Last Updated on July 23, 2025 by Yogi Deep
मान महल घाट अथवा ‘मान मंदिर घाट’ वर्तमान में इस घाट को इन दोनों ही नामों से संबोधित किया जाता है। परन्तु पूर्व में इस घाट का उल्लेख मान मंदिर घाट के नाम से ही होता आ रहा है। इस घाट का एक प्राचीन नाम सोमेश्वर घाट भी है। यह घाट राजेंद्र प्रसाद घाट एवं वाराही घाट के मध्य में स्थित है जिसका काशी के घाटों में अपना एक अलग स्थान है। यहाँ घाट पर विशाल कलात्मक महल, मंदिरों एवं ज्योतिर्विज्ञान संबंधी वेधशाला इत्यादि भी स्थित है, जिस कारण यह घाट काशी के अन्य घाटों में अपनी एक अलग पहचान बनता है। आइये इस घाट के बारे में विस्तार से जानते हैं।
घाट का नाम | मान महल घाट अथवा ‘मान मंदिर घाट’ |
क्षेत्र | वाराणसी |
निर्माण | 16वीं शती ई० |
निर्माता | राजा मानसिंह, आमेर (राजस्थान) |
विशेषता | मान सिंह वेधशाला |
दर्शनीय स्थल | अदाल्भेश्वर शिव मंदिर और सोमेश्वर शिव मंदिर |
मान महल घाट
मान महल घाट एवं घाट स्थित मंदिरों का निर्माण 16वीं शती ई० में आमेर (राजस्थान) के राजा मानसिंह द्वारा करवाया गया था। यह घाट मान मंदिर घाट के नाम से भी जाना जाता है। गीर्वाणपदमंजरी में इस घाट को सोमेश्वर घाट नाम से उल्लेखित किया गया है अर्थात इसका प्राचीन नाम सोमेश्वर घाट ही है।
घाट का पक्का निर्माण होने के बाद 18वीं शती ई० तक यह सोमेश्वरघाट नाम से ही लोकप्रिय रहा। काशी में अधिकतर घाट घाट निर्माताओं के नाम पर ही हैं अतः इसी क्रम में इस घाट का नाम भी बदल गया एवं इसे मान मंदिर घाट नाम से संबोधित किया जाने लगा। विदेशी इतिहासकारों में जेम्स प्रिन्सेप नें सर्वप्रथम इस घाट का उल्लेख किया है।

मान सिंह वेधशाला
17वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में राजा मानसिंह के वंशज सवाई जयसिंह ने इस घाट पर ग्रह-नक्षत्रों की जानकारी देने वाली नक्षत्र वेधशाला का निर्माण करवाया, जो उस समय की भारतीय वैज्ञानिक प्रगति को दर्शाती है। सवाई राजा जय सिंह ने न केवल काशी बल्कि दिल्ली (1724), उज्जैन (1719), मथुरा (1737) और जयपुर (1728) में भी खगोलीय वेधशालाएं बनवाईं। उनका उद्देश्य था – खगोल विज्ञान को जनसामान्य तक पहुँचाना और समय की सटीक गणना को स्थापित करना। काशी की वेधशाला इन्हीं प्रयासों का चमकता उदाहरण है। इस वेधशाला में निम्नलिखित प्रमुख यंत्र मौजूद थे:
- सम्राट यंत्र – समय और खगोलीय परिवर्तनों को जानने के लिए
- लघु सम्राट यंत्र – अंतरिक्षीय गतिविधियों की निगरानी
- चक्र यंत्र – सूर्य, चंद्रमा और तारों की स्थिति के साथ भूमध्य रेखा से दूरी मापने में सहायक
- नाड़ी वलय और दिगांश यंत्र – समय और ग्रहों की गति की सटीक गणना
- दक्षिणोत्तर भित्ति यंत्र – लग्न इत्यादि साधने में प्रयुक्त
सवाई जयसिंह द्वितीय अपने समय के प्रसिद्ध ज्योतिर्विद थे उन्होंने इस वेधशाला का कार्य १७३७ में पूर्ण कराया पर शायद इसकी नीव १७१० में ही पड चुकी थी। इस वेधशाला का नक्शा जयसिंह के प्रसिद्ध ज्योतिषी समरथ जगन्नाथ ने तैयार किया था। इसका निर्माण कार्य जयपुर के शिल्पी सरदार महोन ने, सदाशिव के निरीक्षण में सम्पन्न कराया। १८२४ में विशप हेवर ने इस वेघशाला को देखा। उस काल में भी यह वेधशाला काम में नही लायी जाती थी।1
