Last Updated on December 14, 2024 by Yogi Deep
काशी के हरतीरथ क्षेत्र में स्थित कृतिवासेश्वर् महादेव (कृत्तिवासेश्वर महादेव) मन्दिर काशी के प्रमुख शिव मंदिरों में से एक है। उपेक्षा के कारण यह मंदिर मुग़ल काल से ही खुले आसमान के निचे स्थित है। यहाँ तक की आज भी यहाँ मुस्लिम समुदाय के लोग नमाज पढ़ते हैं एवं इसे आलमगीर मस्जिद बताते हैं। इस मंदिर का वर्णन काशी खण्ड में भी आता है। यह काशी का एक अद्भुत मंदिर है, यहाँ एक कुण्ड भी है जहाँ एक युग में कौवे भी स्नान करते तो हंस बन जाते, इसकी कथा काशीखण्ड पुराण में भी वर्णित है।
मन्दिर का नाम | कृतिवासेश्वर् महादेव मन्दिर (कृत्तिवासेश्वर महादेव) |
स्थान | 46/23, विश्वेश्वरगंज, वाराणसी |
देवता | कृतिवासेश्वर् महादेव मन्दिर, वाराणसी |
निर्माण शैली | अनिर्मित |
निर्माता | आदि कालीन निर्मित |
निर्मित वर्ष | आदि कालीन |
कृतिवासेश्वर् महादेव मन्दिर
परम पुनीता पुण्य सलिला माँ गंगा के सुरम्य तट पर स्थित काशी शिव की नगरी के रूप में जानी जाती है। यहाँ कण कण में शिव का स्वरूप है। काशी वैसे तो काशी विश्वनाथ के लिए प्रसिद्ध है लेकिन कई ऐसे शिवालय है जिनका विशेष महात्म्य है। स्कंद पुराण के काशी खण्ड में वर्णित इनमें से ही एक कृतिवासेश्वर् महादेव मन्दिर भी है। स्थानीय लोग इस मंदिर को कृत्तिवासेश्वर महादेव के नाम से भी पुकारते हैं।
मंदिर का पौराणिक संदर्भ
लिंग पुराण के अनुसार
ऐतद्दारुवनस्थानं कलौ देवस्य गीयते
परात्परं तु यज्ज्ञानं मोक्षमार्गप्रदायकम
प्राप्यते द्विजशार्दूल कृत्तिवासे न संशयः
कृते तु त्रयंबकं प्रोक्तं त्रेयायां कृत्तिवाससम।
इस श्लोक का अर्थ है कि कलयुग में दारुकावन शिव का स्थान है। मोक्षमार्ग देने वाला परात्पर ज्ञान कृत्तिवासेश्वर के दर्शन से प्राप्त हो जाता हैं इसमें कोई संदेह नहीं हैं। काशी में भी दारुकावन नाम का एक क्षेत्र है। इस क्षेत्र में ही विराजते हैं कृत्तिवासेश्वर महादेव।
भगवान् शिव माता पार्वती से रत्नेश्वर की महत्ता का वर्णन कर रहे थे उसी समय महिषासुर का पुत्र गजासुर, बुरी तरह शिवगणों की पिटाई कर उनका प्राणान्त कर दे रहा था। जहाँ कहीं भी उसके चरण पृथ्वी को स्पर्श कर रहे थे वहाँ की धरती काँप जा रही थी और भूकम्प जैसी स्थिति हो जा रही थी। उसके विशाल हाथ बड़े से बड़े पेड़ो को उखाड़ फेंक रहे थे। गजासुर ने सम्पूर्ण जगत में हाहाकार मचा रखा था।
परन्तु भगवान काशी पुण्य क्षेत्र में कोई व्यवधान उत्पन्न करना नहीं चाहते थे। जब गजासुर भगवान की ओर लपका तब भगवान ने अपने त्रिशूल से प्रहार करके आकाश मे ही उसको लटके हुये रोक दिया। मृत्यु से पूर्व गजासुर ने भगवान से कहा कि उसे बड़ी प्रसन्नता है कि भगवान शिव के हाथों उसका प्राणान्त हुआ और यह उसके लिये भगवान का आशीर्वाद है। उसने अपनी इच्छा प्रकट कि मेरी मृत्यु के पश्चात् मेरे खाल को भगवान शिव धारण करें ताकि उसे भगवान के सान्निध्य का सुख हमेशा मिलता रहे।
भगवान इस बात पर सहमत हो गये और वर्णन करने लगें कि गजासुर की मृत्यु अविमुक्त क्षेत्र काशी में हुई इसलिये इसी स्थान पर उसका शरीर एक विशाल शिवलिंग का रूप धारण कर लेगा। यह विशाल शिवलिंग कृतिवासेश्वर नाम से प्रसिद्ध होगा। इसके बाद भगवान ने वर्णन किया कि मानव कल्याणार्थ, वह स्वयं माता पार्वती सहित सदैव इस लिंग में विराजमान रहेंगे।
