Last Updated on December 14, 2024 by Yogi Deep
माता ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना नवरात्रि के दूसरे दिन की जाती है। नवदुर्गा के स्वरूप में माता ब्रह्मचारिणी दूसरे क्रम पर पूजी जाती हैं। ब्रह्मचारिणी का अर्थ है ब्रह्म अर्थात तपस्या एवं चारिणी अर्थात आचरण करने वाली अर्थात जो ब्रह्म का आचरण करता है वही ब्रह्मचारिणी है। वाराणसी में माता ब्रह्मचारिणी देवी का एक भव्य मंदिर भी, जहाँ नवरात्री के समय भक्तों का ताँता लगा रहता है।
नौ दुर्गा स्वरुप | माता ब्रह्मचारिणी |
स्वरुप | द्वितीय स्वरुप |
निवासस्थल | हिमालय, कैलाश |
मंत्र | दधाना कर पद्माभ्यामक्ष माला कमण्डलु। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।। |
अस्त्र | कमंडल व माला (कोई अस्त्र नहीं) |
सवारी | कोई नहीं |
ब्रह्मचारिणी देवी दुर्गा मंदिर, वाराणसी
काशी में नवदुर्गा के मंदिर स्थित है, जिसमें द्वितीय क्रम पर आता है ब्रह्मचारिणी देवी दुर्गा मंदिर, जो काशी वाराणसी में स्थित है। शारदीय नवरात्रि के द्वितीय दिवस माता ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा अर्चना का विशेष महत्व है। एक कथा के अनुसार भगवान शिव की प्राप्ति हेतु माता पार्वती ने कई वर्षों तक तपस्या की जिस कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी नाम से पुकारा जाने लगा।
कथा
विविध स्रोतों में प्रकारांतर से शैलपुत्री के तपस्विनी रूप की ही कथा मिलती है। जिसे किञ्चित विस्तार में समझते हैं-
रामचरितमानस के बालकाण्ड में गोस्वामी तुलसीदास जी दोहे-चौपाई के माध्यम से लिखते हैं कि हिमालय की पुत्री पार्वती ने नारदजी के उपदेश से पति के रूप में शिवजी को प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी नाम दिया गया।
एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया। तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बेल के पत्ते खाए और शिव की आराधना करती रहीं। बाद में पार्वतीजी ने बेल के पत्ते भी खाना छोड़ दिया । कई हजार वर्षों तक निर्जला और निराहार रहकर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया।
देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया, सराहना की और कहा “हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की। यह तुम्हीं से ही सम्भव है। तुम्हारी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी और शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तपस्या छोड़कर घर लौट जाओ। जल्द ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं। कालिदास कुमासम्भवम् में लिखते हैं कि पार्वती की परीक्षा शिव ने स्वयं ली। वे बटुक के भेष में पार्वती से शिव को बैरागी, बौराहा, साँप-बिच्छू पहनने वाला, चिता की अपवित्र राख को शरीर पर मलने वाला है, ऐसा कहे। ऐसे में पार्वती क्रोधित हो गईं तभी भेष बदले हुए शिव अपने असली रूप में आ गए।
देवी ब्रह्मचारिणी अपने निर्णय पर दृढ़ रहने की शक्ति देती हैं। उद्देश्य के प्रति निष्ठा रखना सिखाती हैं। बाधाओं के सामने डटे रहना सिखाती हैं….! ब्रह्मचारिणी की उपासना से साधक अपने भीतर की स्थिरता को पा जाता है। इस रूप में शक्ति को जो उमा नाम मिला है वह माता मेना के द्वारा तपस्या के लिए मना करने पर मिला है। उ मतलब वह सब तपस्या आदि…. मा मतलब न करो……..! इसी तरह अपर्णा नाम भी संकल्प के प्रति निष्ठा में अर्जित हुआ है।
स्वरूप
विद्यार्थी जीवन कष्ट का होता है इसलिए ब्रह्मचारिणी नंगे पैर रहती हैं। इन्होंने संसार का नहीं स्व की इच्छा का चयन किया है। ये नारंगी और सफेद रंग की साड़ी पहनती हैं। इसमें नारंगी ब्रह्म तेज और सफेद उज्ज्वलता-पवित्रता का सूचक है। ये दृढ़ निश्चय, अपार सहनशीलता वाली हैं तभी दृढ़ता की प्रेरणा देती हैं। ब्रह्मचारिणी अटूट धैर्य का आशीर्वाद देती हैं। ये मंगल ग्रह पर शासन करती हैं। मंगल ग्रह के दुष्प्रभाव से मुक्ति ब्रह्मचारिणी ही दिलाती हैं। इनके हाथ में माला साधना को सूचित करती है और कमण्डल पवित्रता की धारणा।
माता ब्रह्मचारिणी
नवरात्रि व्रत-पर्व के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। भगवती पार्वती ने भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया। कहते हैं माँ ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्वसिद्धि की प्राप्ति होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन देवी के इसी स्वरूप की उपासना की जाती है। ब्रह्मचारिणी के रूप का सार यह है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए।
श्लोक
दधाना कर पद्माभ्यामक्ष माला कमण्डलु।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
उपासना श्लोक
प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में द्वितीय दिन इसका जाप करना चाहिए।
या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
कैसे पहुंचे।
इनका मंदिर काशी के 22/17 दुर्गाघाट मोहल्ले में स्थित है। कैंट स्टेशन से आटो द्वारा आप यहाँ पहुँच सकते हैं।
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