समय के साथ इस वेधशाला की मरम्मत 1911 ई. में जयपुर के ज्योतिषाचार्य गोकुलचन्द्र भावन तथा इन्जीनियर सी.ई. स्टावर्थ के निर्देशन में हुआ। 1912 में इसका पुनर्निर्माण हुआ और 1980 में इसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने संरक्षित किया। 1975 ईस्वी के आसपास राजस्थान सरकार ने इस ऐतिहासिक महल को एक होटल में परिवर्तित करने का प्रयास किया था, परंतु तत्कालीन राजस्थान पुरातत्व विभाग के कुछ अधिकारियों के प्रयासों से यह प्रयास विफल हुआ और धरोहर को संरक्षित रखा गया। वर्तमान में यह महल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के संरक्षण में है।
वर्चुअल म्यूज़ियम
पुराने मान महल को अब एक नया रूप दिया गया है – वर्चुअल एक्सपीरिएंशल म्यूज़ियम। यह भारत का अनोखा संग्रहालय है जहाँ तकनीक और परंपरा का मेल दिखता है। इसे राष्ट्रीय विज्ञान परिषद ने तैयार किया और जनवरी 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका उद्घाटन किया।
यहाँ 3D म्यूरल्स, प्रोजेक्शन मैपिंग और वर्चुअल रिचुअल इंटरैक्शन जैसे आधुनिक माध्यमों से बनारस की संस्कृति, इतिहास और अध्यात्म को जीवंत किया गया है।
आप गंगा अवतरण, शिव आराधना, बनारसी गलियों की वर्चुअल सैर, और घाटों पर दीपदान जैसे अनुभवों को एक ही स्थान पर, एक ही स्क्रीन पर महसूस कर सकते हैं।
यह संग्रहालय अतीत की विरासत को आधुनिक तकनीक से जोड़ने का अनूठा उदाहरण है और बनारस आने वाले पर्यटकों के लिए एक ज्ञानवर्धक अनुभव बन गया है।
घाट की स्थापत्यकला
मान महल घाट पर स्थित महल की बनावट राजस्थानी राजपूत दुर्ग शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है। घाट पर स्थित महल स्वयं में एक विशाल कलात्मक कृति है। तथा महल में 17वीं शती ई० में निर्मित नक्षत्र वेधशाला उल्लेखनीय है। घाट की ओर झुकी हुई बुर्जियाँ, झरोखे और बलुआ पत्थरों से बनी सीढ़ियाँ इसकी शिल्पकला उत्तर-मध्यकालीन राजस्थानी राजपूत दुर्ग शैली की सुंदरता को दर्शाती हैं। यह महल मथुरा के प्रसिद्ध गोवर्धन मंदिर की तर्ज पर निर्मित है।
महल से गंगातट तक चुनार के बलुआ पत्थर से निर्मित सुंदर पक्की सीढ़ियाँ बनाई गई हैं। इस घाट का पुनर्निर्माण सर्वप्रथम 18वीं शती ई. में राजा जयसिंह द्वारा हुआ जिसके बाद समय के साथ इस घाट का क्षरण होने के कारण पुनः 1988 ई० में सिंचाई विभाग (उत्तर प्रदेश) द्वारा इसका जीर्णोधार किया गया। वर्तमान समय में घाट एकदम स्वच्छ एवं सुन्दर बना हुआ है। घाट से महल तक जाने के लिए यहाँ चुनार के लाल पत्थरों का प्रयोग किया गया है।
घाट स्थित मंदिर
घाट के उत्तरी भाग में दो शिव मंदिर भी स्थित हैं जहाँ श्रद्धालु गंगा जी में स्नान के पश्चात इन दोनों शिवालयों में दर्शन करते हैं। यहाँ स्थित अदाल्भेश्वर शिव मंदिर और सोमेश्वर शिव मंदिर 18वीं शताब्दी के आस-पास निर्मित हैं। इन दोनों मंदिरों में दर्शन-पूजन का विशेष महत्त्व है। सावन में इन दोनों ही मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। बाकी दिन स्थानीय लोग यहाँ गंगा स्नान के पश्चात दर्शन पूजन की अपनी दैनिक प्रक्रिया को पूर्ण करते हैं।
अतः वाराणसी में स्थित यह मान महल घाट न केवल गंगा के घाटों की श्रृंखला का एक हिस्सा है, बल्कि यह भारतीय स्थापत्यकला, खगोलशास्त्र और सांस्कृतिक विरासत का अनमोल संगम है। राजा मानसिंह द्वारा निर्मित यह घाट और सवाई जयसिंह द्वारा स्थापित वेधशाला आज काशी के प्राचीन वैज्ञानिकता के प्रतीक हैं। वाराणसी की यात्रा इस घाट को देखे बिना अधूरी है।
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सन्दर्भ
- काशी का इतिहास – डॉ० मोतीचंद – पेज – 392 ↩︎