज, वाराणसी
- राजीव गांधी दक्षिणी परिसर बरकच्छा, मिर्जापुर
संबद्ध विद्यालय
- श्री रणवीर संस्कृत विद्यालय, कमच्छा, वाराणसी
- केन्द्रीय हिन्दू बाल विद्यालय, वाराणसी
- केन्द्रीय हिन्दू कन्या विद्यालय, वाराणसी
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में स्थित कुछ प्रसिद्ध स्थान
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर
विश्वविद्यालय परिसर में स्थित श्री काशी विश्वनाथ मंदिर, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में मुख्य आकर्षण का केंद्र है। नवनिर्मित होने के कारण इसे नया विश्वनाथ जी भी कहते हैं। काशी में स्थित यह श्री काशी विश्वनाथ जी का दूसरा मंदिर है। 17 फरवरी 1958 सोमवार फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को महाशिवरात्रि के पावन बेला पर पंडित विश्वनाथ शास्त्री जी के सानिध्य में विश्वविद्यालय परिसर में श्री काशी विश्वनाथ मंदिर का प्रतिष्ठान हुआ। यह प्रतिष्ठान संपूर्ण वैदिक क्रमानुसार पूरी रात भर चला तत्पश्चात मंदिर में भगवान विश्वनाथ प्रतिष्ठित हुए।
76 मी (250 फीट) ऊँचा, सफेद संगमरमर से बना यह मंदिर भारत का सबसे सबसे ऊंचा शिव मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण कार्य 1966 के अंत में पूर्ण हुआ, जहां इसे बनने में लगभग 8 वर्षों का समय लगा। इस मंदिर के निर्माण में बिरला परिवार का सबसे बड़ा आर्थिक योगदान है, अतः इसे बिरला मंदिर भी कहते हैं।
काशी में स्थित मूल श्री काशी विश्वनाथ मंदिर को यहाँ देखें – श्री काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी
बी.एच. यू. गेट, सिंह द्वार
विश्वविद्यालय परिसर में प्रवेश हेतु यह मुख्य द्वार है इसे सिंह द्वारा के नाम से जाना जाता है। परंतु प्रायः लोग इसे बी.एच. यू. गेट के नाम से जानते हैं और यह इसी नाम से पूरे वाराणसी में प्रसिद्ध है। विश्वविद्यालय परिसर में प्रवेश हेतु इसके अलावा भी कई अन्य द्वारा हैं, जिनके प्राय: अलग-अलग नाम भी हैं।
अन्नपूर्णा भोजनालय
विश्वविद्यालय के अंदर वैसे तो कई भोजनालय एवं जलपान गृह स्थित है परंतु अन्नपूर्णा भोजनालय यहां मुख्य आकर्षण का केंद्र है। वैसे तो इसे भोजनालय करना कतई उचित नहीं होगा, क्योंकि यहां भोजन प्रसाद के रूप में दिया जाता है।
यहां पर भोजन मात्र ₹35 थाली पर उपलब्ध है एवं आपको नाश्ता ₹20 में मिल जाता है। वैसे तो यह भोजनालय बी. एच. यू. अस्पताल में आए हुए रोगियों, उनके परिजनों एवं वहां के कर्मचारियों के लिए है, परंतु यहां पर भोजन करने हेतु किसी को रोका नहीं जाता है।
भारत कला भवन
भारत कला भवन एशिया का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय संग्रहालय है। इसकी स्थापना 1 जनवरी 1920 को ‘ भारतीय कला परिषद ’ के नाम से हुई थी। इस संग्रहालय में विभिन्न शैलियों की लगभग 12000 चित्र संकलित है। वैसे तो यह बहुत ही प्रसिद्ध संग्रहालय है परंतु जानकारी के अभाव में लोग इसे नहीं देख पाते हैं।
बाहरी कड़ियाँ
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