Last Updated on December 14, 2024 by Yogi Deep
माता चन्द्रघण्टा देवी नवदुर्गा में तीसरे स्थान पर पूजी जाती हैं। नवरात्रि के तृतीय दिवस माता के पूजन का अत्यधिक महत्व है। वाराणसी में स्थित माता चन्द्रघण्टा देवी का एक मंदिर भी है, जहां नवरात्र के समय भक्तों का ताता लगा रहता है। ऐसी मान्यता है कि यहां दर्शन पूजन करने मात्र से ही भक्तों के कष्ट दूर हो जाते हैं, एवं भक्त निर्भय हो जाता है।
नवदुर्गा | माता चन्द्रघण्टा |
स्वरुप | तृतीय स्वरुप |
संबंध | हिन्दू देवी |
मंत्र | पिण्डजप्रवरारुढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता। प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता।। |
अस्त्र | खड्ग आदि शस्त्र तथा बाण आदि अस्त्र विभूषित हैं। |
सवारी | सिंह |
माता चन्द्रघण्टा देवी
दुश्वारियों पर सहजता से गमन करने वाली दुर्गा का तीसरा रूप देवी चन्द्रघण्टा का है। नवरात्रि की उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है और इस दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन-आराधना किया जाता है। काशी में इनका मन्दिर बांसफाटक, चौक पर स्थित चित्रघंटा गली में स्थित है। जहां आप कैंट स्टेशन से या लंका से ऑटो द्वारा या निजी वाहन द्वारा आसानी से पहुँच सकते हैं।
माता का स्वरूप
शक्ति के इस रूप में माथे पर घण्टे के आकार का आधा चन्द्र है। इनके शरीर में सुनहली आभा दीखती है। इस रूप में शक्ति के दस हाथ हैं। सिंह पर सवार देवी चन्द्रघण्टा युद्ध के लिए हमेशा तैयार रहती हैं। घण्टे की भयावह ध्वनि से ही दैत्य-दानव जैसी निगेटिव एनर्जी टूटने-बिखरने लगती है।
माता चन्द्रघण्टा की साधना से अलौकिकता का दर्शन सहज ही हो जाता है। शांति की संस्थापना ही इस रूप का मर्म है। यह रूप कल्याणकारी होता है। सिद्धों को चन्द्रघण्टा की उपासना से ब्रह्माण्ड की आवाजें सुनाई देती हैं। दिव्य सुगंधियों का अनुभव होने लगता है। चन्द्रघण्टा की उपासना से अनावश्यक डर खतम हो जाता है। साहस जागता है। आराधक निडर और साहसी होने के साथ ही विनम्र और सौम्य हो जाता है।
यही शक्ति का वह रूप है जिसकी वर्तमान में आवश्यकता है। हर व्यक्ति के भीतर की कायरता और भीरुता का उपचार चन्द्रघण्टा की पूजा में ही सम्भव है। चन्द्रघण्टा के सामने शरणागत हो जाना ही परमपद की योग्यता है।
देवी चन्द्रघण्टा को वर्तमान समझ के लिए स्पष्ट करें तो यह पार्वती का विवाहित रूप है, जिसमें शक्ति के दस हाथ हैं। पति के मस्तक पर विराजित आधे चाँद को माथे पर सजाते ही घण्टे जैसा लुक आया इसीलिए इस नामकरण को सार्थकता मिली। चन्द्रघण्टा शक्ति, वीरता और साहस का आशीर्वाद देती हैं।
इनकी उपासना से शारीरिक और मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। जीवनयात्रा की बाधाएं अपने आप समाप्त हो जाती हैं। प्रारब्ध के अपकर्म से मुक्ति दिलाने वाली देवी चन्द्रघण्टा ही हैं। ये क्षमा और शांति की देवी हैं।
मंत्र
पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकेर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥
कैसे पहुंचे
काशी में इनका मन्दिर बांसफाटक, चौक पर स्थित चित्रघंटा गली में मकान संख्या सी के २३/३४ में स्थित है। जहां आप कैंट स्टेशन से या लंका से ऑटो द्वारा या निजी वाहन द्वारा आसानी से पहुँच सकते हैं।
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