महात्म्य
पुराणों में कृत्तिवासेश्वर की महिमा कुछ इस तरह से वर्णित है
कृत्तिवासं महालिंगं वाससौख्यकरं परम
यस्य दर्शनमात्रेण न मोक्षावि सुदुर्लभम
(ब्रह्मवैवर्त पुराण)
जन्मान्तरं सहस्रेण मोक्षोन्यत्राप्यते न वा
एकेन जन्मना मोक्षः कृत्तिवासेत्र लभ्यते
(कूर्म पुराण)
कृत्तिवासेश्वरं देवं ये नमन्ति शुभार्थिनः
ते रुद्रस्य शरीरे तु प्रविष्टाः अपुनर्भवाः
अनेनैव शरीरेण प्राप्ता निर्वाणमुत्तमम
(लिंग पुराण)
यद्यपि विभिन्न पूजा अर्चना एवं सत्कर्म से पूर्व एवं वर्तमान जन्म में किए गए समस्त पाप धुल जाते हैं परन्तु कृति वासेश्वर के दर्शन मात्र मनुष्य समस्त पाप से मुक्त हो जाता है। कृति वासेश्वर के समक्ष किये गए एक रुद्र जाप का पुण्य फल अन्य स्थानों पर किए गए सात करोड़ रुद्र जाप का पुण्य फल के बराबर है (काशी खण्ड अध्याय 68)।
ब्रहमवैवर्त पुराण के अनुसार, कृति वासेश्वर काशीवासियों को सुखमय जीवन प्रदान करते है और जो लोग कृति वासेश्वर की पूजा अर्चना करते है उन्हें अन्त समय में मोक्ष की प्राप्ति होती है।
कूर्म पुराण के अनुसार प्रत्येक सहस्त्र जन्मों के पश्चात किसी को मोक्ष मिलेगा या नही मिलेगा यह निश्चित नहीं है परन्तु कृति वासेश्वर के दर्शन पूजन से मोक्ष अवश्य मिलेगा।
काशी खण्ड में उल्लेख है कि माता पार्वती सदैव मुक्तिदाता शिवलिंगा बारे जानने के लिये उत्सुक रहती थी। अतः भगवान शिव, माता पार्वती को बताते है कि काशी में करोड़ो लिंग है, जिनमें से ज्यादातर स्वयंभू हैं शेष अन्य, श्रद्धालुओ द्वारा वैदिक पूजा कर्म विधि सम्पन्न करके स्थापित किया गया है।
उपरोक्त लिंगों में से चौदह शक्तिशाली लिंग ऐसे है जिनके नाम जप मात्र से समस्त पाप नष्ट हो जाते है। और इन चौदह लिंगों में कृति वासेश्वर् मंदिर चतुर्थ क्रम में आते हैं।
ऐतिहासिक संदर्भ
प्राचीन काल में अधिकांश मुगल शासकों ने बहुत से मंदिरों को ध्वस्त किया। उन ध्वस्त मंदिरों में काशी के तीन प्रमुख मंदिर है विश्वेश्वर मंदिर, कृति वासेश्वर एवं बिन्दु माधव मंदिर। कालभैरव मंदिर के उत्तर की ओर, कृति वासेश्वर मंदिर को औरंगजेब ने ध्वस्त किया था। इस परिसर से थोड़ा बाहर लबे सड़क पर कृत्तिवासेश्वर महादेव का नया मंदिर स्थापित किया गया है। कहते हैं कि कृत्तिवासेश्वर का मूल लिंग इस नये मंदिर में रखा हुआ लिंग ही है।
कथा ये भी है कि जब औरंगजेब ने मंदिर पर हमले के दौरान शिवलिंग पर तलवार से प्रहार किया तो वहां रक्त की धारा बह निकली। रक्तधार को देख मुगल बादशाह सहम गया। तभी पुजारियों ने मूल लिंग को वहां से उठा लिया और बाद में नया मंदिर बनने पर उसे वहां स्थापित कर दिया। वैसे यह नया मंदिर भी काफी प्राचीन है और पुराने मंदिर के ठीक पीछे वाले हिस्से में है। ऐसा प्रतीत होता है कि कभी यह सब एक ही परिसर का भाग रहा होगा। पर इस नये मंदिर परिसर का रास्ता रत्नेश्वर मंदिर के सामने से है।
