अस्सी घाट (असि घाट), वाराणसी

By Yogi Deep

Last Updated on December 19, 2024 by Yogi Deep

असि घाट अथवा अस्सी घाट जो संध्या की गंगा आरती एवं अपने आकर्षण के लिए प्रसिद्ध है। घाट का मूल नाम असि घाट है, परंतु अपभ्रंश वश आम बोलचाल की भाषा में अब इसे अस्सी घाट कहा जाने लगा है। यह घाट काशी के महत्वपूर्ण प्राचीन घाटों में से एक है। वाराणसी के घाटों की श्रृंखला यहीं से शुरू होती है, अतः इसे वाराणसी का प्रथम घाट भी माना जाता है।

घाट का नामअसि घाट (अस्सी घाट)
क्षेत्रवाराणसी
निर्मातामहाराजा बनारस
विशेषतासुबह ए बनारस, गंगा आरती
दर्शनीय स्थलजगन्नाथ मंदिर, अस्सिसंगमेश्वर, लक्ष्मीनारायण मंदिर

अस्सी घाट 

काशी में स्थित असि नदी (वर्तमान में अस्सी नाला) यहीं पर गंगा में आ कर मिलती है, जहाँ असि नदी गंगा में मिलती है उस क्षेत्र को असि घाट (अस्सी घाट) कहते हैं। पूर्व में यह घाट बहुत दूरी तक फैला हुआ था क्योंकि उस समय गंगा के किनारे कुछ गिने चुने ही घाट थे। यहां असि एवं गंगा घाट के संगम को अति पावन माना गया है। संवत्‌ १६२०-१६३० के आसपास इस घाट के निकट ही एक गुफा में रामचरितमानस के रचयिता श्री तुलसीदास जी निवास करते थे। यहीं पर उन्होंने रामचरितमानस की रचना की एवं अंत समय तक उन्होंने यहीं निवास किया।

Assi Ghat Mandir
Lakshminarayana Pancharatna Mandir – Assi Ghat- Varanasi

अस्सी घाट काशी के पञ्च तीर्थों में से एक है। काशी खण्ड के अनुसार संसार के अन्य सभी तीर्थ इसके 16वें भाग के बराबर भी नहीं है, अतः इस घाट पर स्नान करने से सभी तीर्थों में स्नान करने का पुण्य फल प्राप्त होता है। काशी खण्ड में वर्णित संगमेश्वर महादेव का मंदिर भी यहीं पर स्थित है। इस मंदिर के दर्शन पूजन का अपना एक विशेष महत्व है। इसके समीप ही नानक पंथियों का एक अखाड़ा भी स्थित है। घाट के समीप ही जगन्नाथ मंदिर भी स्थित है, यह मंदिर पुरी के जगन्नाथ मंदिर का एक प्रतीकात्मक रूप है। इस मंदिर की स्थापना 18वीं शताब्दी में उड़ीसा के जगन्नाथ पुरी के महंत ने करवाया था। 

अस्सी घाट अपने संध्या आरती के लिए सबसे अधिक प्रसिद्ध है। शाम के समय होने वाली संध्या आरती देखने के लिए प्रतिदिन हजारों लोग आते हैं और गंगा की भव्य आरती देखकर लोग भाव विभोर हो जाते हैं। इस घाट पर प्रतिदिन दो बार आरती होती है, पहली प्रातः कालीन एवं शाम के समय दूसरी आरती होती है।

इतिहास

19वीं शताब्दी के आसपास काशी के महाराजा ने इस अस्सी घाट का पक्का निर्माण करवाया था। घाट के साथ-साथ यहां पंचायतन शैली में निर्मित एक लक्ष्मीनारायण का मंदिर भी है। यहाँ असिसंगमेश्वर नमक शिवलिंग भी स्थापित है, जो गंगा एवं असि के संगम का प्रतीक है। पूर्व में यह घाट बहुत दूर तक फैला हुआ था परंतु बाद में यह गत पांच अन्य घाटों अस्सी, गंगा महल, रीवां, तुलसी घाट एवं भदैनी घाटों में विभाजित हो गया।

