कूष्माण्डा देवी दुर्गा मंदिर, दुर्गाकुण्ड वाराणसी

By Arvind Mishra

Last Updated on December 14, 2024 by Yogi Deep

नवरात्रि के चतुर्थ दिन माता कूष्माण्डा देवी के दर्शन एवं पूजन का विशेष महत्व है। माता कूष्माण्डा देवी मंदिर जिसे दुर्गाकुंड मंदिर अथवा दुर्गा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर वाराणसी में स्थित प्रसिद्ध नवदुर्गा मंदिरों में से एक है। यह मंदिर माता कूष्माण्डा देवी को समर्पित है, जो माता दुर्गा का चतुर्थ स्वरूप है। ऐसी मान्यता है कि जब सृष्टि का सृजन नहीं हुआ थाउसे समयमाता कूष्माण्डा देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। यह संपूर्ण सृष्टि बिना किसी आदिशक्ति के चलने में समर्थ नहीं है, अतः माता को आदि शक्ति नाम से भी जाना जाता है। सूर्यमंडल के भीतरी लोक में माता का निवास स्थल माना जाता है। सूर्य के इतने तेज झेलने की शक्ति केवल माता आदि शक्ति के पास ही है।

नवदुर्गामाता कूष्माण्डा
स्वरुपचतुर्थ स्वरुप
संबंधहिन्दू देवी
मंत्रसुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदाऽस्तु मे॥
अस्त्रकमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा
सवारीसिंह

माता कूष्माण्डा देवी, दुर्गाकुंड वाराणसी

माता कूष्माण्डा देवी का मंदिर वाराणसी के दुर्गाकुंड पर स्थित है। नवरात्र के चौथे दिन यहाँ भक्तों की भारी भीड़ लगती है। जब सृष्टि नहीं थी, चारों तरफ अन्धकार ही अन्धकार था, तब इसी देवी ने अपने ईषत्‌ हास्य से ब्रह्माण्ड की रचना की थी। इन्हें सृष्टि की आदिस्वरूपा कहते हैं। ये ही आदिशक्ति हैं।  कूष्माण्डा के रूप में शक्ति  की आठ भुजाएँ हैं, इसलिए अष्टभुजा कहलाईं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है। इस देवी का वाहन सिंह है और इन्हें कुम्हड़े की बलि प्रिय है। संस्कृत में कुम्हड़े को कुष्माण्ड कहते हैं इसलिए भी  देवी के इस रूप को कुष्माण्डा कहते हैं। मतलब कोहड़े का चढ़ावा पसन्द करने वाली देवी ही कूष्मांडा हैं। 

Durgakund
Durgakund

क्या है दर्शन का महत्व

दुर्गाकुंड पर स्थित इस मंदिर में दर्शन करने मात्र से ही श्रद्धालुओं के समस्त रोग एवं शोक समाप्त होने शुरू हो जाते हैं। इनकी पूजा अर्चना करना बेहद ही सरल है, कोई भी व्यक्ति यदि सच्चे हृदय एवं सच्चे मन से माता की प्रार्थना स्तुति करे तो उसके यश, बल, आरोग्य एवं आयु में वृद्धि होती है। 

माता कूष्माण्डा की आराधना करने वाले भक्तों को हर प्रकार के दुख-व्याधियों से मुक्ति मिलती है। माता के भक्तों को कुछ ही दिनों में उनकी कृपा का अनुभव प्राप्त होने लगता है। मां अपने सभी भक्तों को भवसागर से पर लगती हैं, इसमें कोई भी संदेह नहीं है। 

इनकी उपासना से रोग और शोक मिटते हैं। आयु, यश, बल, आरोग्य की वृद्धि होती है। कूष्माण्डा कम से कम सेवा में भी,  सीमित भक्ति में भी प्रसन्न रहती हैं। अचंचल और पवित्र मन से नवरात्रि के चौथे दिन इस देवी की पूजा-आराधना करना चाहिए। इससे भक्तों के रोगों और शोकों का नाश होता है तथा उसे आयु, यश, बल और आरोग्य प्राप्त होता है।

यह देवी अत्यल्प सेवा और भक्ति से ही प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती हैं। सच्चे मन से पूजा करने वाले को सुगमता से परम पद प्राप्त होता है। विधि-विधान से पूजा करने पर भक्त को कम समय में ही माँ की कृपा का सूक्ष्म भाव अनुभव होने लगता है। यह देवी आधियों-व्याधियों से मुक्त करती हैं और उसे सुख समृद्धि और उन्नति प्रदान करती हैं। अंततः इस देवी की उपासना में भक्तों को सदैव तत्पर रहना चाहिए।

मंत्र

सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदाऽस्तु मे॥

नवरात्रि-पूजन के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के रूप में शक्ति की ही उपासना की जाती है। कूष्माण्डा से ही ब्रह्माण्ड बना है। ब्रह्माण्ड की निर्मिति के मूल में जो शक्ति है उसे समझने के लिए शक्ति के इस रूप की अवधारणा है।

स्वरूप

आठ हाथों वाली कूष्माण्डा कर्मयोगी जीवन अपनाकर तेज अर्जित करने की प्रेरणा देती हैं। हल्की मुस्कान से तकलीफ़देह अंधेरा खतम करके नवसृजन का अलख जगातीं हैं। कूष्माण्डा की उपासना से जिजीविषा बढ़ती है नए रास्ते खुलते हैं। इशत् हास्य से ब्रह्माण्ड बनने की अवधारणा में सृष्टि का रहस्य समझकर अपने जीवन को अनुकूल रच डालने का सामर्थ्य यहीं मिलता है। नवरात्रि में चौथे दिन देवी को कुष्माण्डा के रूप में पूजते है। अपनी मन्द, हल्की हँसी के द्वारा अण्ड यानी ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण इस देवी को कुष्माण्डा नाम से अभिहित किया गया है।

निवास

देवी के इस रूप का वास सूर्यमण्डल के भीतरी लोक में है। सूर्यलोक में रहने की शक्ति और क्षमता केवल इन्हीं में है। इसीलिए इनके शरीर की कान्ति और प्रभा सूर्य की भाँति ही दैदीप्यमान है। इनके ही तेज से दसों दिशाएँ आलोकित हैं। ब्रह्माण्ड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में इन्हीं का तेज व्याप्त है।

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