मंदिर ध्वस्तीकरण के काफी समय उपरान्त राजा पटनीमल द्वारा मंदिर का पुनर्निर्माण कराया गया। यहाँ एक महत्वपूर्ण बात का जिक्र करना आवश्यक है। मूल कृतिवासेश्वर् लिंग एक विशाल प्रांगण में स्थित था, औरंगजेब द्वारा कृतिवासेश्वर् मंदिर नष्ट करने के पश्चात् उसी स्थान पर एक मस्जिद का निर्माण कर दिया गया था तथा वहीं निकट एक फव्वारा था, सम्भवतः इसी स्थान पर पुराना कृतिवासेश्वर् लिंग् था। शिवरात्रि के दिन श्रद्धालु इस फव्वारा के पास पूजा अर्चना करते थे परन्तु वर्तमान मे उसी स्थान पर अब एक लिंग स्थापित कर दिया गया है। श्रद्धालु विशेषकर शिवरात्रि को यहाँ पूजा करते हैं।
हंस तीर्थ या हरतीरथ
कृतिवासेश्वर मन्दिर के पास ही हंस तीर्थ के नाम से विख्यात तालाब हुआ करता था। काशी में अब हंसतीर्थ-हरतीरथ पोखरा को पाट दिया गया है और BSNL का ऑफिस और मोबाइल टावर लगा दिया गया है। हंसतीर्थ अब लुप्त हो गया है। स्थानीय लोग इसे हर तीर्थ के नाम से भी पुकारते हैं। हंस तीर्थ तालाब के लुप्त होने के पश्चात यह समय के साथ हरतीरथ नाम से जाना जाने लगा।
हंस तीर्थ की कथा
जब कौवे बन गए थे हंस
एक बार चैत्र की पूर्णिमा के दिन कृतिवासेश्वर की यात्रा चल रही थी। पुजारियों व श्रद्धालुओं ने पूजा में चढ़े हुए अन्न का ढेर लगा दिया था। जिसे देख कर बहुत से पक्षी आकाश में मंडराने लगे अन्न के लिए आकाश में ही आपस में लड़ने लगे। फिर तो कगवर खा कर हुष्ट पुष्ट और मोटे कौवों ने कांव कांव करते हुवे दुबले और निर्बल कौवों को चोंच से मार गिराया। वे कौवे चोट खा कर आकाश से लड़खड़ाते हुवे उसी कुण्ड में गिर पड़े और उम्र बचे रहने के कारण, वे सब बच गए और तीर्थ के प्रभाव से तुरंत ही कौवा से हंस हो गये।
उस समय यात्रा में एकत्र लोग बड़े आश्चर्य में आकर ऊँगली दिखा कर कहने लगे –“ओह!देखो -देखो! कैसी विचित्र बात है क़ि हम लोगों के देखते देखते जो कौवे इस कुंड में गिरे, वे सब के सब इस तीर्थ के प्रभाव से काले चोंच और लाल पैर वाले हंस हो गये हैं। तभी से वह कुण्ड इस इस लोक में हंस तीर्थ के नाम से विख्यात हुआ। काशी में सदैव हंसतीर्थ में स्नान एवं कृतिवासेश्वर का दर्शन करना चाहिए।
उपरोक्त वर्णन काशीखण्ड पुराण से ली गयी है।
विशेष पूजा अर्चना
प्रत्येक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन व्रत रखकर कृतिवासेश्वर की पूजा अर्चना से सर्वसुख की प्राप्ति होती है। पूरा माघ महीना, शुक्ल पक्ष चतुर्दशी तथा चैत्र मास पूर्णिमा के दिनों में कृतिवासेश्वर लिंग की पूजा अर्चना विशेष फलदायी है।
पूजन का समय
मंदिर में प्रातः 4:30 से दोपहर 1:30 एवं शाम 5:00 से रात्रि 10:00 तक दर्शन सुलभ रहता है। इसके अतिरिक्त यह मंदिर वर्ष भर 365 दिन दर्शन के लिए खुला रहता है। लेकिन महाशिवरात्रि एवं कुछ विशेष अवसरों पर यहां थोड़ी अधिक भीड़ रहती है।
लिंग स्थान विवरण (कैसे पहुंचे)
काशी के विश्वेश्वरगंज क्षेत्र में मकान संख्या 46/23 मृत्युंजय महादेव मंदिर मार्ग में कृतिवासेश्वर लिंग स्थित है। किसी भी वाहन द्वारा विश्वेश्वरगंज पोस्ट ऑफिस तक फिर पैदल गली मार्ग से मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
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