इसी के समीप स्थित तुलसी घाट जिसका वास्तविक नाम लोलार्क घाट है, परंतु यहां तुलसीदास जी का निवास होने के कारण इसे तुलसी घाट के नाम से जाना जाता है। 16वीं शताब्दी के आसपास यहां तुलसीदास जी निवास करते थे, परंतु वर्तमान में यह स्थान एकदम जीर्ण हो चुका है। यहां घाट के आसपास आपको कई ढेर सारे स्थापित शिवलिंग भी दिखेंगे।

घाट पर स्थित विग्रह मंदिर एवं हवं कुण्ड

असि घाट पर कई विग्रह एवं मंदिर स्थित है। इसके आलावा यहाँ एक विशाल हवन कुण्ड भी स्थित है।

  • विग्रह: यहाँ छोटे बड़े कुल मिला कर लगभग 50-60 विग्रह हैं।
  • मंदिर: घाट के आस पास कुल मिला कर 6 मंदिर हैं जिनमें क्रमशः हनुमान मंदिर, लक्ष्मीनारायण मंदिर, मनोकामना सिद्धपीठ माँ गंगा नव दुर्गा मंदिर, प्राचीन हनुमान मंदिर एवं श्री पञ्चरत्न मंदिर स्थित है।
  • हवन कुण्ड: यहाँ यज्ञ इत्यादि धार्मिक अनुष्ठान के लिए एक बड़ा हवन कुण्ड भी स्थित है।

पर्यटन की दृष्टि से अस्सी घाट

पर्यटन की दृष्टि से युवाओं में अस्सी घाट सबसे अधिक लोकप्रिय है। पहले घाट के किनारे लोग शांति के लिए आते थे, क्योंकि घाट के आसपास बहुत ही कम भीड़ होती थी। परंतु घाटों के आधुनिकीकरण होने के कारण यहां पर्यटकों की काफी भीड़ होने लगी है। यहां प्रतिदिन हजारों सैलानी देश-विदेश से आते हैं। यही कारण है कि यह घाट युवाओं के लिए मौज मस्ती करने के उद्देश्य से सबसे अच्छा है। 

गंगा आरती अस्सी घाट
गंगा आरती, अस्सी घाट

वैसे तो यहां प्रतिदिन अच्छी खासी भीड़ होती है, परंतु किसी पर्व के दिन, एवं प्रत्येक रविवार को यहां सबसे अधिक भीड़ होती है। नए वर्ष एवं देव दीपावली के समय यहां सबसे अधिक भीड़ देखने को मिलती है। यहां सुबह की आरती देखने के लिए लोग प्रातः 4:00 बजे से ही आना आरंभ कर देते हैं। वही शाम के समय भी दूर-दूर से पर्यटक संध्या आरती के लिए पहुंचते हैं। 

सुबह ए बनारस

Subah-e-banaras
Subah-e-banaras

सुबह ए बनारस अस्सी घाट पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए एक प्रमुख स्थल है। यहां प्रतिदिन सुबह योगाभ्यास से लेकर शाम को संध्या आरती तक के कार्यक्रम होते हैं। यहां लगभग लगभग प्रतिदिन शाम को गायन वादन एवं नृत्य जैसी कलाओं के कार्यक्रम होते रहते हैं। सुबह ए बनारस नए कलाकारों के लिए एक बेहतरीन मंच है। यहां आप गायन, वादन अथवा नृत्य किसी भी विधा के जानकार हों, आप यहां अपनी प्रस्तुति दे सकते हैं। 

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वैसे काशी का इतिहास तो सदियों प्राचीन है, आप काशी के अस्सी को कितना जानते हैं? निचे कमेंट में अवश्य बताएं, और यदि आपके पास कशी के घाटों की कोई अच्छी तस्वीर हो जो आपने स्वयं से ली हो तो वो हमें अवश्य भेजें। हम आपके नाम के साथ उसे यहाँ लगायेंगे। काशी के घाटों के बारे में पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद…

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