वच्छराज घाट, वाराणसी

By Yogi Deep

Last Updated on December 22, 2024 by Yogi Deep

वच्छराज घाट काशी (वाराणसी) के प्रमुख और ऐतिहासिक घाटों में से एक है, जो न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यहां की सांस्कृतिक और सामाजिक गतिविधियाँ भी इसे विशेष बनाती हैं। यह घाट काशी के आनन्दमयी घाट की उत्तरी सीमा से सटा हुआ है और इसे 18वीं शताब्दी के प्रमुख व्यापारी वच्छराज ने बनवाया था। काशी के इस ऐतिहासिक घाट का पहला उल्लेख 1831 में जेम्स प्रिन्सेप द्वारा किया गया था हालाँकि यह घाट अन्य घाटों की तरह उतना व्यस्त तो नहीं है, बावजूद इसके इस घाट का अपना एक अलग ही इतिहास है।

वच्छराज घाट का ऐतिहासिक महत्व

वच्छराज घाट का निर्माण काशी के व्यापारी वच्छराज द्वारा 18वीं शताबदी1 के उत्तरार्ध में कराया गया था। वच्छराज काशी के एक प्रतिष्ठित व्यापारी थे और उन्होंने इस घाट के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। समय के साथ यह घाट क्षीण हो गया था, तब घाट के नवनिर्माण का कार्य उत्तर प्रदेश सरकार ने सन् 1965 में करवाया, जिससे इस घाट को संरक्षित किया गया जिससे यह घाट और भी सुंदर हो गया। वच्छराज घाट का ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टिकोण काशीवासियों के लिए बहुत महत्व रखता है।

वच्छराज घाट
वच्छराज घाट

वच्छराज घाट की संरचना एवं यहाँ स्थित मंदिर

वच्छराज घाट के सीढ़ियों की सुदृढ़ता और इसकी अद्भुत वास्तुकला इसे एक ऐतिहासिक धरोहर का दर्जा देती है। घाट से गली तक पत्थरों की मजबूत सीढ़ियाँ बनी हुई हैं, जो भक्तों और पर्यटकों के लिए आसानी से चलने योग्य हैं। सीढ़ियों पर तीन देवकुलिकाएँ स्थापित हैं, जिनमें शिव, गणेश और गंगा की मूर्तियाँ प्रतिष्ठित हैं।

वच्छराज घाट के ऊपरी भाग में माता आनन्दमयी द्वारा स्थापित तीन प्रमुख मंदिर हैं:

  1. गोपाल मंदिर: यह मंदिर माता आनन्दमयी द्वारा 1968 में स्थापित किया गया था।
  2. अक्रूरेश्वर मंदिर: यह शिव का मंदिर है, जो काशी के प्रमुख शिव मंदिरों में गिना जाता है।
  3. सुपार्श्वनाथ जैन मंदिर: यह श्वेतांबर जैन सम्प्रदाय से संबंधित मंदिर है, जो सुपार्श्वनाथ के आदर्शों को प्रकट करता है।

इसके अलावा, यह घाट जैन सम्प्रदाय के लिए भी विशेष महत्व रखता है, क्योंकि यहाँ से करीब स्थित भदैनी मुहल्ले में सातवें तीर्थकर सुपार्श्वनाथ की जन्मस्थली मानी जाती है।

धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियाँ

वच्छराज घाट पर सांस्कृतिक गतिविधियाँ और धार्मिक आयोजन काशी की समृद्ध परंपरा को जीवित रखते हैं। विशेष रूप से अक्रूरेश्वर शिव के वार्षिक श्रृंगार के अवसर पर यहाँ गायन-वादन, भजन-कीर्तन और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं। यह आयोजन काशीवासियों के बीच एक सामूहिक उत्सव का रूप लेता है और घाट पर आने वाले श्रद्धालुओं को धार्मिक आनंद की अनुभूति कराता है। घाट पर स्थित मंदिरों में नियमित पूजा-अर्चना, विशेष अवसरों पर उत्सव और धार्मिक अनुष्ठान आयोजित होते हैं, जो स्थानीय लोगों और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बने रहते हैं।

घाट पर लोग नियमित रूप से व्यायाम इत्यादि भी करते हैं। इसके अलावा, यहां लोग पतंगबाजी और नौका विहार जैसी पारंपरिक और मनोरंजन की गतिविधियाँ भी करते हैं। इन सबका उद्देश्य सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा देना भी है।

पर्यटकों के लिए आकर्षण

वच्छराज घाट काशी में आने वाले पर्यटकों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल है। यहाँ के मनोहारी दृश्य, गंगा के घाट पर होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम, और यहाँ की धार्मिक गतिविधियाँ एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करती हैं। काशी के घाटों की खूबसूरती और शांति को देखकर प्रसिद्ध लेखक ग्रीब्ज ने लिखा था, “जो आनन्द लन्दन की सड़कों पर मात्र रविवार को कदाचित् प्राप्त होता है, वह आनन्द काशी के घाटों पर प्रतिदिन सुबह-शाम पाया जा सकता है।”

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वच्छराज घाट न केवल काशी का ऐतिहासिक और धार्मिक धरोहर है, बल्कि यह काशी की सांस्कृतिक और सामाजिक विविधता का भी प्रतीक है। काशी के घाटों की विशेषता यही है कि वे सिर्फ श्रद्धालुओं के लिए नहीं, बल्कि हर किसी के लिए एक प्रेरणा का स्रोत हैं।

वच्छराज घाट से जुड़े आपके सभी सवालों एवं सुझावों का स्वागत है।


  1. सन्दर्भ: काशी के घाट और उनका सांस्कृतिक महत्व ↩︎
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